नई दिल्ली : जासूसी की कहानियां भला किसे रोमांचित नहीं करतीं। रहस्य से भरपूर ये कहानियां सुनने में जितनी रोमांचक होती हैं, उन्हें अंजाम देने वाले उतनी ही बहादुरी और साहस को अपने भीतर समेटे होते हैं। ऐसी ही भारतीय मूल की एक महिला का नाम दुनिया के साहसी और निर्भीक जासूसों में गिना जाता है, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर की नाजी सेना के कई राज चुराए।
वह निर्भीक साहसी जासूस नूर इनायज खान थीं, जिनसे जर्मन तानाशाह हिटलर भी खौफ खाता था। उनका जन्म 1914 में मॉस्को में हुआ था, जबकि शुरुआती परवरिश फ्रांस में हुई और अधिकतर वक्त ब्रिटेन में बीता। उनके पिता भारतीय थे और मां अमेरिकन। यह वह दौर था, जब भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एक उपनिवेश था। 1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो उस समय नूर का परिवार पेरिस में रहता था।
ब्रिटिश सेना की सीक्रेट एजेंट
युद्ध अभी जारी था कि 10 मई, 1940 को हिटलर की अगुवाई वाली जर्मन सेना ने फ्रांस पर हमला कर दिया। इसी दौरान नूर का परिवार ब्रिटेन चला गया और एक वॉलंटियर के तौर पर ब्रिटिश सेना में शामिल हो गईं। उनका मकसद नाजीवाद से लड़ना तो था ही, वह उस देश को किसी न किसी रूप में मदद भी मुहैया कराना चाहती थीं, जिसने उन्हें अपनाया। वह फ्रेंच बोलने में माहिर थीं और उनकी इसी महारत ने उनकी ओर ध्यान खींचा।
यूरोप में जर्मन सेना के बढ़ते प्रभुत्व के बीच छापामार कार्रवाई के लिए तब ब्रिटेन ने स्पेशल ऑपरेशन एग्जक्यूटिव नाम का गुप्त संगठन बनाया था, जिसने नूर की निर्भीकता, साहस, चालाकी और दृढ़ निश्चय को देखते हुए फ्रांस में उन्हें अहम जिम्मेदारी सौंपी। उन्हें खास तरह की ट्रेनिंग दी गई और ब्रिटेन लौटने के महज तीन साल के भीतर 1943 में वह फ्रांस में ब्रिटिश सेना की सीक्रेट एजेंट बन गईं।
यातना सही, पर जुबान नहीं खोली
फ्रांस में नाजियों के खिलाफ नूर का ऑपरेशन जारी था। हालांकि चंद महीनों बाद ही वह अपने ही किसी सहयोगी की बहन की ईर्ष्या का शिकार हो गईं। बताया जाता है कि चूंकि नूर को ब्रिटिश आर्मी और सीक्रेट एजेंट ग्रुप में हर कोई पसंद करता था, इसलिए वह लड़की उनसे ईर्ष्या करती थी और उसने ही उनके बारे में जानकारी नाजियों के सामने जाहिर कर दी थी, जिसके बाद उन्हें पकड़ लिया गया।
निर्भीक व साहसी नूर ने हालांकि आखिर तक हार नहीं मानी। जर्मन एजेंटों ने तब ब्रिटिश ऑपरेशन की जानकारी हासिल करने के लिए उन पर खूब दबाव बनाया और उन्हें तरह-तरह से यातना दी गई, लेकिन उन्होंने अपनी जुबान नहीं खोली। हालांकि वह अपने नोटबुक्स को नष्ट नहीं कर पाई थीं, जिससे मिली जानकारी के आधार पर जर्मन सेना ने कुछ ब्रिटिश एजेंटों को गिरफ्तार कर लिया।
मौत के बाद मिले कई सम्मान
जर्मन सैनिकों ने बाद में उन्हें दक्षिणी जर्मनी के एक यातना शिविर में भेज दिया और बाद में तीन अन्य महिला जासूसों के साथ गोली मार दी। उस वक्त उनकी उम्र महज 30 साल थी। बताया जाता है कि उस दौरान भी उन्होंने 'आजादी' का नारा लगाया था। नूर की बहादुरी को देखते हुए फ्रांस ने उन्हें 'वॉर क्रॉस' देकर सम्मानित किया तो ब्रिटेन में उन्हें क्रॉस सेंट जॉर्ज दिया गया, जिससे अब तक केवल तीन अन्य महिलाओं को सम्मानित किया गया है।
फ्रांस पर जर्मन हमले के दौरान अपनी जान दांव पर लगाने वाली नूर इनायत खान के सम्मान में बीते साल ब्रिटेन में उनके उस घर के बाहर ब्लू प्लाक लगाया गया, जिसमें वह 1942 से 1943 के बीच रही थीं। उनके पिता टीपू सुल्तान के वंशज थे और इस नाते उन्हें भारतीय राजघराने की राजकुमारी भी कहा जाता है। वह पहली महिला रेडियो ऑपरेटर थीं, जिन्हें नाजी हमले के बाद ब्रिटिश सेना ने फ्रांस भेजा था।