- उद्धव ठाकरे के तरफ से साफ हो गया है कि वह इस्तीफा देने वाले नहीं हैं।
- वहीं एकनाथ शिंदे ने दावा कर दिया है कि उनका गुट ही असली शिव सेना है।
- ऐसे में आने वाले दिनों में फ्लोट टेस्ट की संभावना बढ़ गई है।
Role of Governer in Maharashtra Political Crisis:महाराष्ट्र में सियासी संकट अब ऐसे मोड़ पर पहुंच चुका है, जहां पर सबकी निगाहें 80 साल के महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) पर टिक गई हैं। और इसकी शुरूआत भी उन्होंने कर दी है। कोरोना से ठीक होने के बाद , राज भवन लौटे कोश्यारी ने राज्य सरकार से 22-24 जून तक सभी फैसलों की पूरी जानकारी देने के लिए कहा है। इस बीच आज एकनाथ शिंदे ने गुवाहाटी से कहा है कि हमारे पास 50 विधायक हैं और हम असली शिव सेना हैं। और सभी विधायक जल्द मुंबई जाएंगे। शिंदे के इस बयान से साफ है कि राज्यपाल के सामने, शिंदे गुट कभी भी पहुंचकर अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सकता है। जिससे कि राज्यपाल को भरोसा हो सके उनके पास दल-बदल कानून के अनुसार दो तिहाई विधायकों का समर्थन प्राप्त हैं। शिंदे गुट को दल-बदल कानून से बचने के लिए, शिव सेना के 37 विधायकों का समर्थन जरूरी है।
उद्धव और शिंदे गुट अड़े
22 जून से जहां बागी विधायक गुवाहाटी में डटे हुए हैं, वहीं उद्धव ठाकरे के तरफ से साफ हो गया है कि वह फ्लोर टेस्ट से पहले सरेंडर करने वाले नहीं हैं। मंगलवार को कैबिनेट बैठक में यह फैसला किया गया है कि उद्धव ठाकरे इस्तीफा नहीं देंगे। कैबिनेट के बाद महाराष्ट्र के मंत्री असलम शेख ने कहा कि इसके बारे में (महाराष्ट्र राजनीतिक संकट) बात करने की जरूरत नहीं है। हमारा पूरा समर्थन बरकरार है।
साफ है कि अब फ्लोर टेस्ट की संभावना बढ़ गई है। और इसके संकेत मिलने लगे हैं कि शिंदे गुट या भाजपा उद्धव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है। इस बीच भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस, भाजपा के शीर्ष नेताओं से बैठक के लिए दिल्ली पहुंच गए हैं। इस मामले को लेकर एकनाथ शिंदे से भी बातचीत हो सकती है।
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राज्यपाल के पास क्या हैं अधिकार
- संविधान के अनुसार राज्यपाल, कैबिनेट की सिफारिशों के आधार पर फैसला लेता हैं। हालांकि उसके पास विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करने का भी अधिकार होता है। जिसमें वह बिना कैबिनेट की सिफारिश के भी उद्धव सरकार को बहुमत साबित करने को कह सकता है। या फिर विधानसभा भंग करने की भी सिफारिश कर सकता हैं। ऐसा तभी होगा जब उन्हें लगेगा कि सरकार के पास बहुमत नहीं है। हालांकि राज्यपाल ऐसा विशेष परिस्थितियों में ही करते हैं। संविधान के अनुच्धेद 174 (2) बी में राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार है।
- एक अहम बात यह है कि आतंरिक कलह से नेतृत्व परिवर्तन नहीं हो सकता है। इसका मतलब यह है कि जिस तरह से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर कांग्रेस और एनसीपी भरोसा जता रहे हैं। ऐसे में नेतृत्व परिवर्तन मुद्दा नहीं बन सकता है। और राज्यपाल कैबिनेट की सलाह से बंधे रहेंगे।
- लेकिन अगर अगर शिंदे गुट राज्यपाल को पत्र लिखकर कहता हैं कि वे सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं तब राज्यपाल की भूमिका अहम हो जाएगी। तब वह अपने विवेक से उद्धव सरकार को फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करने के लिए कह सकते हैं।
- अगर उद्धव ठाकरे बहुमत साबित नहीं कर पाते हैं तो राज्यपाल विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस को सरकार बनाने का न्यौता दे सकते हैं। और अगर कोई गुट बहुमत साबित नहीं कर पाता है तो राज्यपाल के पास विधानसभा भंग करने का ही रास्ता रह जाता है।