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Sedition Law: जिस कानून का आज कांग्रेस कर रही विरोध, अपने शासनकाल में करती थी भरपूर इस्तेमाल  

Updated May 13, 2022 | 15:06 IST

Sedition law: राजद्रोह कानून को लेकर पिछले कुछ दिनों से बहस सी छिड़ पड़ी है। राजद्रोह कानून को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है और इसे लेकर राहुल गांधी ने केंद्र पर निशाना साधा है।

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अपने शासनकाल में कांग्रेस ने जमकर किया राजद्रोह कानून का प्रयोग
मुख्य बातें
  • अपने शासनकाल में कांग्रेस मनमाने ढंग से करती रही कानून का इस्तेमाल
  • राहुल गांधी आज इसी कानून को लेकर उठा रहे हैं कांग्रेस पर सवाल
  • 1959 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने देशद्रोह कानून को अभियक्ति की आज़ादी के खिलाफ बताया था

Sedition Law and Congress: अनुच्छेद 124A यानि की राजद्रोह कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों से कहा कि वे राजद्रोह के तहत नए केस दर्ज न करें। वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर कांग्रेस ने सराहना की। राहुल गांधी ने केन्द्र सरकार पर तीखा हमला करते हुए ट्वीट किया कि  सच बोलना देशभक्ति है, देशद्रोह नहीं। सच कहना देश प्रेम है, देशद्रोह नहीं। सच सुनना राजधर्म है, सच कुचलना राजहठ है। डरो मत!

कांग्रेस करती थी भरपूर उपयोग

आज कांग्रेस इस कानून के खिलाफ है, लेकिन यही कांग्रेस अपने शासनकाल में इस कानून का भरपूर इस्तमाल करती थी। कुछ उदाहरण के साथ हम आपको बताते है कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में इस कानून का कैसे इस्तमाल किया। अदालतों के टिप्पणी और आदेशों के बावजूद कांग्रेस कानून के पक्ष में रही भले ही अब कांग्रेस इस कानून के विरोध में है, लेकिन अपने शासनकाल में विभिन्न अदालतों द्वारा IPC की धारा 124A को गैर-संवैधानिक करार देने के बावजूद  कांग्रेस इस कानून के पक्ष में रहीं। सन् 1951 में पंजाब हाई कोर्ट ने इस कानून को गैर-संवैधानिक बताया था। सन् 1959 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने देशद्रोह कानून को अभियक्ति की आज़ादी के खिलाफ बताया था।

यही नही अदालतों द्वारा ऐसी टिप्पणी के बावजूद तत्कालीन कांग्रेस की सरकारों ने इस कानून का समर्थन किया और इसका इस्तेमाल भी अपने विरोधियों के खिलाफ जारी रखा। वहीं सन 1973 में इंदिरा गाँधी की सरकार ने राजद्रोह कानून को और मजबूत किया. इंदिरा गाँधी की सरकार ने इस कानून को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में डाला और बिना वारंट के गिरफ्तार करने का प्रावधान बनाया।

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कांग्रेस अपने मनमाने ढंग से कानून का करती रही इस्तेमाल

राजनितिक विश्लेषक ए शक्तिवेल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की सरकार ने सन् 1953 में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता केदारनाथ सिंह के खिलाफ मात्र इसलिए देशद्रोह कानून का इस्तेमाल किया क्योंकि उन्होंने कांग्रेस पार्टी को गूंडों की पार्टी कह दिया था। वहीं 2004 से 2014 के दौरान जब देश में कांग्रेस की यूपीए सरकार थी तब सिमरनजीत सिंह मान से लेकर असीम त्रिवेदी तक को देशद्रोह कानून का इस्तेमाल कर जेल में डाला गया।

