लाइव टीवी

कोरोना और खेती-किसानी: डरने की जरूरत नहीं, बचाव ही सबसे बड़ा उपाय

Updated Mar 30, 2020 | 14:33 IST

health of the farmers in View of coronavirus: किसान देश का अन्नदाता है। यह जरूरी कि कोरोना संक्रमण काल में उसके स्वास्थ्य की हिफाजत जरूरी है।

Loading ...
तस्वीर साभार:&nbspBCCL
किसान हमारी खेती आधारित अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और उनकी देखभाल सुनिश्चित करनी होगी।
मुख्य बातें
  • किसान देश की खेती आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़
  • किसानों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना जरूरी
  • कोरोना गंभीर बीमारी,सफाई संबधी जागरुकता जरुरी

आलोक रंजन

खेती किसानी में बाधा न आये, ये जरूरी है। किसानों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना जरूरी है। आखिर राशन आता वहीं से है। ग्रामीण इलाकों में लौट रहे मजदूरों को भी ये समझना चाहिए कि वो इस बहाने खतरे को दोगुना कर रहे हैं। गांव लौटे हर मजदूर को 'एकांतवास' में रखा जाना संभव नहीं। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अभी ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं।  राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ मिशन के जरिए गांवों में लाखों आशा कार्यकर्ता प्राथमिक स्वास्थ सेवाओं के लिए काफी उपयोगी साबित हो रही हैं। आशा कार्यकर्ताओं ने कई मौकों पर ग्रामीणों को समझा-बुझा करअस्पताल तक पहुंचाया हैं। लेकिन बात यहां तक नहीं बनती क्योंकि अब मुकाबला खेती-किसानी का कोरोना से हैं।

कोरोना को लेकर जरूरी है जागरूकता

कोरोना गंभीर बीमारी हैं जो एक दूसरे से फैलती हैं, इसमें सफाई संबधी जागरुकता काफी जरुरी हैं। एक बड़े राज्य राजस्थान को ही लें तो यहां करीब 2100 प्राथमिक स्वास्थ केंद्र हैं और पूरे राज्य में 1150 सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल है। दरअसल ये भी काफी नहीं हैं क्योंकि बीमारियों का बोझ ज्यादा है और समय रहते ग्रामीण इन स्वास्थ केंद्रों और अस्पतालों तक पहुंच जाएं, हर मामले में ऐसा संभव भी नहीं। कई मामलों में एंबुलेंस ही गांव के अंदर तक नहीं पहुंच पाती ।

किसान देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़

किसान हमारी खेती आधारित अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं । जीडीपी में खेती-किसानी का हिस्सी 18 फीसदी हैं। अन्नदाता की सेहत पर पहले से ही रिस्क हैं, बदलते पर्यावरण के चलते खेतों में ज्यादा फसल लेने की चाहत में रसायनों (फर्टिलाइजर) का इस्तेमाल बढ़ा हैं। रसायनों के उपयोग से किसान के श्वसन तंत्र पर प्रभाव पड़ता हैं। ज्यादा गर्मी, भंडारण के पहले अनाज के अवशेष आदि श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं । भंडारण के दौरान कई बार मांसपेशियों में तकलीफ भी किसान के लिए मुश्किलें पैदा करती हैं ।

बीमारी से बचाव जरूरी है

खेती करने के दौरान शुद्ध पानी न मिलने से कम पानी पीना भी कई इंफेक्शन और विकार को जन्म देता हैं। खासकर महिला किसानों को इस तरह की बीमारियां से जूझना पड़ता हैं । साथ ही हाथ साफ करने की उचित व्यवस्था ना होना भी कोरोना जैसी बीमारी के खतरे को बढ़ा सकता हैं । यानी पहले से
हमारा अन्नदाता बीमारियों के घेरे में हैं । दूसरों की थाली भरने वाला किसान अक्सर अपनी सेहत दांव पर लगाए रहता हैं । ऐसे हालात में कोरोना जैसी घातक बीमारी का ग्रामीण इलाकों में प्रवेश भारतीय किसानों की जिंदगी को दांव पर लगा सकता हैं । राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ मिशन के तहत ग्रासरुट लेवल पर गांव कल्याण समितियां भी ग्रामीणों की सेहत का ध्यान रखती हैं। 

गांव कल्याण समितियों की भूमिका अब महत्वपूर्ण 

इस हालात में सरकार को एक सामाजिक नीति बनानी होगी ताकि गांवों में रहने वाला किसान सुरक्षित हों। इसमें दस लाख आशा कार्यकर्ताओं, महिला आरोग्य समितियां और गांव कल्याण समितियों की भूमिका अब महत्वपूर्ण हैं । कोरोना को लेकर गांव-गांव में जागरुकता फैलानी होगी कि घातक बीमारी से कैसे बचें क्योंकि अभी हमारा हेल्थकेयर सिस्टम इतना मजबूत नहीं कि वो कृषि उद्योग से जुड़े हर किसान- मजदूर की देखभाल कर सकें । ताजा उदाहरण ये हैं कि बिहार के गया जिले में एक चिता पर जब स्वास्थ कर्मी कोरोना का सैंपल लेने पहुंचे तो हड़कंप मच गया। हालांकि बाद में बताया गया कि मृत व्यक्ति की रिपोर्ट निगेटिव आई । इसलिए भारत के अन्नदाता को अभी 'एकांतवास' की जरुरत हैं जो खेती-किसानी की अपनी साधना में लीन रहें और सुरक्षित रहें । 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और खेती किसानी पर  जागरूकता मुहिम चला रहे हैं। दूरदर्शन किसान से जुड़े रहे हैं।)

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।