- कपिल सिब्बल बोले-'आया राम गया राम' से 'प्रसाद' की राजनीति
- जितिन प्रसाद का बीजेपी में जाना हैरानी वाली बात नहीं
- सिब्बल बोले- मतभेद अपनी जगह लेकिन बीजेपी में कभी नहीं जाएंगे।
नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी पुरानी पार्टी कांग्रेस की मौजूदा सूरत और सीरत बिगड़ी बिगड़ी सी नजर आ रही है। 2019 के आम चुनाव के नतीजों के बाद पार्टी के पास पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है तो इसके साथ साथ बुजुर्ग और युवा नेताओं का असंतोष सामने आ रहा है। बुजुर्ग नेताओं ने जब पार्टी की खामियों पर चर्चा करने का दौर शुरू किया तो उसे जी-23 का नाम मिला और उन्हीं में से एक हैं कपिल सिब्बल। बुधवार को पार्टी के युवा चेहरे और राहुल गांधी के करीबी जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल हो गए तो कांग्रेस की तरफ से आवाज तो आनी ही थी। इन सबके बीच कपिल सिब्बल ने क्या कुछ कहा उसे समझना जरूरी है।
कपिल सिब्बल का क्या कहना है
मुझे यकीन है कि नेतृत्व जानता है कि समस्याएं क्या हैं और मुझे आशा है कि नेतृत्व सुनता है क्योंकि बिना सुने कुछ भी नहीं रहता है, कोई भी कॉर्पोरेट संरचना बिना सुने जीवित नहीं रह सकती है और ऐसा ही राजनीति के साथ है। नहीं माने तो बुरे दिनों में पड़ जाएंगे।जितिन प्रसाद ने जो किया उसके खिलाफ मैं नहीं हूं क्योंकि जरूर कोई कारण होगा जिसका खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन बीजेपी में शामिल होना एक ऐसी चीज है जिसे मैं नहीं समझ सकता।
इससे पता चलता है कि हम 'आया राम गया राम' से 'प्रसाद' की राजनीति की ओर बढ़ रहे हैं, जहां प्रसाद मिले, आप उस पार्टी में शामिल हों।हम सच्चे कांग्रेसी हैं, मैं अपने जीवन में कभी भी अपने मृत शरीर की तरह भाजपा में शामिल होने के बारे में नहीं सोचूंगा। हो सकता है कि अगर कांग्रेस नेतृत्व मुझे जाने के लिए कहता है, तो मैं उस आधार पर पार्टी छोड़ने के बारे में सोच सकता हूं, लेकिन बीजेपी में शामिल नहीं होऊंगा।
क्या कहते हैं जानकार
अब कपिल सिब्बल के इस बयान को राजनीति के जानकार किस तरह से समझते हैं उसे बताते हैं. ज्यादातर लोगों का कहना है कि 2019 के बाद से कांग्रेस दिग्भ्रमित हो चुकी है। शीर्ष नेतृत्व इस बात को नहीं समझ पा रहा है कि पार्टी को किस तरह से आगे बढ़ाना है। आम चुनाव के बाद जब कांग्रेस की तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सरकार बनी तो आपने देखा होगा कि किस तरह से सीएंम पद के लिए खींचतान जारी रही। ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह कमलनाथ, तो सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत पर आलाकमान ने भरोसा दिखाया जो उन बातों के बिल्कुल उलट थी कि पार्टी में अब युवाओं को आगे आने का मौका मिलेगा।