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Interview: मैसूर के इस शिल्पकार ने बनाई शंकराचार्य की मूर्ति, कृष्णा शिला, नारियल,11 महीने की मेहनत का है नतीजा

Updated Nov 05, 2021 | 13:11 IST

Modi In Kedarnath: मैसूर के अरूण योगीराज ने आदि गुरू शंकराचार्य की मूर्ति का निर्माण किया है। उसे बनाने में उन्हें करीब 11 महीने का वक्त लगा। इस दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

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केदारनाथ में पीएम मोदी ने आदि गुरू शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया
मुख्य बातें
  • आदि गुरू शंकराचार्य की मूर्ति को मैसूर से चमोली तक सड़क मार्ग से और वहां से चिनूक हेलिकॉप्टर के जरिए केदारनाथ तक पहुंचाया गया।
  • 12 फुट ऊंची शंकराचार्य की मूर्ति, आग, पानी, किसी भी मौसम, एसिड आदि से पूरी तरह से सुरक्षित रहेगी।
  • मूर्ति में कृष्णा शिला का इस्तेमाल किया गया है, जिनका होयसल राजाओं ने मंदिर निर्माण में इस्तेमाल किया था।

PM Modi In Kedarnath : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज  केदारनाथ में आदि गुरू शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया। शंकराचार्य की इस अद्भुत मूर्ति का निर्माण मैसूर के शिल्पकार अरूण योगीराज ने किया है। जिनकी पांच पीढ़ियां मूर्ति निर्माण का काम करती आ रही है। शंकराचार्य की मूर्ति की खासियत क्या है, उसे बनाने में किन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया और  इस दौरान क्या चुनौतियां आई। इस पर टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल ने अरूण योगीराज से बात की है।

सितंबर से शुरू हुआ काम

सबसे पहले हमने एक छोटा मॉडल प्रधानमंत्री को दिखाने के लिए बनाया था। विभिन्न आवेदकों के बीच हम हमारा चयन हुआ तो उसके बाद हमने सितंबर 2020 में मूर्ति बनाने का काम शुरू किया था। और इसे बनाने में करीब 11 महीने लगे। जुलाई 2021 में मूर्ति बनकर तैयार हो गई।  इसके बाद आदि गुरू शंकराचार्य की मूर्ति को केदारनाथ में स्थापित करने का काम शुरू हुआ। जो एक महीने में पूरा हुआ।

मूर्ति की क्या है खासियत

कृष्णा शिला पत्थर से बनी मूर्ति 12 फुट ऊंची है। इसमें से 3 फुट  शंकराचार्य का बैठा हुआ हिस्सा है। जबकि 9 फुट हिस्सा आधार (बेस) है। जिसे 8 पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया है। मूर्ति का रंग गहरा नीला है। जिसमें हल्का कालापन लाने के लिए हमने नारियल तेल और उसके पाउडर का इस्तेमाल किया है।  यह मूर्ति एसिड, पानी, किसी तरह के मौसम, आग से सुरक्षित रहेगी। कृष्णा शिला पत्थर की यही खासियत होती है, जो इन चीजों से मूर्ति को बचाती है। 

प्राकृतिक आपदा में भी रहेगी सुरक्षित

केदारनाथ में साल 2013 में जिस तरह प्राकृतिक आपदा आई थी। उससे यह मूर्ति कितनी सुरक्षित है। इस पर अरूण योगीराज कहते हैं कि इसका डिजाइन इस तरह तैयार किया गया, कि वह 2013 में आई प्राकृतिक आपदा  से सुरक्षित रह सकती है। इसके लिए मूर्ति को तीन घेरे के अंदर रखा गया है। 

चिनूक हेलिकॉप्टर से केदारनाथ पहुंची मूर्ति 

पहले मैसूर से चमोली एयरबेस तक सड़क मार्ग से मूर्ति को पहुंचाया गया। उसके बाद चिनूक हेलिकॉप्टर के जरिए मूर्ति को केदारनाथ पहुंचाया गया। मूर्ति को स्थापित करने के लिए मैं और मेरे साथी वहां गए थे।  7 लोगों की टीम ने एक महीने तक इसकी स्थापना के लिए काम किया।

1000 साल से हो रहा है कृष्णा शिला का इस्तेमाल

कृष्णा शिला मैसूर से करीब 50 किलोमीटर एचडी कोटे में प्रमुख रुप से पाई जाती है। जिसका करीब 1000 साल से मंदिरों के निर्माण में इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसे होयसल राजाओं ने मंदिर निर्माण में इस्तेमाल किया ।  हासन जिले में ऐसे मंदिर हैं। जो 900 साल से बिना क्षति हुए स्थित हैं।

5 पीढ़ी से मूर्ति बनाने का काम

अरूण योगी राज के अनुसार उनका खानदान करीब 200-250 साल से मूर्ति बनाने का काम कर रहा है। वह पांचवी पीढ़ी हैं। उनके पिता स्वर्गीय बी.एस. योगीराज शिल्पी उनके गुरू थे। और इस प्रोजेक्ट पर उन्हें गाइड कर रहे थे। उनके बाबा (Grand Father) बी.बासवन्ना शिल्पी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शिल्पी थे । प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से उन्हें पुरस्कार मिला था। साथ ही बाबा की दो बेटियां मूर्तिकार बनीं। और अरूण योगीराज की चाची भी मूर्तिकार रही हैं। अरूण के बाबा मैसूर राजघारने के लिए प्रमुख रुप से मूर्तियां बनाते थे।

राम कृष्ण परम हंस की मूर्ति बनाई

अरूण बताते हैं कि उन्होंने मैसूर के अंतिम  महाराजा की मूर्ति बनाई है। इसके अलावा हाल ही में राम कृष्ण परमहंस की संगमरमर की 12  फुट ऊंची मूर्ति बनाई है। जो  मैसूर में लगी हई है।

मूर्ति बनाने में क्या आई चुनौती

आदि गुरू शंकराचार्य की मूर्ति बनाना काफी चुनौतीपूर्ण काम था। यह एक 3 डायमेंशनल स्ट्रक्चर है।  हमें 360 डिग्री एक्जीक्यूट किया है। हमने कोशिश है कि जो भी लोग आदि गुरू शंकराचार्य को मूर्ति देखें तो उन्हें पूरी तरह से वास्तविकता का अहसास हो। इसके लिए फोटोग्राफी की, ड्रेस को लेकर काफी काम किया। जिसके बाद मूर्ति तराशने का काम शुरू किया गया। एक बात और जो अहम है कि मूर्तिकार को एक ही बार मूर्ति को रूप देने का मौका मिलता है। क्योंकि उसमें वह करेक्शन नहीं कर सकता। इसलिए चुनौती और बढ़ जाती है।

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