- साल 1952-70 के बीच जहां औसतन लोक सभा 121 दिन बैठकें करती थी।
- वहीं साल 2000 से औसतन 68 दिन की बैठकें हो रही हैं।
- राजीव गांधी सरकार में सबसे बड़ा निलंबन हुआ था, उस समय विपक्ष के 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था।
Parliament Monsoon Session: 18 जुलाई से शुरू हुआ संसद का मानसून सत्र अभी तक हंगामे और सदन की कार्यवाही नहीं चलने के लिए ही चर्चा में हैं। हालत यह है कि अब तक 23 विपक्षी दल के सांसद निलंबित हो चुके हैं। सबसे पहले बीते सोमवार (25 जुलाई) को लोक सभा में कांग्रेस के 4 सांसद और उसके अगले दिन राज्य सभा के 19 सांसदों () को एक हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया गया।
सरकार इस कार्रवाई के लिए जहां विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा रही है, वहीं विपक्ष का कहना है कि सरकार जनता के मुद्दे को उठाने नहीं देना चाहती है। इसलिए वह महंगाई पर चर्चा करने से बच रही है। जाहिर है इस आरोप-प्रत्यारोप पर जनता का नुकसान हो रहा है। इस बीच यह बहस भी शुरू हो गई है कि लगातार संसद की प्रोडक्टिवटी घट रही है। हालत यह है कि पिछले साल मानसून सत्र में केवल 21 घंटे 14 मिनट की कार्यवाही हुई थी। और इसी का असर है कि एक समय जो लोक सभा औसतन 121 दिन बैठकें करती थी, वह घटकर अब 68 दिन पर आ गया है।
कैसे घट रही है संसद की प्रोडक्टिविटी
इसी तरह अगर संसद की प्रोडक्टिविटी को देखा जाय, तो यह लगातार घट रही है। पीआरएस की रिपोर्ट के अनुसार 1952 में पहली लोक सभा के गठन के बाद से अभी तक उसकी प्रोडक्टिविटी में बड़ी गिरावट देखी गई है। साल 1952-70 के बीच जहां औसतन लोक सभा 121 दिन बैठकें करती थी। वहीं वह 2000 से औसतन 68 दिन की बैठकें कर रही है। और इसका असर नए विधेयकों के पारित होने में भी दिख रहा है।
एक समय जहां 8 वीं लोक सभा में 355 विधेयक पारित किए गए थे। वह 15 वीं लोक सभा (2009-2014) में केवल 192 रह गए। 16 वीं लोक सभा में 200 से ज्यादा विधेयक पारित किए गए थे।
1993 में बनी संसदीय स्थायी समिति के पास विधेयक भेजने की संख्या में लगातार कमी आई है। 14 वीं और 15 वीं लोक सभा में 50 फीसदी से ज्यादा संसद की स्थायी समिति के पास भेजे गए, वह 16 वीं लोक सभा में कम होकर 20-25 फीसदी के बीच आ गए। संसदीय स्थायी समिति विभिन्न विधेयकों पर अपनी राय देती है। और इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के सांसद सदस्य होते हैं।
सांसद के निलंबन का पहला मामला 1962 में आया
किसी सांसद के निलंबन का पहला मामला साल 1962 में आया था। पीआरएस इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 3 सितंबर 1962 को राज्य सभा सांसद गोडे मुरहरि निलंबित होने वाले पहले सांसद थे। उन्हें पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था। और उन्हें मार्शल ने सदन से बाहर निकाला था। मुरहरि इसके बाद 1966 में भी निलंबित हुए। बाद में मुरहरि राज्य सभा के उप सभापति भी बने।
इसी तरह सबसे ज्यादा बार निलंबित होने वाले सांसदों में जनता पार्टी के नेता राजनारायण सबसे आगे रहे है। उन्हें राज्यसभा से साल 1966, 1967, 1971 और 1974 में निलंबित किया गया था।
राजीव गांधी सरकार में सबसे बड़ा निलंबन
- आजाद भारत के संसदीय इतिहास में अभी तक का सबसे बड़ा निलंबन साल 1989 में हुआ था। उस समय विपक्षी सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे। तत्कालानीन अध्यक्ष ने 63 सांसदों को निलंबित कर दिया था, जबकि चार अन्य सांसद उनके साथ सदन से बाहर चले गए थे।
- इसके बाद साल 2013 में मानसून सत्र के दौरान लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने 12 सांसदों को पांच दिन के लिए निलंबित कर दिया था।
- इसी तरह 2014 में सदन में तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने को लेकर हो रही बहस के दौरान हंगामा करने पर 18 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था।
- फिर 2019 में लोक सभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने टीडीपी और एआइएडीएमके के 45 सांसदों को 2 दिन के लिए निलंबित कर दिय3 था।
- पिछले साल (2021 ) कृषि कानून को लेकर हंगामा करने पर राज्यसभा के 12 सांसदों को पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था।