लाइव टीवी

Raghuvansh Prasad Singh: क्या बिहार का कोई भी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह बन पाएगा?

Raghuvansh Prasad Singh
बीरेंद्र चौधरी | सीनियर न्यूज़ एडिटर
Updated Sep 13, 2020 | 17:35 IST

Raghuvansh Prasad Singh: पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह का दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया है। क्या आरजेडी के पास उनका विकल्प है।

Loading ...
Raghuvansh Prasad SinghRaghuvansh Prasad Singh
रघुवंश प्रसाद सिंह का निधन
मुख्य बातें
  • पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह का दिल्ली एम्स में निधन
  • तबियत बिगड़ने के बाद उन्हें आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा गया था
  • प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? आप इतनी दूर चले गए। नि:शब्द हूं। दुःखी हूं। बहुत याद आएंगे: लालू यादव

आज बिहार के एक कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह का दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में निधन हो गया। रघुवंश बाबू अपने आप में कई रूप के प्रतिबिम्ब थे जैसे बिहारी नेता, अक्खड़ नेता, ग्रामीण भारत के नेता, धरती से जुड़े नेता, ईमानदार नेता, और सादगी के नेता। 

स्टूडियो से संसद तक एक ही भाव 

हम स्वयं रघुवंश बाबू से मिले थे जैसे चैनल के कार्यक्रम के दौरान और मकर संक्रांति के भोज के अवसर पर। चैनल के कार्यक्रम के दौरान भी रघुवंश बाबू वही रघुवंश बाबू रहते थे जैसा कि आम जीवन में। उनके उत्तर में हमेशा एक सच्चाई और ईमानदारी झलकती थी। कहने का तात्पर्य उनमें बनावटी उत्तर का मुखौटा नहीं दिखता था। इतना ही नहीं चैनल स्टूडियो हो या संसद हर जगह रघुवंश बाबू ही होते थे ना कि सरकारी मुखौटा।  

रघुवंश बाबू का मकर संक्रांति भोज 

दूसरा रघुवंश बाबू जब तक संसद सदस्य रहे चाहे वो केंद्रीय मंत्री ही क्यों न हों हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर 'चूड़ा दही' का भोज दिया करते थे। उस भोज में हमें भी शामिल होने का मौका मिला। उस भोज में सबसे मिलना जुलना बिहार अंदाज में कभी भुलाया नहीं जा सकता है।    

राजनीति की शुरुवात होम टाउन सीतामढ़ी से  

रघुवंश बाबू ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुवात बिहार के सीतामढ़ी से शुरू की यानी राजनीति की शुरुआत डिस्ट्रिक्ट टाउन सीतामढ़ी। वहां से चलते चलते दिल्ली तक पहुंचे। इस राजनीतिक यात्रा में उनके नेता थे राम मनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर। यही कारण  है कि रघुवंश बाबू की सोच और विचार धारा हमेशा समाजवादी रही, क्योंकि उनके नेता थे लोहिया और कर्पूरी ठाकुर। रघुवंश बाबू 1973 में सीतामढ़ी में सम्युक्त सोशलिस्ट पार्टी के सचिव बने और कुछ सालों के बाद वो सीतामढ़ी लोक दल के जिला अध्यक्ष के पद पर आसीन  हुए।   

राजनीतिक यात्रा पहुंची पटना 

रघुवंश बाबू पहली बार बिहार विधान सभा के चुनाव को जीतकर पटना पहुंचे और उसके बाद लगातार 1977 से लेकर 1990 तक बिहार विधान सभा के सदस्य रहे। इतना ही नहीं बल्कि पहली जीत के बाद ही मंत्री बन गए और  1977 से 1980 तक बिहार सरकार में मंत्री रहे। राजनीतिक रुतबा बढ़ता गया और रघुवंश बाबू 1990 में बिहार विधान सभा के डिप्टी स्पीकर बने। बिहार के ऊपरी सदन में 1994-1995 में बिहार विधान परिषद के चेयरमैन भी बने। 

रघुवंश बाबू पहुंचे लोक सभा 

रघुवंश बाबू पहली बार 1996 में लोक सभा चुनाव जीतकर पहुंचे दिल्ली और उसके लगातार 5 बार लोक सभा के सदस्य रहे। 1996 से 1998 तक भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे। 1999 से 2000 तक राष्ट्रीय जनता दल के लोक सभा में संसदीय नेता रहे।  

