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बेरोजगारी के मुद्दे पर वरुण गांधी बोले-मुंह मोड़ना कपास से आग ढकने जैसा, आरआरबी एनटीपीसी रिजल्ट का दिया हवाला

Updated Jan 28, 2022 | 18:45 IST

बीजेपी सांसद वरुण गांधी अपनी ही सरकार पर निशाना साधते रहे हैं। किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी हिंसा में टिप्पणी के बाद उन्होंने आरआरबी एनटीपीसी नतीजों पर बवाल के बाद देश में बेरोजगारी के मुद्दे को उठाया है। सवाल यह है कि क्या वो गलत समय पर सही सवाल कर रहे हैं। या समय और सवाल दोनों जायज है।

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बेरोजगारी के मुद्दे पर वरुण गांधी बोले-मुंह मोड़ना कपास से आग ढकने जैसा, आरआरबी एनटीपीसी रिजल्ट का दिया हवाला
मुख्य बातें
  • आरआरबी एनटीपीसी के जरिए वरुण गांधी ने बेरोजगारी का दिया हवाला
  • वरुण गांधी, किसान आंदोलन के नाम पर अपनी सरकार को घेर चुके हैं
  • लखीमपुर खीरी हिंसा केस में भी साधा था निशाना

आरआरबी एनटीपीसी रिजल्ट के मुद्दे पर जिस तरह से छात्र भड़क गए। बिहार एक तरह से जल उठा और उसकी आंच इलाहाबाद में महसूस की गई। उसके बाद सियासत गरमा गई है। शुक्रवार को बिहार बंद का ऐलान था जिसे कई विपक्षी दलों ने समर्थ दिया था। इन सबके बीच पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने अपनी ही सरकार को बेरोजगारी के मुद्दे पर घेरा और कहा कि देश में आज बेरोज़गारी सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर रही है। स्थिति विकराल होती जा रही है। इससे मुंह मोड़ना कपास से आग ढकने जैसा है। 

अपनी ही पार्टी पर निशाना साधते रहे हैं वरुण गांधी
दरअसल वरुण गांधी ने पहली बार अपनी सरकार पर निशाना नहीं साधा है बल्कि किसान आंदोलन पर उनकी आवाज मुखर थी खासतौर से लखीमपुर खीरी में जिस तरह से केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे का नाम सामने आया उसके बाद वरुण गांधी ने कड़े शब्दों के जरिए अपने सरकार की घेरेबंदी की थी।

क्या कहते हैं जानकार
अब सवाल यह है कि आखिर वरुण गांधी इस तरह की बात क्यों करते हैं। इस विषय पर जानकारों का कहना है कि अगर आप 2014 से आज तक उनके राजनीतिक सफर को देखें तो वो महज बीजेपी के सांसद हैं। दरअसल जब उनकी मां को एनडीएन 1 में मंत्री बनने का मौका मिला तो कई ऐसे मौके आए जब वरुण गांधी दबी जुबान ही सही बीजेपी का विरोध करते थे। उसका असर यह हुआ कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को लगता था कि वरुण गांधी की बयानबाजी पार्टी को असहज कर देती है। दरअसल उनका संबंध गांधी परिवार से नहीं होता तो जनता में पार्टी के प्रति गलत धारणा कम बनती। एक तरह से आप मान सकते हैं कि कहीं न कहीं उनकी निराशा शब्दों के जरिए बाहर निकलती हैं। 

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