- बंगाल में कुछ विधायक तृणमूल कांग्रेस में वापसी की राह देख रहे हैं
- कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी बीजेपी ज्वाइन की थी
- जितिन प्रसाद की भी महत्वाकांक्षा जागी और वो अब वो सत्तारूढ़ बीजेपी का हिस्सा
सत्ता की ऑक्सीजन भी गजब होती है जिसकी जरूरत हर खादीधारी को होती ही है, क्योंकि इसमें वो नशा है जो कहीं और नहीं, जी हां हम बात कर रहे हैं भारतीय राजनीति (Indian Politics) की और नेताओं (Politicians) की जिन्हें किसी भी कीमत पर राजनीति में छाए रहने की सुर्खियों में बने रहने की तड़प लगी रहती है और इसके लिए वो कोई भी साम-दाम दंड भेद अपनाने में गुरेज नहीं करते हैं, अब इसके लिए विपक्ष की राजनीति (Opposition Party) तो सही नहीं है सो किसी भी तरह से जुगत लगाकर नेता बिरादरी सत्ताधारी पार्टी (Ruling Party) में बने रहना चाहता है और वो इसका हिस्सा नहीं है तो दलबदल करने में भी कोई संकोच नहीं। चाहे इसके लिए नैतिकता और भरोसे को ताक पर ही क्यों ना रखना पड़े, अब तो पॉलिटिक्स में दलबदल और पार्टी से निष्ठा बदलना तो सुर्खियां भी नहीं बनता क्योंकि ये अब बेहद आम सा होता जा रहा है।
जनता कितनी उम्मीद से एक विधायक, एक सांसद को एक पार्षद को चुनकर भेजती है कि वो उसकी उम्मीदों को पूरा करेगा उसकी बात सुनेगा उसकी समस्याओं को सुलझाएगा लेकिन भोली जनता को उस वक्त झटका लगता है जब नेताजी रातों रात निष्ठा बदलकर सत्ता के मलाई के लिए दलबदल कर लेते हैं, ऐसे एक नहीं तमाम उदाहरणों की इमारतें भारतीय राजनीति में दर्ज हैं जब नेताओं ने सत्ता की ऑक्सीजन के लिए अपनी प्राथमिकताएं अपनी निष्ठा को भुलाने में मिनट नहीं लगे।
पहले की राजनीति की बात करें तो उस वक्त दल बदलना या पार्टी छोड़ना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी और बड़ी सुर्खियां बनती थीं कि फलाने नेताजी ने अपने निहित स्वार्थ की खातिर पाार्टी बदल ली, लेकिन अब तो इसकी बात करना बेमानी है क्योंकि ये अब बड़े पैमाने पर होने लगा है और जनता भी इसे बखूबी समझती है और अब इसे कोई बड़ी खबर भी नहीं माना जाता है क्योंकि अब पॉलिटिक्स सुविधा के अनुसार हो गई है जिसमें अपना अपने बेटे-बेटियों और परिजनों का राजनीतिक हित सर्वोपरि नजर आता है।
बीजेपी ने बंगाल चुनाव से पहले बड़े चेहरों को किया पक्ष में
ताजा मामले की बात करें तो पश्चिम बंगाल में इसकी बानगी सामने आई है, इसको समझने के लिए बंगाल इलेक्शन होने के थोड़ा पीछे जाना होगा जब सूबे में पैर जमाने की कोशिश कर रही बीजेपी को बंगाल में टीएमसी के नामचीन चेहरों को अपने पक्ष में करने में ज्यादा मशक्कत नहीं पड़ी और इसमें वो काफी कामयाब भी रही, कई बड़े नाम मसलन सुवेंदु अधिकारी, मुकुल रॉय जैसे बड़े चेहरे शामिल रहे थे इसके अलावा और भी बड़े-छोटे नाम भी बीजेपी के साथ जुड़े, मकसद वही था कि बीजेपी सत्ता पर काबिज होगी और सत्ता की ऑक्सीजन बनी रहेगी हालांकि ये सभी जानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं हुआ और नतीजे सामने हैं।
'दीदी" का साथ छोड़ कमल का फूल थाम बैठे नेता हुए 'परेशान'
हाल ही में संपन्न हुए चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी ने राज्य में दोबारा सत्ता हासिल की है 294 विधानसभा सीटों वाले बंगाल में टीएमसी को 213 और बीजेपी को 77 सीटें हासिल हुईं, इससे बीजेपी को झटका लगना स्वाभाविक ही था लेकिन उससे ज्यादा शॉक्ड हुए टीएमसी के नेता जो दीदी का साथ छोड़ कमल का फूल थाम बैठे थे कि वो सत्ता का हिस्सा होने जा रहे हैं।
बंगाल में अब नजर आ रही है स्थिति जुदा सी
पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों में बीजेपी जो सत्ता पर काबिज होने के मंसूबे पाले हुए थे वो धाराशाई हो गए क्योंकि चुनाव परिणाम ममता दीदी के पक्ष में गए। हालांकि बीजेपी ने अपनी स्थिति पहले से मजबूत की है और राज्य में पार्टी के विधायकों की संख्या बढ़कर 77 हो गई, अगर ये कहा जाए कि इस सफलता के पीछे टीएमसी के बागी नेताओं का जनाधार उनकी जनता में पकड़ भी शायद एक बड़ी वजह थी तो गलत ना होगा। ये बात भी सच है कि बीजेपी ने राज्य की सत्ता के लिए बहुत मेहनत की और चुनाव से पहले पार्टी के दिग्गज नेताओं की जमात से लेकर पीएम मोदी ने भी चुनाव प्रचार में खासा समय दिया।
टीएमसी छोड़ बीजेपी में आए नेताओं को फिर याद आ रहीं "दीदी"
पश्चिम बंगाल की राजनीति में पाला बदल चुके नेता सत्ता की ऑक्सीजन की कमी से असहज महसूस कर रहे हैं कुछ विधायक तृणमूल कांग्रेस में वापसी की राह देख रहे हैं मीडिया रिपोर्टों की मानें तो ऐसे विधायकों की तादाद ठीक-ठाक बताई जा रही है। पूर्व टीएमसी नेता सोनाली गुहा, दीपेंदु विश्वास और सरला मुर्मू पहले ही टीएमसी में वापसी की इच्छा जाहिर कर चुके हैं वहीं टीएमसी के कद्दावर नेता और दीदी के कभी बेहद खास रहे और अब बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय ने तो घर वापसी कर भी ली है मुकुल रॉय के बाद राजीब बनर्जी की टीएमसी में वापसी हो सकती है ऐसे संकेत मिल रहे हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में असहज थे!
