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MSP गारंटी की राह में कई अड़चनें ! सरकार के सामने ये हैं रास्ते

Updated Nov 30, 2021 | 21:37 IST

MSP Guarantee: एमएसपी पर कमेटी बनाने की दिशा में सरकार ने कदम बढ़ा दिया है। इसके तहत उसने संयुक्त किसान मोर्चा से 5 प्रतिनिधियों के नाम मांगे हैं।

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एमएसपी गारंटी किसानों की प्रमुख मांग है।
मुख्य बातें
  • ई-नाम पोर्टल पर MSP से मिल रहा है कम दाम, पोर्टल से 1.71 करोड़ से ज्यादा किसान जुड़े हैं।
  • सरकार अभी 23 फसलों पर एमएसपी तय करती है।
  • सरकार के पास कीमतों में अंतर की भरपाई के लिए नकद हस्तांतरण जैसा विकल्प है।

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानूनों को संसद के जरिए खत्म कर दिया है। और अब उसका फोकस एमएसपी पर  किसानों की बीच सहमति बनाने की है। इस बीच किसानों के रुख में भी बदलाव के संकेत मिल रहे है। ऐसा लगता है कि संयुक्त किसान मोर्चा कल होनी वाली बैठक में किसान आंदोलन को लेकर कोई बड़ा फैसला ले सकता है। इस बीच सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सरकार एमएसपी की गारंटी का कानून बना देगी ?

एमएसपी के लिए कमेटी बनाएगी सरकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को जब तीनों कृषि कानूनों  के वापसी का ऐलान किया था, उसी वक्त कहा था कि एमएसपी को लेकर सरकार एक कमेटी बनाएगी। जिसके आधार पर पर आगे का फैसला लिया जाएगा। इस बीच किसान नेता दर्शन पाल ने कहा है कि केंद्र सरकार ने समिति के गठन के लिए संयुक्त किसान मोर्चा से पांच नाम मांगे हैं । हमने अभी नामों को लेकर फैसला नहीं लिया है। हम इस बारे में चार दिसंबर को होने वाली हमारी बैठक में निर्णय लेंगे।

अगर लागू हुआ एमएसपी तो इतना आएगा खर्च

मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)व्यवस्था 23 फसलों पर लागू होती है। सरकार हर साल सीजन के आधार पर इन 23 फसलों की एमएसपी निर्धारित करती है। जिसके आधार पर केंद्र सरकार  और राज्य सरकारों की एजेंसियां खरीद करती हैं। अगर सरकार केवल 23 फसलों पर एमएसपी की गारंटी देती है, तो 2016-17 से 2020-21 के दौरान उत्पादन के आधार पर  करीब 10.59 लाख करोड़ रुपये की खरीद हर साल होगी। हालांकि यह बात भी समझनी होगी कि किसान अपनी उपज का सारा हिस्सा नहीं बेचता है। जिसे देखते हुए इस राशि में 10-20 फीसदी तक कमी भी आ सकती है। इसके बावजूद सरकार के लिए ऐसा करना आसान नहीं है..


1.क्योंकि अगर सरकार सभी फसलों पर एमएसपी की गारंटी देती है, तो कृषि उत्पादों की खरीद पर असर हो सकता है। एसबीआई की रिपोर्ट को देखा जाय तो 19 नवंबर को ई-नाम मंडियों पर ज्यादातर फसलों के दाम एमएसपी से कम रेट में थे। 9 फसलों में केवल सोयाबीन पर एमएसपी की तुलना में ज्यादा रेट मिल रहा था। जाहिर है सरकार प्राइवेट कंपनियों से खरीद के लिए दबाव नहीं बना सकेगी और खरीद का भार उस पर आएगा।

2.सरकारी खरीद में विश्व व्यापार संगठन के नियम भी आड़े आएंगे। जिसके तहत विकासशील देश एक तय सीमा से ज्यादा खरीद सब्सिडी रेट पर नहीं  कर सकते हैं। 

3.इसी तरह 45 फीसदी उत्पाद अभी एमएसपी के दायरे से बाहर हैं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च (PRS)की रिपोर्ट बताती है कि साल 2019-20 में 23 फसलों में करीब 80 फीसदी खरीद केवल चावल और गेहूं की खरीद हुई थी। जबकि फल, सब्जियां और पशुओं से होने वाले उत्पादन एमएसपी के दायरे से बाहर हैं। ऐसे में उन किसानों का क्या होगा।

क्या बन सकता है फॉर्मूला

एसबीआई इकोरैप की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार सरकार को एमएसपी की दिशा में करने के लिए एमएसपी की गारंटी देने की जगह 5 साल के लिए न्यूनतम फसल खरीद की गारंटी देनी चाहिए। इसी तरह ई-नाम मंडियों में फ्लोर प्राइस एमसीएप से कम नहीं रखना चाहिए और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग संस्थाओं की स्थापना करनी चाहिए। 

इसी तरह सरकार, डीबीटी योजना का इस्तेमाल एमएसपी के लिए कर सकती है। मसलन एमएसपी और किसान द्वारा फसल की कीमत में अंतर को नकद हस्तांतर के जरिए पूरा कर सकती है। अब जब सरकार ने कमेटी बनाने की दिशा में कदम बड़ा दिया है, तो ऐसा लगता है कि एमएसपी गारंटी के लिए कोई फॉर्मूला बनाने का रोडमैप तैयार हो सकेगा।

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