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PK तो गए साथ में PV को भी ले गए, एक ही झटके में जद-यू से दो दिग्गजों का पत्ता साफ

Updated Jan 29, 2020 | 18:26 IST

Pawan Verma and Prashant Kishor : ल्ली चुनाव में भाजपा के साथ जाने पर पवन वर्मा ने सवाल उठाया और सीएए पर जद-यू का आधिकारिक रुख जानने के लिए नीतीश कुमार को पत्र लिखा।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
जद-यू से निकाले गए प्रशांत किशोर और पवन वर्मा।
मुख्य बातें
  • जद-यू से पवन वर्मा 2013 और प्रशांत किशोर 2015 से जुड़े थे
  • दोनों नेताओं ने हाल ही में पार्टी रुख से अलग जाकर दिया है बयान
  • पवन वर्मा जद-यू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और प्रशांत किशोर उपाध्यक्ष थे

नई दिल्ली : जद-यू में जिस बात की आशंका जताई जा रही थी आखिरकार वही हुआ। पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए नीतीश कुमार ने अपने पुराने सहयोगियों प्रशांत किशोर (पीके) और पवन वर्मा (पीवी) को जद-यू से निष्कासित कर दिया। पवन वर्मा पार्टी के प्रवक्ता और राष्ट्रीय महासचिव थे जबकि प्रशांत किशोर उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार थे। इन दोनों ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर पार्टी रुख से अलग जाकर विवादित बयान दिया और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की आलोचना की थी। जद-यू में प्रशांत किशोर को लाने में पवन वर्मा की बड़ी भूमिका रही। अब दोनों पार्टी से बाहर कर दिए गए हैं।

पिछले दिनों पीके और पीवी दोनों ने सीएए का विरोध करते हुए इस पर पार्टी के रुख पर सवाल उठाए। दिल्ली चुनाव में भाजपा के साथ जाने पर पवन वर्मा ने सवाल उठाया और सीएए पर जद-यू का आधिकारिक रुख जानने के लिए नीतीश कुमार को पत्र लिखा जबकि प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार पर व्यक्तिगत हमला करते हुए उन्हें 'झूठा' करार दिया। पीके और पीवी के हाल के रुख को देखते हुए सियासी गलियारों में दोनों नेताओं को पार्टी से निकालने की चर्चा आम हो गई थी। 

दरअसल, पवन वर्मा और प्रशांत किशोर जद-यू के मजबूत आधार स्तंभ माने जाते थे। पवन वर्मा राष्ट्रीय स्तर पर और मीडिया बहसों में पार्टी का रुख मजबूती के साथ रखने के लिए जाने जाते रहे हैं। जबकि प्रशांत किशोर की जिम्मेदारी जद-यू की छवि चमकाने और उसकी छवि राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने की थी। दोनों ने अपना काम बखूबी किया लेकिन कुछ समय से इन्होंने अपनी गतिविधियों से पार्टी को अपने खिलाफ खड़ा कर लिया। 

जद-यू से निकाले जाने के बाद किशोर ने ट्विटर पर लिखा, 'नीतीश कुमार को धन्यवाद। बिहार के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बने रहने के लिए मेरी आपको शुभकामनाएं। ईश्वर आपका भला करें।' जबकि पवन वर्मा ने लिखा, 'आपका और आपकी नीतियों का बचाव करने की दी गई जिम्मेदारी से मुझे मुक्त करने के लिए नीतीश कुमार जी आपको धन्यवाद। किसी भी कीमत पर बिहार का मुख्यमंत्री बने रहने की महात्वाकांक्षा के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं।'

जद-यू से पवन वर्मा  का साथ प्रशांत किशोर से भी पुराना है। वर्मा भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के अधिकारी रहे हैं। वह लेखक भी हैं। वह जद-यू में 2013 में शामिल हुए। वर्मा नीतीश कुमार के संस्कृति सलाहकार रह चुके हैं। नीतीश कुमार से अपनी निकटता के चलते वह जद-यू से राज्यसभा के सदस्य रहे और बाद में पार्टी ने उन्हें महासचिव भी बनाया। 

बताया जाता है कि प्रशांत किशोर को जद-यू में लाने वाले पवन वर्मा ही थे। साल 2015 में वर्मा की पहल पर किशोर को पार्टी का चुनावी रणनीतिकार बनाया गया। इसके बाद पीके के प्रयासों के चलते दो धुर विरोधी दलों जद-यू और राजद एक-दूसरे के साथ आने के लिए तैयार हुए और विधानसभा चुनावों के लिए महागठबंधन तैयार हुआ। बिहार चुनाव में पीके का नारा 'बिहार में बिहार हो, नीतीशे कुमार हो' हिट हुआ। पीएम नरेंद्र मोदी के डीएनए वाले बयान को पीके ने बिहार के सम्मान से जोड़कर उसे चुनावी मुद्दा बना दिया। दोनों को निकालते हुए जद-यू ने कहा है कि पार्टी से बड़ा कोई नहीं है और ये दोनों नेता पार्टी के रुख से अलग हटकर विवादित बयान दे रहे थे।

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