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बंगला खाली करने का मिला नोटिस, तो चिराग ने 12 जनपथ में लगवा दी Ram Vilas Paswan की मूर्ति

Updated Sep 07, 2021 | 08:07 IST

Ram Vilas Paswan Bust: लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक दिवंगत रामविलास पासवान के सरकारी बंगला कुछ समय पहले नए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को आवंटित हुआ था, लेकिन चिराग ने यहां अपने पिता की मूर्ति लगवा दी है।

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चिराग ने 12 जनपथ में लगवाई रामविलास पासवान की मूर्ति
मुख्य बातें
  • दिवंगत रामविलास पासवान के सरकारी बंगले में चिराग ने लगवाई पिता की मूर्ति
  • कुछ समय पहले ही रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को आवंटित हुआ था बंगला
  • रामविलास पासवान के बंगले को स्मारक घोषित करने की भी उठी थी मांग

नई दिल्ली: लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के संस्थापक और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान  (Ram Vilas Paswan)का 12 जनपथ स्थित बंगला इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है। दरअसल पासवान के निधन के बाद जब नया कैबिनेट फेरबदल हुआ तो इस बंगले को रेल और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव को अलॉट कर दिया गया। अब जो खबर सामने आ रही है, उसके मुताबिक रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने यहां कुछ समय पहले अपने पिता की मूर्ति लगवा दी है। पासवान इस बंगले में करीब 30 साल तक रहे थे।

12 जनपथ में लगाई मूर्ति

यह मूर्ति कुछ दिनों पहले ही 12 जनपथ पर लगाई गई है जिस पर 'रामविलास पासवान स्मृति' लिखा हुआ है। यहां पासवान के बेटे चिराग रह रहे हैं। जमुई से लोकसभा सदस्य के रूप में चिराग को 23, नॉर्थ एवेन्यू आवंटित किए जाने के बावजूद बंगले में रह रहे थे। पासवान परिवार को पासवान की मृत्यु के एक साल के भीतर बंगला खाली करना था, जिसकी समय सीमा पहले ही समाप्त हो गई। चिराग के करीबी सूत्रों ने कहा कि उन्हें कुछ और महीनों का विस्तार मिला है।

स्मारक घोषित करने की उठी थी मांग

आपको बता दें कि रामविलास पासवान की मौत के बाद यह मांग उठी थी रामविलास पासवान के बंगले को उनकी स्मृति स्थल या मेमोरियल बनाया जाए। हम पार्टी के संस्थापक जीतनराम मांझी खुलकर मांग कर चुके हैं कि 12 जनपथ को दिवंगत दलित नेता का स्मारक बनाया जाए। फिलहाल भाजपा इसे लेकर कुछ भी कहने से बच रही है। आपको बता दें कि पहले से ही लुटियंस दिल्ली में जगजीवन राम, कांशीराम जैसे दलित नेताओं के स्मृति स्मारक बने हुए हैं।

इससे पहले यह बंगला रामविलास पासवान के भाई और केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस को आवंटित हुआ था लेकिन उन्होंने इसे लेने से इंकार कर दिया था। पारस ने इसके पीछे तर्क दिया था कि यदि वो यहां रहते तो उन्हें पासवान की याद आते रहती, इसलिए उन्होंने बंगला नहीं लिया।

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