- दो महीने चलने वाली तीर्थयात्रा मंडला-मकरविलक्कू के लिए सबरीमला मंदिर के कपाट खोले गए
- पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी थी, जिसका खूब विरोध हुआ
- एक्टिविस्ट तृप्ति देसाई ने कहा- महिलाओं को रोका गया, सरकार पूरी तरह से महिलाओं के खिलाफ काम कर रही है
नई दिल्ली: केरल में सबरीमला स्थित भगवान अयप्पा के मंदिर के कपाट दो महीने चलने वाली तीर्थयात्रा मंडला-मकरविलक्कू के लिए शनिवार को खोल दिए गए। महिलाओं के प्रवेश को लेकर एक बार फिर मंदिर चर्चा में है। पुलिस ने दर्शन के लिए आईं 10 महिलाओं को पंबा से वापस भेज दिया। महिलाएं (10 से 50 वर्ष की उम्र के बीच) आंध्र प्रदेश से मंदिर में पूजा करने के लिए आई थीं।
दर्शन करने आए एक भक्त ने कहा, 'महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट भगवान से बड़ा नहीं है।'
वहीं महिला अधिकार कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने कहा, 'कल सरकार ने कहा कि वो महिलाओं को सुरक्षा प्रदान नहीं करेंगी, इसलिए महिलाएं बिना सुरक्षा के सबरीमला मंदिर जा रही हैं। अब महिलाओं को रोका जा रहा है, इसलिए मुझे लगता है कि सरकार पूरी तरह से महिलाओं के खिलाफ काम कर रही है।'
तृप्ती देसाई ने शुक्रवार को कहा कि वह 20 नवंबर के बाद सबरीमला मंदिर जाएंगी चाहे उन्हें केरल सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाए या नहीं। तृप्ति ने कहा, 'मैं 20 नवंबर के बाद सबरीमला जाऊंगी। हम केरल सरकार से सुरक्षा की मांग करेंगे और यह हमें सुरक्षा देना या न देना उन पर निर्भर है। अगर सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है, तो भी मैं दर्शन के लिए सबरीमला का दौरा करूंगी।'
सबरीमला मंदिर के कपाट खुलने से पहले केरल देवस्वोम बोर्ड के मंत्री के सुरेंद्रन ने शुक्रवार को कहा कि राज्य सरकार मंदिर जाने वाली किसी भी महिला को सुरक्षा प्रदान नहीं करेगी और जिन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है, वो सर्वोच्च न्यायालय से आदेश लेकर आएं। सबरीमला आंदोलन करने वालों के लिए स्थान नहीं है। कुछ लोगों ने मंदिर में प्रवेश करने की घोषणा की है। वे लोग केवल प्रचार के लिए ऐसा कर रहे हैं। सरकार इस तरह की चीजों का समर्थन नही करेगी।
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी। इसे लेकर जमकर विरोध-प्रदर्शन हुआ। इसके बाद ये मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और पुनर्विचार याचिका डाली गई। 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मामले में दिए गए उसके फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाएं सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के पास भेजते हुए कहा कि धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है।