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Nirbhaya case: तख्ता, फंदा और जल्लाद सब थे तैयार, दोषियों के वकील ने चली चाल और फिर...

Updated Mar 02, 2020 | 20:42 IST

निर्भया के गुनहगारों की फांसी अगले आदेश तक के लिए निरस्त कर दी गई है। पीड़ित पक्ष के अपने तर्क हैं तो बचाव पक्ष के अपने। दोषियों को न्याय पाने का पूरा अधिकार है लेकिन जनमानस को तो सिर्फ फांसी का इंतजार है।

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तिहाड़ जेल में निर्भया के गुनहगारों को दी जानी है फांसी
मुख्य बातें
  • तिहाड़ के जेल नंबर तीन में बने फांसी घर में लटाकाए जाएंगे निर्भया के चारों गुनहगार
  • 3 मार्च को सुबह 6 बजे दी जानी थी फांसी लेकिन पवन की दया याचिका की वजह से फांसी टली
  • निर्भया के परिजन बोले- अब दोषियों के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा।

नई दिल्ली। सात साल से एक ऐसा मुकद्दमा दिल्ली के अदालत में है जिसमें अंतिम इंसाफ का इंतजार न केवल पीड़ित के परिवार को है बल्कि देश के आम लोगों को भी है। 16 दिसंबर 2012 की रात दिल्ली की सड़कों पर एक ऐसे गुनाह को अंजाम दिया जा रहा था जो रोंगटे खड़ा करने वाला था। उस पीड़िता को निर्भया का नाम दिया गया। जब कभी भी देश के किसी कोने से गैंगरेप की खबर आती है तो पीड़िता की पहचान ही निर्भया बन जाती है। 

एक बार फिर कामयाब हुए निर्भया के गुनहगार
निर्भया के गुनहगारों ने 3 मार्च को दी जाने वाली फांसी से ठीक पहले एक बार फिर सजा टलवाने में फिर कामयाब हो गए। पटियाला हाउस कोर्ट ने फांसी की सजा को तामील करने से अगले आदेश तक रोक लगा दी। सवाल यह है कि क्या निर्भया के गुनहगार अपने वकील की मदद से कानूनी व्यवस्था का बेजा दुरुपयोग कर रहे हैं। अगर ऐसा न होता तो पुख्ता तौर पर 22 जनवरी को ही फांसी लग गई होती।

22 जनवरी, 1 फरवरी और तीन मार्च अब अगले आदेश का इंतजार
अगर वो ताल तिकड़म में एक बार फिर कामयाब न होते तो 1 फरवरी को फांसी लग गई होती। अगर एक बार फिर सोमवार दो मार्च को वो कामयाब न होते तो 3 मार्च को फांसी लग गई होती। फांसी की सजा पर एक बार फिर रोक लगाए जाने के बाद निर्भया के पिता ने कहा कि वकील ए पी सिंह ने अदालत को गुमराह किया पहले तो वो बोले कि उनकी तरफ से कोई भी याचिका लंबित नहीं है। लेकिन 12 बजे से पहले राष्ट्रपति को दया याचिका पहुंचा दी। 

निर्भया की मां जब झुंझला गईं
गुनहगारों की फांसी जब तीसरी बार टली तो निर्भया की मां झुंझला गई उन्होंने कहा कि पूरा सिस्टम ही दोषी है। अदालतें भी ड्रामा देख रही हैं। यही नहीं पूरी दुनिया देख रही है कि भारत में किस तरह से न्याय देने में देरी की जा रही है। उन्होंने कहा कि कानून दांवपेंच की मदद से दोषी बचने की कोशिश कर रहे हैं। अदालतें भी इस हकीकत को स्वीकार करती हैं। लेकिन कुछ नहीं हो रहा है। ऐसा लगता है कि विधिक व्यवस्था भी अपराधियों को सपोर्ट करने में जुटी हुई है।  

पेशेवर धर्म निभा रहा हूं
निर्भया के वकील ए पी सिंह से जब पूछा गया कि क्या वो कानूनी दांवपेंच की मदद लेकर वैसे लोगों को बचा रहे हैं जो समाज के लिए धब्बा हैं। इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं कि पहले तो वो वकील हैं और दोषी उनके मुवक्किल। एक वकील की जिम्मेदारी यही होती है कि कानून में उपलब्ध उपायों का प्रयोग कर वो अपने क्लांइट को बचाए। वो जो कुछ कर रहे हैं अपने पेशेवर धर्म का पालन कर रहे हैं। निर्भया के दोषियों को जो सजा सुनाई गई उसमें मीडिया ट्रायल , पूर्वाग्रह है। हालांकि वो अंतिम उपाय तक दोषियों की रिहाई की कोशिश करेंगे।

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