- 1978 में रंगा बिल्ला को तिहाड़ जेल में दी गई थी फांसी
- जल्लाद कालू ने दी थी फांसी
- ब्लैक वारंट किताब में रंगा बिल्ला की फांसी का जिक्र
नई दिल्ली: 20 मार्च 2020 का दिन निर्भया के गुनगहारों को फांसी देने की तारीख मुकर्रर है। यह बात अलग है कि दोषियों ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में अर्जी लगाई है। इन सबके बीच वर्ष 2013 में तिहाड़ जेल के फांसी घर में संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दी गई थी। इससे पहले 1978 में भी तिहाड़ में दो ऐसे गुनहगारों को फांसी दी गई थी जिसके नाम से लोग दहशत में आ जाते थे, उनका नाम था रंगा बिल्ला। 1978 में जब रंगा को फांसी दी गई बताया जाता है कि फांसी के दो घंटे के बाद भी रंगा की नब्ज चल रही थी।
दोषियों के व्यवहार में हो जाता है बदलाव
फांसी की तारीख जब नजदीक आने लगती है तो दोषियों के व्यवहार में अलग अलग तरह का परिवर्तन आने लगता है, उदाहरण के तौर पर कुछ दोषी गुमशुम रहने लगते हैं, कुछ खाना पीना छोड़ देते हैं। कुछ अक्सर रोते रहते हैं। रंगा बिल्ला की फांसी की तारीख जैसे जैसे नजदीक आती जा रही थी। बिल्ला अक्सर रोता रहता था। लेकिन रंगा के चेहरे पर किसी तरह की शिकन नहीं थी। बताया यह भी जाता है कि रंगा और बिल्ला में सबसे ज्यादा खतरनाक रंगा ही था।
जल्लाद कालू ने रंगा बिल्ला को दी थी फांसी
रंगा बिल्ला को जल्लाद पवन के दादा कालू ने फांसी दी थी। अपहरण, रेप और हत्या के केस में दोनों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। रंगा बिल्ला को 14 साल की लड़की के साथ रेप और हत्या का दोषी पाया गया था। उन दोनों ने पीड़िता से न सिर्फ रेप किया था बल्कि तलवार से बेरहमी से काट डाला था। तलवार से काटने के बाद चाकू से उसके शरीर को गोद डाला था।
ब्लैक वारंट किताब में फांसी का जिक्र
रंगा बिल्ला के बारे में सुनील गुप्ता और सुनेत्रा चौधरी अपनी किताब ब्लैक वारंट में विस्तार से जिक्र करते हैं। उस किताब में वो लिखते हैं कि जब उन्होंने पहली बार उन्होंने पहली बार रंगा, बिल्ला को देखा तो वे वैसे नहीं थे जैसा वो खुद सोचा करते थे। ब्लैक वारंट में वो लिखते हैं कि रंगा हमेशा खुश रहता था और बिल्ला हमेशा रोता रहता था और इस अपराध के लिए रंगा को जिम्मेदार ठहराता था।
रंगा आराम से सोया, बिल्ला को थी बेचैनी
ब्लैक वारंट में जिक्र है कि फांसी से पहले वाली रात भी रंगा आराम से सो गया था। लेकिन बिल्ला के चेहरे पर फांसी की दहशत थी और वो सेल में बेचैनी के साथ घूमता रहा। यही नहीं वो बड़बड़ता भी रहता था। फांसी के समय बिल्ला रो रहा था लेकिन रंगा चिल्ला रहा था 'जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल। फांसी देने से पहले लाल रुमाल गिराई गई और दोनों को फांसी का लीवर खींच दिया गया।
ऐसा लगा नब्ज चल रही हो
फांसी देने में सारे नियमों का पालन किया गया था। दो घंटे के बाद जब रंगा के शव की जांच की गई तो ऐसा लगा कि उसकी नाड़ी चल रही है। डॉक्टरों ने इस बारे में बताया कि कई बार डर के मारे कैदी अपनी सांस रोक लेता है और इस वजह से हवा अंदर ही रह जाती है, हो सकता है कि उस वजह से उसकी नब्ज चलती रही होगी।