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घरेलू हिंसा कानून के तहत बहू को है सास- ससुर की संपत्ति में रहने का हक: सुप्रीम कोर्ट

Updated Oct 16, 2020 | 07:42 IST

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने एक अहम फैसले में कहा है कि घरेलू हिंसा की शिकार बहू को अपने सास-ससुर की संपत्ति में रहने का पूरा अधिकार है।

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बहू को है सास- ससुर की संपत्ति में रहने का हक: सुप्रीम कोर्ट
मुख्य बातें
  • पीड़ित महिला भी अपने महिला ससुराल वालों के घर में रह सकती है: सुप्रीम कोर्ट
  • सुप्रीम कोर्ट का अहम आदेश, घरेलू हिंसा की शिकार बहू का सुसर की संपत्ति पर भी रहने का अधिकार
  • 2019 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई थी याचिका

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक मामले की सुनवाई करेत हुए कहा है कि किसी भी समाज की प्रगति उसकी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने की क्षमता पर निर्भर करती है। कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून के प्रावधान के तहत एक महिला को अपने साथ ससुर के घर में भी आश्रय पाने का पूरा हक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पति के किसी भी रिश्तेदार का मकान जिसमें महिला कभी घर की तरह रही हो, कानून के तहत साझा घर (शेयर्ड हाउसहोल्ड) माना जाएगा।

शेयर्ड हाउसहोल्ड

इस फैसले में यह माना गया है कि अगर एक महिला या बहू कभी भी अपने किसी रिश्तेदार के मकान में घर की तरह रही हो, उसे ‘शेयर्ड हाउसहोल्ड’ में गिना जाएगा। जिसका साफ अर्थ यह हुआ कि एक महिला जो कभी अपने सास-ससुर के मकान में पहले रह चुकी है उसे यह कह कर शरण देने या रहने से वंचित नहीं किया जा सकता कि वह आवेदन देते वक्त वहां नहीं रह रही थी या पति का उस संपत्ति में कोई हिस्सा या हक नहीं है।

खंडपीठ ने कही ये बात
जस्टिस अशोक भूषण,  जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम. आर. शाह की पीठ ने कानून के तहत ‘साझा घर’ की परिभाषा की व्याख्या वाले पहले के फैसले को ‘गलत कानून’ करार दिया और इसे दरकिनार कर दिया। पीठ ने कहा कि परिभाषा काफी व्यापक है और इसका उद्देश्य कानून के तहत पीड़ित महिला को आवास मुहैया कराना है। पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'अनुच्छेद 2 (एस) के तहत साझा घर की परिभाषा केवल यही नहीं है कि वह घर जो संयुक्त परिवार का घर हो जिसमें पति भी एक सदस्य है या जिसमें पीड़ित महिला के पति का हिस्सा है।’

अदालत ने कहा कि देश में घरेलू हिंसा से पीड़ित कुछ महिलाएं हर दिन किसी न किसी रूप में हिंसा का सामना करती हैं। ऐसी परिस्थितियों में, एक महिला अपने जीवनकाल में एक बेटी, एक बहन, एक पत्नी, एक मां, एक साथी या एक अकेली महिला के रूप में हिंसा और भेदभाव को खत्म करने के चक्र से खुद से समझौता करती है।

याचिका की खारिज
खंडपीठ नेसतीश चंदर आहुजा द्वारा दायर की गी उस याचिका को खारिज कर दिया, जो 2019 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई थी। हाईकोर्ट के तब फैसला सुनाया था कि उनकी बहू स्नेहा आहूजा के पास निवास का अधिकार था, भले ही वह अपने पति रवीन आहूजा से तलाक की प्रक्रिया में थीं। सतीश आहूजा ने यह भी अपील की थी कि उनके बेटे का घर में कोई हिस्सा नहीं है क्योंकि संपत्ति उनकी स्वंय द्वारा अर्जित की गई संपत्ति थी।

कोर्ट ने कहा, 'किसी भी समाज की प्रगति महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने और उसे बढ़ावा देने की क्षमता पर निर्भर करती है। साझा घर वह स्थान है जहां महिला रहती है या घरेलू संबंध में अकेले अथवा पति के साथ कभी रही हो और इसमें वह घर भी शामिल है जिस पर मालिकाना हक है या जो किराये पर दिया गया है।

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