- राजस्थान विधानसभा सत्र बुलाए जाने पर अब सियासत
- राज्यपाल का कहना है कि विधानसभा सत्र बुलाने के लिए 21 दिन पहले नोटिस जरूरी
- अशोक गहलोत सरकार का कहना कि कैबिनेट के प्रस्ताव को मना नहीं कर सकते हैं राज्यपाल
नई दिल्ली। राजस्थान में अशोक गहलोत के पास विधायकों का समर्थ जैसा वो दावा करते हैं। लेकिन डर इस बात की भी है कि कहीं किसी विधायक का मन न बदल जाए इसलिए वो विश्वासमत हासिल करना चाहते हैं। गहलोत कैबिनेट की बैठक होने वाली है और दो बार बैठक हो चुकी है। विधानसभा बुलाने का प्रस्ताव राज्यपाल के पास भेजा गया। लेकिन तकनीकी आधार पर प्रस्ताव को नकार दिया गया। राजस्थान की इस सियासी तस्वीर पर राज्य कांग्रेस के साथ कांग्रेस के केंद्रीय नेता भी हमलावर हैं। पी चिदंबरम ने कहा कि राजस्थान विधानसभा के मामले में राष्ट्रपति को अब दखल देना चाहिए।
राजस्थान के राज्यपाल पर कांग्रेस का निशाना
राज्यपाल ने गहलोत की सिफारिश को जब मानने से इंकार कर दिया तो सियासी तीर चलाए जा रहे हैं। राजस्थान हाईकोर्ट में राज्यपाल को हटाने के लिए याचिका लगाई गई है और इधर कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम भी निशाना साध रहे हैं।यदि कोई सीएम बहुमत प्राप्त नहीं करने का आरोप लगाता है, तो वह बहुमत साबित करना चाहता है, वह जल्द से जल्द एक सत्र बुलाने का हकदार है। कोई भी उसके रास्ते में नहीं खड़ा हो सकता। किसी भी बाधा को रखने से संसदीय लोकतंत्र के मूल आधार को कमजोर किया जाएगा।
2014 के बाद गवर्नर पद का राजनीतिकरण
भारत के राष्ट्रपति के पास राज्यपाल को यह बताने का पूर्ण अधिकार है कि वह क्या कर रहा है वह गलत है। मैं केवल यह आशा कर सकता हूं कि राष्ट्रपति मामले में हस्तक्षेप करेंगे और राज्यपाल को सत्र बुलाने का निर्देश देंगे2014 से भाजपा द्वारा नियुक्त राज्यपालों ने भारत के संविधान की पत्र और भावना का बार-बार उल्लंघन किया है। इस प्रक्रिया में, उन्होंने संसदीय लोकतंत्र, इसकी परंपराओं और परंपराओं को गंभीर रूप से बिगड़ा है।