इन लोगों को किया गिरफ्तार

 वर्ष 2005 में कांग्रेस की सरकार ने इस कानून का इस्तेमाल अकाली दल के नेता सिमरनजीत सिंह मान के खिलाफ किया। वहीं वर्ष 2007 में गाँधी अंतराष्ट्रीय शांति अवार्ड से सम्मानित वाम विचारक बिनायक सेन के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया. तो वहीं वर्ष 2010 में अरुंधती रॉय के खिलाफ इस्तेमाल किया और 2012 में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया. यही नही वर्ष 2012-13 में कांग्रेस की यूपीए सरकार ने कुडनकुलम नियुकिलियर पॉवर प्लांट के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले 9,000 लोगों को देशद्रोह कानून का इस्तेमाल कर गिरफ्तार कर लिया था। 

कांग्रेस की सरकारों ने राजद्रोह कानून को मजबूत करने से लेकर और सरकार के नीतियों के खिलाफ बोलने और  अधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों के खिलाफ मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया।

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यूपीए सरकार ने किया था कानून का समर्थन

वर्ष 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार में गृहराज्य मंत्री अजय माकन ने देशद्रोह कानून को ख़त्म करने के संबंध में संसद में पूछे गए एक सवाल का जवाब दिया था कि इसे ख़त्म करने की नहीं, इस कानून को और मजबूत करने की जरुरत है।

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महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की महा विकास अघाड़ी सरकार ने बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ मात्र इसलिए राजद्रोह कानून लगाया क्योंकि उन्होंने सरकार विचार के विपरीत विचार रखा था। कंगना रनौत वाले मसले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने महा विकास अघाड़ी सरकार को फटकार लगते हुए कहा था की अगर कोई सरकार के विचारों से सहमत नहीं है तो क्या उसे राजद्रोही मान लिया जायेगा। हाल ही में, महाराष्ट्र की सरकार ने सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा को धारा 124A का इस्तेमाल कर मात्र इसलिए जेल में डाल दिया क्योंकि वो मुख्यमंत्री के आवास के बाहर हनुमान चालीसा पढना चाहते थे।

क्या है राजद्रोह कानून

अनुच्छेद 124 ए के मुताबिक राजद्रोह एक गैर-जमानती अपराध है। इसके मुताबिक भारत में सरकारों के खिलाफ लिखित, मौखिक या किसी भी अन्य तरीके से अवमानना या घृणा पैदा करने या उकसाने की कोशिश पर इसका कानून का इस्तेमाल किया जा सकता है।  इसके दोषी को तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा के साथ जुर्माना तक हो सकता है। जिस व्यक्ति पर राजद्रोह का आरोप होता है उसे सरकारी नौकरी लेने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

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कब आया कानून

यह कानून अंग्रेजों द्वारा सन 1870 में लाया गया था। देश के आज़ादी के बाद जब संविधान बन रहा था तब इस कानून को लेकर संविधान सभा में चर्चा हुई तब कांग्रेस पार्टी चाहती तो कानून को हटा सकती थी लेकिन कांग्रेस ने इसे रहने दिया और लगातार अपने 60 साल के शासन काल में इसका भरपूर इस्तेमाल करते रहे। इंदिरा गाँधी ने तो अपने विरोधियों के खिलाफ इस कानून का जबरदस्त इस्तेमाल किया था।


पिछले 8 साल में बीजेपी ने 1500 कानून किए रद्द

मोदी सरकार ने साल 2014-15 से लेकर अब तक 1500 ऐसे पुराने कानूनों को समाप्त किया है जो किसी न किसी रूप से जनता के लिए परेशानी के वजह बने हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सोलिसिटर जनरल ने साफ़ कर दिया है कि नरेन्द्र मोदी की कानून पर पुनर्विचार और पूनपरिक्षण करने के लिए तैयार है। हालांकि सरकारें किसी भी पार्टी की हो, उन्होंने अपने राजनितिक फायदे के लिए इस कानून का भरपूर इस्तमाल किया। लेकिन जो अब कांग्रेस इस कानून का विरोध कर रही है, उसने ही अपने राजनीतिक फायदे के लिए सबसे ज्यादा इस कानून का इस्तमाल किया था।

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