- ऑपरेशन जैकबूट में आतंकी रियाज नाइकू ढेर
- पुलवामा के बेगपोरा में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया
- हिज्बुल के टॉप कमांडरों में से एक था
नई दिल्ली। बुधवार 6 मई को एक ऐसी कामयाबी मिली जिसका इंतजार एनएसए अजीत डोभाल को भी था। बुरहान वानी और उसकी टीम में शामिल आतंकियों के खात्मे के लिए ऑपरेशन जैकबूट की शुरुआत की गई थी जिसे अपने अंतिम मुकाम पर पहुंचना था। बुरहान के गैंग के अंतिम सदस्य रियाज की तलाश शिद्दत से जारी थी। वो बार बार चकमा देकर निकल जाता था। लेकिन इस दफा वो खुद गच्चा खा गया।
जब घड़ी की सूई ठहरी और आतंकी की कहानी खत्म
रियाज नाइकू 2012 से सक्रिय था और उसे मारने में आठ साल लग गए। रियाज गणित का अच्छा जानकार था और वो बेहतर रणनीति के साथ काम करता था। जब भी वो अपने घर आता था तो एजेंसियों को भनक नहीं लगती थी। दरअसल वो सुरंग के जरिए अपने घर में दाखिल होता था। लेकिन घड़ी की सूई टिक टिक करती हुई उसकी तकदीर की निर्णायक कहानी को अंजाम देने के लिए बुधवार 9.30 पर ठहर गईं और नतीजा सबके सामने था।
(आतंकी रियाज नाइकू)
घेरेबंदी से खात्मे तक की पूरी कहानी
- मुठभेड़ वाले दिन यानि 6 मई से तीन दिन पहले सुरक्षाबलों ने घेरेबंदी की थी और लगातार तलाशी अभियान चलाया जा रहा था।
- मंगलवार की रात बेगपोरा इलाके को आक्रामक अंदाज में घेरा गया और तीन घरों में तलाशी अभियान शुरू हुई। पहले दो घरों में तलाशी में कुछ भी नहीं मिला। इस दौरान नाइकू के साथ दूसरा आतंकी एक दूसरे घर में दाखिल हुआ जिसे ऑपरेशन के अंत में उड़ा दिया गया।
- तीसरे घर में(यह नाइकू के किसी संबंधित का घर था) पुलिस को कुछ प्लास्टिक की शीट मिलीं। इसे दरवाजे पर लगाया गया जिसके जरिए कोई बाहर से देख नहीं सकता सिर्फ सूरज की रोशनी आ सकती थी।
- नाइकू ने इस तीसरे ठिकाने से गोली चलाई उसकी तरफ से कुछ देर तक गोली चली लेकिन अंत में उसे मार गिराया गया। बाद में उस घर को उड़ा दिया गया।
- दूसरे घर में जिसमें आदिल ने शरण ली थी उसे विस्फोट के जरिए उड़ा दिया गया।
- और इस तरह से खत्म हुई वो कहानी। रियाज नाइकू और आदिल को सोनमर्ग इलाके में दोनों परिवारों के पांच पांच सदस्यों की मौजूदगी में दफ्ना दिया गया।
ऑपरेशन के बाद हुई थी पत्थरबाजी
रियाज नाइकू के मारे जाने के बाद अवंतीपोरा में पत्थरबाजों ने सुरक्षाबलों को निशाना बनाया। लेकिन सेक्यूरिटी फोर्सेज की तरफ से संयम का परिचय दिया गया। जानकारों का कहना है कि जब भी किसी बड़े ऑपरेशन में कोई टॉप आतंकी कमांडर मारा जाता है तो इनसे सहानुभूति रखने वाले आम कश्मीरियों को उकसाने की कोशिश करते हैं। लेकिन जिस तरह से सुरक्षा बल संयम का परिचय देते हैं उसके जरिए वो संदेश भी देते हैं कि उनके लिए आम कश्मीरी की जान की हिफाजत सबसे ऊपर है।