रघुवंश बाबू बने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री 

2004 में यूपीए की सरकार में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बने और उसके बाद दिखा रघुवंश बाबू की असली सोच और कार्य। मनरेगा का जन्म हुआ और उस मनरेगा को जन्म देने वालों में एक रघुवंश बाबू थे क्योंकि उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुवात सीतामढ़ी और वैशाली जैसे जगह से की थी और उन्हें पता था कि गरीबी की मार क्या होती है। गरीब आदमी कैसे एक एक पैसे के लिए दर दर की ठोकरें खाता है और दो वक्त की रोटी कहां से आएगी उस गरीब आदमी को पता तक नहीं होता। जितनी भी निंदा करें लेकिन उस मनरेगा ने एक गरीब परिवार को मरने से बचा लिया। सरकारी कानून तो बहुत बनाते हैं लेकिन वो सिर्फ किताबों पर ही रह जाता है लेकिन जमीनी स्तर पर लागू नहीं होता। लेकिन मनरेगा पूरे देश में लागू हुआ और यदि इसका श्रेय यदि किसी एक व्यक्ति को जाता है तो वो हैं रघुवंश प्रसाद सिंह।  

आखिर रघुवंश बाबू ने आरजेडी से इस्तीफा क्यों दिया?

रघुवंश बाबू का लालू प्रसाद से रिश्ता तीन दशकों से रहा है बल्कि कहा जाता है कि दोनों एक दूसरे के दुःख सुख के साथी थे और लालू प्रसाद हमेशा रघुवंश बाबू से पारिवारिक रिश्ता बनाए रखते थे। लेकिन अब स्थितियां बदल चुकी है, चूंकि लालू काफी समय से जेल में हैं तो उनकी पार्टी का पारिवारिक दारोमदार उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव पर है। और लालू प्रसाद के दोनों पुत्र तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव रघुवंश बाबू के धुर विरोधी वैशाली के पूर्व एलजेपी सांसद रामा सिंह को आरजेडी में लाना चाहते हैं। इस बात का रघुवंश प्रसाद विरोध कर रहे थे। रघुवंश प्रसाद की नाराजगी पर पूछे गए सवाल पर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव ने कहा कि पार्टी समुद्र होता है, उससे एक लोटा पानी निकलने से कुछ नहीं होता है। रघुवंश प्रसाद की तुलना एक लोटा पानी से किए जाने पर विवाद शुरू हो गया था। हालांकि लालू प्रसाद यादव ने तेज प्रताप को इस तरह का बयान देने के लिए फटकार लगाई थी। लेकिन हदें तो तब पार हो गईं जब कुछ समय बाद तेजस्वी यादव ने साफ साफ कह दिया कि रामा सिंह को पार्टी में लेने पर पार्टी निर्णय लेगी। 

परिणाम ये हुआ कि रघुवंश प्रसाद सिंह आहत होकर दिल्ली के एम्स बिस्तर पर लेटे-लेटे पार्टी से अपना इस्तीफा दे दिया जो इस प्रकार है-

10.09.2020 दिल्ली एम्स

सेवा में,
राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय
रिम्स अस्पताल रांची।
जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे खड़ा रहा। लेकिन अब नहीं। पार्टी नेता, कार्यकर्ता और आमजन ने बड़ा स्नेह दिया, मुझे क्षमा करें।
रुघुवंश प्रसाद
10.09.2020
रघुवंश प्रसाद का हस्ताक्षर

लेकिन सवाल है कि क्या लालू प्रसाद यादव या आरजेडी के पास रघुवंश प्रसाद सिंह का कोई विकल्प है? आखिर में इतना ही कहेंगे कि आज के डेट में किसी बिहारी नेता में रघुवंश प्रसाद सिंह बनने की कूबत नहीं है क्योंकि अधिकांश बिहारी नेता सोचते हैं कि यदि बिहारी बन के रहेंगे तो लोग बिहारी समझेंगे जिससे उनका कद छोटा हो जाएगा। लेकिन रघुवंश बाबू ने कभी भी ऐसा नहीं सोचा इसीलिए वो रघुवंश प्रसाद सिंह थे।

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।