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38 साल बाद सियाचिन की बर्फ के नीचे दबा मिला जवान का शव, बर्फीले तूफान की चपेट में आकर शहीद हो गए थे हर्बोला

Updated Aug 15, 2022 | 16:59 IST

Chandrashekhar Harbola: हल्द्वानी निवासी चंद्रशेखर हरबोला जो ऑपरेशन मेघदूत के समय 28 साल के थे और 19 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात थे। ऑपरेशन के दौरान वह अचानक से लापता हो गए।

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चंद्रशेखर की तस्वीर के साथ में पत्नी शांति देवी और बेटी कविता
मुख्य बातें
  • 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान सियाचिन में लापता हो गए थे चंद्रशेखर हर्बोला
  • 38 साल बाद बर्फ के नीचे दबा मिला हर्बोला का शव
  • आज हल्द्वानी में पूरे सैन्य सम्मान के साथ होगा हर्बोला का अंतिम संस्कार

Chandrashekhar Harbola News: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। सीमाओं पर तैनात जवानों की तिरंगा फहराने वाली कई तस्वीरें और वीडियो सामने आ रहे हैं। इन सबके बीच उत्तराखंड के एक जवान तो आज से करीब 38 साल पहले सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान लापता हो गया था, उसका पार्थिव शरीर बर्फ में दबा मिला है। हल्द्वानी निवासी चंद्रशेखर हर्बोला 18 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात थे। 29 मई 1984 को ऑपरेशन मेघदूत के दौरान अचानक से बर्फीला तूफान यानि एवलॉन्च आया तो करीब 19 जवान उसमें दब गए। काफी खोजबीन के बाद भी 5 जवानों के शव नहीं मिल सके थे और उनमें से एक थे चंद्रशेखर हर्बोला।

38 साल बाद मिला शव

 इसके बाद सेना ने चंद्रशेखर हर्बोला के परिवार को उनके शहीद होने की सूचना दे दी। काफी समय तक चंद्रशेखर हर्बोला के परिवार वाले उनका इंतजार इस आस में करते रहे कि शायद कोई चमत्कार हो वो लौट आएं। समय बीत जाने के बाद हर्बोला के परिजनों ने पहाड़ी रिति रिवाज से उनका क्रिया कर्म कर दिया। जिस समय हर्बोला सियाचिन में शहीद हुए थे तो उस समय उनकी उम्र 28 साल थी जबकि उनकी पत्नी शांति जो अब 64 साल की हैं उस समय 26 साल की थी। तब चंद्रशेखर के दो छोटी बेटियां थी जिनकी अब शादी हो चुकी है। इस बार जैसे ही सियाचिन में बर्फ पिघलनी शुरू हुई तो सेना ने जवानों के शव खोजने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया तो वहां एक बंकर के अंदर हर्बोला का पार्थिव शरीर मिला। उनके शवर की पहचान बैच नंबर से हुई जिस पर 5164584 लिखा था। 

पत्नी ने कही ये बात

चंद्रशेखर का शव आज उनके शहर हल्द्वानी पहुंचेगा जहां पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि होगी। जैसे ही उनके परिवार को शव मिलने की सूचना मिली तो परिवार को गम के साथ खुशी भी हुई। उनकी पत्नी शांति देवी ने बताया, 'फोन से सूचना मिली कि उनका शव मिला है। आठ – 9 साल तक तो हम इंतजार करते रहे कि शायद कोई चमत्कार हो जाए और वो वापस लौट जाएं लेकिन फिर हमने भी उम्मीद छोड़ दी।’ 

बेटी को याद भी नहीं

उनकी बेटी कविता बताती हैं, ‘जिस समय पापा शहीद हुए उस समय छोटी बहन डेढ़ साल की थी, तो हमको तो कुछ याद भी नहीं है पापा की। बस इस बार उनका चेहरा देख सकेंगे। पर अब कहीं पर सही लग रहा है कि हम उन्हें देख पाएंगे, लेकिन दुख भी हो रहा है।’ उनके भतीजे ने बताया कि काफी समय तक हम असमंजस में रहे कि क्या करें फिर हमने उनका अंतिम संस्कार कर दिया। लेकिन अब शव मिला है तो यह अच्छी बात है।'
 

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