- महाराष्ट्र सरकार राणा दंपत्ति के खिलाफ राजद्रोह के तहत कर चुकी केस
- भीमा कोरेगांव जांच कमीशन को शरद पवार ने दिया एफिडेविट
- एफिडेविट में पवार ने की देशद्रोह कानून को खत्म करने की मांग
मुंबई: महाराष्ट्र में इन दिनों राजद्रोह कानून को लेकर बहस सी छिड़ गई है। एक तरफ महाराष्ट्र सरकार में भागीदार एनसीपी के मुखिया शरद पवार राजद्रोह कानून खत्म करने की मांग कर रहे हैं वहीं उनकी सरकार नवनीत राणा और रवि राणा पर राजद्रोह (sedition) के तहत केस दर्ज कर चुकी है। शरद पवार का एक हलफनामा सामने आया है जिसमें उन्होंने भीमा कोरेगांव कमीशन से मांग की है कि 124A (राजद्रोह) को निरस्त कर देना चाहिए।
पवार की मांग के उलट MVA सरकार का निर्णय
वहीं दूसरी तरफ से उन्ही की सरकार (MVA सरकार) ने राणा दंपत्ति पर राजद्रोह का कानून लाद दिया जिसकी सुनवाई आज है। पवार की यह मांग इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि महाराष्ट्र में NCP, शिवसेना और कांग्रेस के गठबंधन वाली ही सरकार है जो खुलकर इस कानून का प्रयोग कर रही है। आपको बता दें कि कोरेगांव-भीमा जांच आयोग ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार को महाराष्ट्र के पुणे जिले में युद्ध स्मारक पर जनवरी 2018 में हुई हिंसा के संबंध में अपना बयान दर्ज कराने के लिए पांच और छह मई को उसके समक्ष पेश होने का निर्देश दिया है।
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क्या है पवार की मांग
शरद पवार नेकोरेगांव-भीमा जांच आयोग को दिए हलफनामे में लिखा है कि Section 124A को अंग्रेजों ने 1870 में जोड़ा था, ताकि स्वतंत्रता आंदोलन को दबाया जा सके। पवार आगे कहते हैं कि आज सरकार की आलोचना करने वालों की आवाजों को इससे दबाया जा रहा है, ऐसा पवार ने आरोप लगाया। गौर करने वाली बात ये है कि पवार एक तरफ तो ऐसे कानून को खत्म करने की मांग करते हैं दूसरी तरफ उनकी गठबंधन सरकार लाउडस्पीकर और अजान विवाद को लेकर राणा दंपत्ति पर राजद्रोह के तहत मामला दर्ज कर लेती है।
कोरेगांव- भीमा जांच आयोग के वकील आशीष सतपुते ने बताया कि इसके बाद आयोग ने बुधवार को पवार को समन जारी किया। एनसीपी प्रमुख को पांच और छह मई को जांच आयोग के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया है। पवार ने आठ अक्टूबर 2018 को भी आयोग के समक्ष एक हलफनामा दाखिल किया था।
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