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सम्राट अशोक किसके आएंगे काम, बिहार में BJP और जद (यू) में क्रेडिट की होड़

Updated Apr 08, 2022 | 16:32 IST

Samarat Ashok Jayanti: बिहार में कुशवाहा वोट बैंक को साधने के लिए सम्राट अशोक पर राजनीतिक दलों की नजर है। और वह उनके बहाने वोटरों में पैठ लगाने की कोशिश में हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspYouTube
सम्राट अशोक जयंती समरोह में भाजपा नेता भूपेंद्र यादव
मुख्य बातें
  • सम्राट अशोक की जयंती भारतीय जनता पार्टी 8 अप्रैल को मना रही है।
  • वहीं जनता दल (यू) 9 अप्रैल को सम्राट अशोक की जयंती मनाएगा।
  • सम्राट अशोक की जयंती समारोह में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और यूपी सरकार के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी पहुंचे।

Samarat Ashok Jayanti: करीब आठ साल पहले जब बिहार में भाजपा के स्थानीय नेता सूरजनंदन कुशवाहा ने मौर्य वंश के सम्राट अशोक के नाम पर यात्रा निकाली थी, तो शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि एक दिन उनका यह कदम बिहार की राजनीति में नया मोड़ लाएगा। क्योंकि उसके बाद राजनीतिक दलों ने,  न केवल सम्राट अशोक की जाति का पता लगाया बल्कि उनकी जन्म तिथि भी पता कर डाली।  और अब उस पर राजनीति भी शुरू कर दी है। क्योंकि उन्हें अशोक के नाम पर एक बड़ा ओबीसी वोट बैंक दिख रहा है।

भाजपा और जद (यू) अलग-अलग दिन मना रहे हैं जयंती

सम्राट अशोक की जयंती भारतीय जनता पार्टी जहां 8 अप्रैल को मना रही है, वहीं उसकी राजनीतिक सहयोगी,  जनता दल (यू) 9 अप्रैल को जयंती मनाने जा रहा है। अलग-अलग जयंती मनाने की तर्क भी अलग-अलग है। चूंकि सम्राट अशोक की जन्म तिथि का कोई साक्ष्य नहीं है। और उनका जन्म 304 ईसा पूर्व यानी करीब 2300 साल पहले इतिहासकार बताते हैं। इसके पहले 2015 में नीतीश सरकार ने सम्राट अशोक की जयंती पर छुट्टी का भी ऐलान किया था। तो दोनों दलों के पास अपने-अपने आधार पर जंयती मनाने का अधिकार  है।

अशोक क्यों हुए खास

वैसे तो सम्राट अशोक की चर्चा आम तौर पर उनके बौद्ध धर्म के संरक्षण उसके विस्तार और उनकी शासन प्रणाली को लेकर होती है। लेकिन 2014 में जब भाजपा नेता सूरजनंदन कुशवाहा ने अशोक जयंती पर यात्रा निकाली थी, तो उस वक्त अशोक को कुशवाहा जाति का बताया था। और उसके बाद से अशोक को इसी जाति से जोड़कर देखा जाता है। ऐसा नहीं है कि अशोक का राजनीतिक असर केवल बिहार में ही दिखता है। बल्कि हाल ही में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के इलाके में ओबीसी वोटरों को लुभाने के लिए सम्राट अशोक की जरूरत राजनीतिक दलों को पड़ी थी।

भाजपा-जद (यू) हो चुके हैं आमने-सामने

बिहार में सम्राट अशोक इस समय राजनीति दलों के लिए कितने अहम है, यह जनवरी 2022 की घटना से पता चलता है। जब  गठबंधन की सरकार चला रहे भाजपा और जद (यू), उनके नाम पर आमने-सामने आ गए थे। असल में साहित्य अकादमी और पद्य श्री पुरस्कार से सम्मानित दया प्रकाश सिन्हा ने अशोक की तुलना औरंगजेब से कर दी। इस पर जद (यू) ने उनके सभी सम्मान वापस लेने की मांग कर डाली थी। जबकि हिंदुस्तान आवाम पार्टी के नेता जीतन राम मांझी ने अशोक को पिछड़ी जाति का बताते हुए कहा था, कि इसीलिए उनका अपमान हो रहा है। भाजपा ने भी मामला संभालने के लिए सिन्हा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।

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ओबीसी वोटरों को लुभाने की होड़

जनता दल (यू) की तरफ से कुशवाहा जाति को लुभाने की जिम्मेदारी पार्टी के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा ने संभाल रखी है और वह खुद अशोक जयंती समारोह की सारी जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। जबकि भाजपा के आज के कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी पहुंचे। करीब 17 फीसदी कुशवाहा आबादी को लुभाने के लिए दोनों दल अपने कुशवाहा समाज के नेताओं को आगे कर रहे हैं। अब देखना है कि 2300 साल पहले जन्म लेने वाले सम्राट अशोक राजनीतिक दलों के कितना काम आते हैं।

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