- भारत के नए नक्शे में कालापानी को बताया गया है उत्तराखंड का हिस्सा
- इस क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता रहा है नेपाल, अब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
- सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल सरकार से संधि के दौरान भारत को दिए गए नक्शे की मांग की है
नई दिल्ली : नेपाल के सुदूर पश्चिम और तिब्बत के समीप स्थित कालापानी एक बार फिर सुर्खियों में है। भारत के नए नक्शे में 372 वर्ग किलोमीटर वाले क्षेत्र कालापानी को उत्तराखंड में स्थित बताया गया है जबकि नेपाल इसे अपना हिस्सा मानता है। कालापानी को अपना क्षेत्र बताए जाने के बाद काठमांडू में गत नवंबर में विरोध-प्रदर्शन हुए। दोनों देशों के बीच इस सीमा विवाद पर अब नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस क्षेत्र का वास्तविक नक्शा मांगा है। कालापानी अपनी स्थिति के लिए भारत के लिए रणनीतिक महत्व रखता है। आइए जानते हैं क्या है यह विवाद-
क्या है कालापानी का मसला?
कालापानी सीमा विवाद का यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब भारत सरकार ने गत दो नवंबर 2019 को जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख को नया केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद भारत का नया नक्शा जारी किया। भारत सरकार का दावा है कि उसने नेपाल के साथ लगनी वाली अपनी सीमा में कोई बदलाव नहीं किया है लेकिन नेपाल सरकार का कहना है कि लिपुलेख उसके क्षेत्र में आता है। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा कि 'सीमा मसले' का हल निकालने के लिए उनकी सरकार ने गत 23 नवंबर को नई दिल्ली को पत्र लिखा। इस बीच, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भारत के नए नक्शे और कालापानी विवाद को अपने संज्ञान में लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल सरकार से कहा है कि वह 15 दिनों के भीतर सुगौली संधि पर हस्ताक्षर के दौरान भारत को सौंपे गए वास्तविक नक्शा उसे उपलब्ध कराए।
भारत के लिए इसलिए अहम है कालापानी
अत्यंत ऊंचाई पर स्थित होने के कारण लिपुलेख दर्रे का भारत के लिए सामरिक महत्व है। यहां से भारत को इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर नजर रखने में मदद मिलती है। वहीं, नेपाल का कहना है कि चीन और भारत के कारोबार में यह मार्ग अहम भूमिका निभा सकता है। कारोबार के लिहाज से अपनी स्थिति के लिए कालापानी का महत्व सदियों से है। यही नहीं यह तिब्बत तीर्थयात्रियों के प्रमुख मार्गों में से एक है।
क्या लिपुलेख पर पहली बार हुआ है विवाद?
भारत और नेपाल के बीच तूल पकड़ने वाला सीमा विवाद कभी नहीं हुआ है। भारत और नेपाल के बीच सदियों से शांतिपूर्ण एवं मित्रवत रिश्ते हैं। दोनों देशों के बीच 31 जुलाई 1950 को एक शांति समझौता हुआ जिसमें कहा गया कि 'भारत और नेपाल के बीच हमेशा कायम रहने वाली शांति एवं मित्रता बनी रहेगी। दोनों सरकारें एक-दूसरे की संपूर्ण संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने के लिए सहमत होती हैं।' साल 2015 में हालांकि, काठमांडू ने इस बात पर अपनी नाखुशी जाहिर की कि भारत और चीन ने लिपुलेख के जरिए अपना कारोबार बढ़ाने के लिए की गई अपनी द्विपक्षीय संधि में उसे नजरंदाज किया है।
अभी कैसे हैं भारत और नेपाल के संबंध?
नेपाल के हिंदू राष्ट्र से लोकतांत्रिक देश बनने के बाद भारत के साथ उसके संबंध एक जैसे नहीं रहे हैं। पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के रिश्ते में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। नेपाल में 2015 में नया संविधान के लागू होने के बाद वहां के मधेशी समुदाय ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। मधेशी समुदाय का मानना है कि यह संविधान उनके साथ भेदभाव करता है। चूंकि, नेपाल काफी हद तक भारत की तरफ से होने वाली आपूर्ति पर निर्भर है। इसे देखते हुए तराई के लोगों ने भारत से आपूर्ति होने वाली सामग्रियों को वहां पहुंचने नहीं दिया। हिंसक विरोध प्रदर्शनों के चलते नेपाल में करीब 135 दिनों तक आर्थिक नाकेबंदी जैसे हालात रहे। इस दौरान नेपाल की राजनीतिक पार्टियों ने आरोप लगाया कि भारत की तरफ से यह आर्थिक नाकेबंदी की गई है लेकिन नई दिल्ली ने इससे इंकार किया।
...तो चीन के करीब जा सकता है नेपाल