- सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मंदिर केस को वृहद पीठ के पास भेज दिया
- कोर्ट ने 3:2 से रिव्यू पिटिशन को वृहद पीठ के पास भेजने का फैसला दिया
- अदालत ने सितंबर, 2018 में सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज (गुरुवार, 14 नवंबर) एक महत्वपूर्ण फैसले में केरल के सबरीमला मंदिर केस को वृहद पीठ के पास भेज दिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर अब 7 सदस्यीय पीठ सुनवाई करेगी। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि फिलहाल सितंबर 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगेगी। चीफ चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस पर फैसला सुनाया।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर, 2018 को दिए अपने अहम फैसले में सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश व पूजा-अर्चना की अनुमति दी थी, जिस पर कई रिव्यू पिटिशन दायर किए गए थे। शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से रिव्यू पिटिशन को वृहद पीठ के पास भेजने का फैसला दिया, जिसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अतिरिक्त जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल रहे। पांच जजों की पीठ में जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ ने इससे असहमति जताई।
मामले को वृहद पीठ के पास भेजने का फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि अराधना स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा सिर्फ इस मंदिर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मस्जिदों और पारसी मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा भी शामिल है।
केरल के इस प्रसिद्ध मंदिर में 10 साल से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर पंरागत तरीके से रोक लगी थी। सदियों पुरानी इस परंपरागत रोक को देश को शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि यह संविधान में सभी नागरिकों को मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के उसी फैसले को लेकर रिव्यू पिटिशन दायर की गई, जिसमें शीर्ष अदालत से अपने फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया गया। अब उसी पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। अदालत ने फरवरी 2019 में इसे लेकर दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
यहां उल्लेखनीय है कि जस्टिस इंदू मल्होत्रा सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ में भी शामिल थीं, जिसने सितंबर 2018 में सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति का फैसला दिया था। तब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा थे। उनके अलावा इस पीठ में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ में जस्टिस मल्होत्रा एकमात्र महिला सदस्य थीं और उन्होंने यह कहते हुए फैसले से असमति जताई थी कि यह आस्था का सवाल है और परंपरा को बरकरार रखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 4:1 से दिया था।