नई दिल्ली : देश 26 जनवरी को 72वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। इस बार गणतंत्रण दिवस समारोह का आयोजन कोरोना वायरस संक्रमण के बीच हो रहा है, जिसे देखते हुए कई तब्दीली की गई है। इस बार गणतंत्र दिवस समारोह पर मुख्य अतिथि के तौर पर कोई विदेशी मेहमान भी नहीं होगा, जबकि अन्य वर्षों में यह एक आम परंपरा रही है। गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के तौर पर इस बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को यहां आना था, लेकिन ब्रिटेन में कोविड-19 के नए स्ट्रेन के सामने आने के बाद उनका दौरा टल गया है। लेकिन इन सबसे इतर क्या आप जानते हैं कि आखिर गणतंत्र दिवस मनाने की शुरुआत भारत में कब और कैसे हुई?
देश में पहला गणतंत्र दिवस समारोह 26 जनवरी 1950 को आयोजित किया गया था। 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश शासन से देश को मिली आजादी के लगभग ढाई साल बाद पहले गणंत्र दिवस समारोह का आयोजन हुआ था। गणतंत्र दिवस समारोह भारत के एक गणतंत्र के रूप में अस्तित्व में आने और देश का अपना संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। देश की आजादी के बाद इसके संविधान निर्माण की कवायद शुरू हुई। इसके लिए संविधान सभा का गठन किया गया, जिसने देश के लिए अपना अलग संविधान लिखने का काम शुरू किया। संविधान सभा को इसमें 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन का समय लगा, जिसके बाद 26 नवंबर 1949 को इसे अंगीकार किया गया। लेकिन यह संविधान लागू हुआ 26 जनवरी, 1950 को।
शपथ लेने के बाद राष्ट्रपति को दी गई तोपों की सलामी
भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल, जो देश के पहले भारतीय गर्वनर जनरल भी रहे, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया था। इसके छह मिनट के बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति के तौर पर शपथ दिलाई गई थी। उन्होंने गवर्मेंट हाउस के दरबार हॉल में शपथ ली थी। उसी गवर्मेंट हाउस को आज राष्ट्रपति भवन के तौर पर जाना जाता है। शपथ लेने के बाद राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सुबह 10:30 बजे तोपों की सलामी दी गई और यह परंपरा तभी से जारी है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में 26 जनवरी के महत्व को देखें तो इसकी पृष्ठभूमि कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन से ही नजर आती है। इसमें जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के इस अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित कर कहा गया था कि अगर ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी, 1930 तक भारत को 'डोमीनियन स्टेटस' नहीं दिया, तो इसे पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में तिरंगा फहराया गया और हर साल 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज दिवस के तौर पर मनाने का भी निर्णय लिया गया।
इस तरह 15 अगस्त, 1947 को देश को आजादी मिलने तक भी 26 जनवरी की तारीख महत्वपूर्ण बनी रही और यह अनौपचारिक रूप से देश का स्वतंत्रता दिवस बन चुका था। बाद में जवाहरलाल नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।