- अखंड भारत पुस्तक में वर्तमान भारत, नेपाल, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका के साथ-साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश को मानचित्र में दिखाया गया है।
- आरएसएम प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि स्वामी विवेकानंद और श्री अरविदो ने भारत के बारे में जो कहा है उस पर मैं भरोसा करता हूं।
- भारतीय जनसंघ (जो बाद में भाजपा बनी) ने 15 अगस्त 1965 को अखंड भारत पर संकल्प पारित किया था ।
RSS Akhand Bharat: एक बार फिर अखंड भारत (Undivided India) सुर्खियों में है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी रविंद्र पुरी का अखंड भारत पर बयान और फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत द्वारा उसके समर्थन ने एक बार फिर राजनीतिक बहस छेड़ दी है, क्या अखंड भारत की संकल्पना संभव है। अगर ऐसा है तो वह वह किस रूप में होगा।
अखंड भारत पर स्वामी रविंद्र पुरी और मोहन भागवत ने क्या कहा
हरिद्वार में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान स्वामी रविंद्र पुरी ने कहा कि ज्योतिष गणना कहती है कि अगले 20-25 साल में हम अखंड भारत के सपने को पूरा होते देखेंगे। पुरी के इस बयान का समर्थन करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि दार्शनिक श्री अरविदो ने कहा था कि भगवान कृष्ण की इच्छा से भारत उन्नति करेगा। और स्वामी विवेकानंद और श्री अरविदो ने भारत के बारे में जो कहा है उस पर मैं भरोसा करता हूं।
उनके इस बयान पर राजनीतिक बहस भी छिड़ गई है। शिवसेना नेता संजय राउत से लेकर सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन औवेसी तक अपने-अपने अनुसार अखंड भारत पर बयान दे रहे हैं। संजय राउत अखंड भारत का सपना पूरा करने के लिए 15 दिन का अल्टीमेटम दे रहे हैं तो ओवैसी तंज कसते हुए चीन को सुधारने की बात कर रहे हैं।
अखंड भारत की ऐसी होगी भौगोलिक सीमा !
ऐसे में सवाल उठता है कि जिस अखंड भारत की बात स्वामी रविंद्र पुरी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत कर रहे हैं, वह क्या है ? तो इस परिप्रेक्ष्य को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'पुण्यभूमि भारत' की पुस्तक से समझा जा सकता है। जिसमें लेखक भारत की भौगोलिक स्थिति 7 नदियों, 5 झीलों, 7 पर्वत, 12 ज्योतिर्लिंग सहित 4 दिशाओं के आधार पर भारत की परिकल्पना बताते हैं। इसमें अफगानिस्तान को उपगनाथन, काबुल को कुभा नगर, पेशावर को पुरुषपुर, तिब्बत को त्रिविष्टप, श्रीलंका को सिंघलद्वीप और म्यांमार को ब्रह्मदेश के रूप में परिभाषित किया गया है।
इसी तरह सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित एक और पुस्तक अखंड भारत में वर्तमान भारत, नेपाल, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका के साथ-साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश को मानचित्र में दिखाया गया है।
अरविंद घोष ने क्या कहा था
मोहन भागवत ने जब अखंड भारत को लेकर स्वामी रविंद्र पुरी की बात का समर्थन किया तो उन्होंने श्री अरविद घोष का उद्धहरण दिया था। उनके बयान और अखंड भारत की क्या संकल्पना है ? इस सवाल पर आरएसस पर पीएचडी करने वाले और उस पर 7 पुस्तकें लिखने वाले लेखक रतन शारदा ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं कि अखंड भारत की संकल्पना समय-समय के आधार पर देखनी चाहिए है।
जब भारत आजाद हुआ था, तो संकल्पना अलग थी, अभी अलग है। श्री अरविंद घोष ने भारत के आजाद होने के समय कहा था कि भारत अगर अपने भविष्य को उज्जवल देखना चाहता है तो उसके पास अखंड होने के अलावा कोई चारा नहीं है। अभी जो आजादी मिली है वह कटी हुई । इसी तरह राम मनोहर लोहिया ने अखंड भारत की संकल्पना एक इकोनॉमिक फेडरेशन के रूप में की थी।
अभी जिस तरह पाकिस्तान के हालात हैं, उससे साफ है वह ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएगा। ऐसे ही श्रीलंका की स्थिति देखिए, वह शुरू में चीन के करीब जा रहा था। लेकिन बिगड़ते हालात में उसे भारत के करीब ही आना पड़ा। नेपाल के भी ऐसे ही हालात है। साफ है कि ये देश अकेले कुछ नहीं कर सकते हैं। उन्हें अगर उन्नति करनी है तो भारत के साथ आना होगा। अखंड भारत समय की जरूरत है। लेकिन अखंड भारत का स्वरूप आर्थिक सहकारिता होगा, सांस्कृतिक होगा या फिर कुछ हद तक भौगोलिक होगा यह तो आने वाला समय बताएगा।
इसके अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और दूसरे पड़ोसी देशों की भौगोलिक और सांस्कृतिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि एक न एक दिन अखंड भारत स्वरूप लेगा। जहां तक अलग-अलग पंथ की बात है तो यह समझना होगा कि पंथ अलग हो सकते हैं, लेकिन सांस्कृतिक पहचान तो एक ही है। एक बात तो दिखने लगी है कि पंथ के आधार पर उन्नति नहीं होगी। ऐसे में भारत के साथ जुड़कर ही पड़ोसी देशों की उन्नति होगी। क्योंकि हमारी संस्कृति ऐसी है की भारत के साथ उनकी पहचान नष्ट नहीं होगी जो कि चीन और अप्रत्यक्ष साम्राज्यवाद के कारण हुआ है।
क्या भाजपा का भी है एजेंडा
अखंड भारत की बात आम तौर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ही करता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अपने मातृ संगठन की तरह भारतीय जनता पार्टी भी अखंड भारत की परिकल्पना करती है। तो इस पर भारतीय जनसंघ (जो बाद में भाजपा बनी) ने 15 अगस्त 1965 को संकल्प पारित किया था । जिसमें कहा गया था कि भारत की परंपरा और राष्ट्रीयता किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं रही है। आधुनिक इस्लाम भी भारतीय राष्ट्र की एकता के मार्ग में बाधक नहीं होना चाहिए। असली बाधा अलगाववादी राजनीति है। मुसलमान खुद को राष्ट्रीय जीवन से जोड़ लेंगे और अखंड भारत एक वास्तविकता होगी।