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Nirbhaya Case: जल्लाद-जमादार समेत ये बने निर्भया के दरिंदों की फांसी के गवाह, शवों का होगा ये हाल

Updated Mar 20, 2020 | 05:58 IST

लगभग आठ साल बाद 20 मार्च 2020 की सुबह निर्भया के चारों गुनहगारों को फांसी दे दी गई।

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मुख्य बातें
  • निर्भया के चारों दोषियों की दी गई फांसी
  • चारों दोषियों के फांसी के गवाह बने केवल चंद लोग
  • चारों आरोपियों के शवों का होगा पोस्टमॉर्टम

नई दिल्ली. लगभग आठ साल बाद 20 मार्च 2020 की सुबह निर्भया के चारों गुनहगारों को फांसी दे दी गई।  डेथ वारंट के मुताबिक अक्षय ठाकुर, मुकेश सिंह, पवन गुप्ता और विनय शर्मा को 20 मार्च की सुबह साढ़े पांच बजे फांसी के फंदे पर लटका दिया। तिहाड़ जेल में फांसी दी गई। इस फांसी के गवाह कुछ चंद लोग ही बने। 

तिहाड़ जेल के पूर्व डीजी सुनील गुप्ता की किताब ब्लैक वारंट में फांसी के बारे में विस्तार से बताया है। दिल्ली जेल मैनुएल के मुताबिक दोषियों को सुबह लगभग चार बजे उठाया जाता है। उन्हें जेल के सीनियर अधिकारी खुद जाकर उठाते हैं। 

सीनियर अधिकारियों के साथ 12 लोग होते हैं। इनमें से 10 कॉन्सटेबल और दो हेड कॉन्सटेबल होते हैं। ये सभी 12 हथियारबंद होते हैं।  उठने के बाद चारों दोषियों को नहाने के लिए कहा जाता है। इसके बाद अगर दोषी प्रार्थना करने चाहे तो उसे प्रार्थना करने दिया जाता है। 

दोषियों को पहनाया जाता है काला कपड़ा 
जेल मैनुएल के हिसाब से नाश्ते का वक्त साढ़े पांच बजे है। ऐसे में निर्भया के गुनहगारों को नाश्ते के लिए नहीं पूछा जाएगा। इन चारों को चाय के लिए जरूर पूछा जाएगा। इसके बाद उन्हें नए कपड़े दिए जाते हैं। ये काले रंग के कपड़े होते हैं। इसके बाद मजिस्ट्रेट दोषियों से वसीहत के बारे में पूछते हैं। 

वसीहत के बाद जेल सुप्रिटेंडेंट दोषियों के सामने उनके डेथ वारंट को पढ़ता है। इसके बाद दोषियों के हाथों में हथकड़ी बांध दी जाती है। इसके बाद दोषियों को उनकी मौत के पास यानी फांसी कोठी के पास ले जाया जाता है। इस दोरान उनके पांव रस्सी से बांध दिए जाते हैं। 

फांसी के दौरान मौजूद होता है जमादार 
दिल्ली जेल मैनुएल के मुताबिक फांसी कोठी में जेल अधिकारी, मजिस्ट्रेट, जल्लाद, डॉक्टर और एक जमादार भी मौजूद होता है। किताब के मुताबिक मरने के बाद शरीर से मल मूत्र निकल जाता है। इस कारण ही उन्हें काला कपड़ा पहनाया जाता था। वहीं, शव फंदे पर आधे घंटे तक झूलता है। इसके बाद डॉक्टर उसे मृत घोषित करते हैं।

साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी शत्रुघ्न चौहान केस में जारी निर्देश के मुताबिक फांसी के बाद शवों का पोस्टमॉर्टम कराया जाएगा। किताब ब्लैक वारंट के मुताबिक फांसी देखने की इजाजत इनके अलावा किसी और को नहीं होती है। हालांकि, जेल के सुप्रिटेंडेंट चाहे तो कैदियों को फांसी देखने की परमिशन दे सकते हैं।

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