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी पिछले साल बीजेपी ज्वाइन की थी, उनका कांग्रेस पार्टी छोड़ना तो सूबे में कांग्रेस की सत्ता से बेदखली का सबब बना और ज्योतिरादित्य के साथ कांग्रेस से बगावत कर 25 विधायक बीजेपी में शामिल हुए थे, कांग्रेस के इन विधायकों के त्यागपत्र देकर बीजेपी में शामिल होने के कारण प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई थी, जिसके कारण कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी थी। यानी सिंधिया के साथ कांग्रेस के ये विधायक भी अब सत्ता का आनंद ले रहे हैं।
जितिन भी कांग्रेस से 'कर गए किनारा' अब बनेंगे 'सत्ता का हिस्सा'
जितिन प्रसाद कांग्रेस पार्टी का बड़ा नाम थे और राहुल- प्रियंका गांधी के करीबियों में उनका शुमार था और उनको मनमोहन सिंह सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया था 2009 से 2011 तक सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री रहे। इसके साथ ही 2011-12 में उनको पेट्रोलियम मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई इतना ही नहीं 2012-14 में वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री भी रहे। लेकिन कांग्रेस 2014 तक सत्ता में रही और जितिन प्रसाद को सत्ता में शामिल रहने का रोब-दाब के साथ अहम मंत्रालयों को संभालने का मौका मिला। साल 2014 से कांग्रेस को बेदखल कर मोदी सरकार सत्ता पर काबिज हुई तो कुछ साल के इंतजार के बाद जितिन प्रसाद की भी महत्वाकांक्षा जागी और वो अब बीजेपी में शामिल हो गए हालांकि कहा जा रहा है कि इसके पीछे बीजेपी के अपने हित हैं क्योंकि जितिन प्रसाद प्रदेश में बाह्मण चेहरा हैं जिसकी बीजेपी को दरकार थी।
बीजेपी में जितिन को मिलेगा 'बड़ा तोहफा', फिर से बड़ेगा ओहदा!
वहीं कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए जितिन प्रसाद को बीजेपी बड़ा तोहफा दे सकती है कहा जा रहा है कि जितिन प्रसाद को योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है। जितिन यूपी में ब्राह्मण फेस हैं ऐसे में चुनाव प्रचार में उतारने से पहले बीजेपी उन्हें बड़ा रोल देना चाहती है जिससे ये मैसेज जाए कि पार्टी में उनका कद बड़ा है। वहीं जितिन प्रसाद ने कहा था-मैंने कांग्रेस किसी व्यक्ति के चलते या किसी पद के लिए नहीं छोड़ी, मेरे कांग्रेस छोड़ने का कारण यह था कि पार्टी और लोगों के बीच सम्पर्क टूट रहा है, ये बात तो अमूमन सभी पार्टी छोड़कर आए नेतागण कहते ही हैं और ये बयान भी खासे चर्चित हैं कि मैंने देश के लिए देश की जनता के लिए त्याग किया है हालांकि इसके पीछे की सच्चाई क्या है ये जनता बखूबी जानती है।
पहले भी सामने आते रहे हैं पार्टी बदलने के मामले
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व संस्करण भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी अपने समय में देश के टॉप राजनेताओं में शुमार किए जाते थे और वे लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे। डॉ. मुखर्जी भी आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू की सरकार में मंत्री थे, लेकिन दोनों ही नेताओं को वैचारिक मतभेदों के चलते बाद में कांग्रेस से अलग होना पड़ा। डॉ. मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मदद से भारतीय जनसंघ की स्थापना कर ली। वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर रहे आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया आदि नेताओं ने तो बड़ी संख्या में अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़कर सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया था लेकिन इन मामलों में सोच का स्तर बड़ा था और ये बदलाव देश की राजनीति में आगे जाकर खासा फलीभूत हुआ, लेकिन अभी के दलबदल इससे इतर हैं और इसके पीछे के 'छिपे मकसद' दरअसल किसी से भी खासकर 'जनता' से 'छिपे' नहीं हैं।