- बीते 14 फरवरी को पुलवामा हमले की बरसी के दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा कि हम जवाब लेकर रहेंगे।
- सेना के पूर्व अधिकारी का कहना है जब बिना जांचे-परखे न्यूज फैलाई जाती है तो उसका फायदा चीन और पाकिस्तान और उन तत्वों को होता है, जो हमारे देश को बर्बाद करना चाहते हैं।
- पिछले 3 साल में कई राजनीतिक दल एयर स्ट्राइक के सबूत मांग चुके हैं।
नई दिल्ली: 26 फरवरी 2019 को पुलवामा के हमले का बदला लेने के लिए भारतीय वायुसेना ने जब एयर स्ट्राइक की तो उसके बाद न केवल भारतीय सेना की पाकिस्तान को लेकर रणनीति बदली बल्कि भारतीय राजनीति भी बदल गई। असल में उस हमले के बाद कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम सहित कई विपक्षी दलों ने एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाते हुए सबूत मांगे थे।
और उसके बाद 6 फरवरी 2019 को तत्कालीन वायु सेना प्रमुख बीएस धनोआ के बयान पर भी गौर करना चाहिए। उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेस के दौरान कहा हमें जो लक्ष्य दिया गया था, उसे हिट किया गया। हम मरने वालों की संख्या नहीं गिनते। अगर हमने जंगलों में बम गिराए होते तो पाकिस्तान प्रतिक्रिया क्यों करता? साफ है धनोआ का बयान उन विपक्षी नेताओं को जवाब था जो एयर स्ट्राइक पर सवाल उठा रहे थे। तीन साल पहले हुए विपक्ष द्वारा उठाए गए सवाल अब भी जारी है। और उसके बाद से भारतीय राजनीति भी एयर स्ट्राइक को लेकर बदल गई।
अब भी उठते हैं सवाल
एयरस्ट्राइक को जहां मोदी सरकार, पाकिस्तान पर नकेल कसने के लिए मास्टर स्ट्रोक मानती है, वहीं विपक्ष 3 साल बाद भी उस पर भरोसा नहीं कर रहा है। बीते 14 फरवरी को पुलवामा हमले की बरसी के दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा कि हम जवाब लेकर रहेंगे।
और उसके बाद तेलंगाना के सीएम के.चंद्रशेखर राव ने भी एक प्रेस कांफ्रेस में कहा कि राहुल गांधी ने कुछ गलत नहीं किया। वह भी सरकार से राहुल की तरह सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांग रहे हैं। राव ने कहा, 'भाजपा की सरकार झूठ फैलाती है इसलिए सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर लोगों के मन में संदेह है। सरकार को इस संदेह को दूर करने के लिए सबूत सामने लाना चाहिए। यह लोकतंत्र है, कोई राजशाही नहीं।
इसके पहले फरवरी 2019 में एयर स्ट्राइक के बाद तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने 28 फरवरी को कहा था कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में एयरस्ट्राइक से कोई नुकसान की खबर नहीं आ रही है, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष को बताएं कि कहां बम गिराए गए और कितने आतंकी मारे गए । फिर 3 मार्च में सीपीआई नेता डी. राजा ने भी पूछा कि भारतीय मीडिया में 200-300 आतंकियों के मारे जाने का आंकड़ा कहां से आया ।
फिर 4 मार्च को कपिल सिब्बल ने एक ट्वीट कर पूछा कि क्या अंतरराष्ट्रीय मीडिया में जो किसी भी नुकसान की खबर आ रही है वो प्रो-पाकिस्तानी है?
सर्जिकल स्ट्राइक पर भी उठे थे सवाल
इसी तरह 2016 में जब ऊरी हमले के बाद भारतीय थल सेना ने 28 -29 सितंबर 2016 को पीओके में दाखिल होकर पाकिस्तान के कई आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया। सेना की इस कार्रवाई में भी बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए थे। बाद पाकिस्तान ने माना कि पीओके में भारतीय सेना दाखिल हुई और ऑपरेशन किए । लेकिन राहुल गांधी सहित विपक्ष के कई नेताओं ने सेना के पराक्रम पर सवाल उठाते हुए हमले के सबूत मांगे थे। सर्जिकल स्ट्राइक के करीब दो साल बाद 2018 में भारतीय सेना ने आपरेशन के वीडियो भी जारी किए थे।
फेक न्यूज से चीन-पाकिस्तान को फायदा
जब राजनीतिक दल सेना की कार्रवाई पर सवाल उठाते हैं तो उस वक्त एक सैनिक के रूप में कैसा लगता है। जब यह सवाल टाइम्स नाउ नवभारत ने बीते जनवरी में एक इंटरव्यू के दौरान लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) विनोद जी खंडारे से पूछा था। तो उन्होंने कहा था कि जहां तक राजनीति का सवाल है फौज उससे दूर है। लेकिन जब बिना जांचे-परखे न्यूज फैलाई जाती है तो एक फौजी जो सीमा पर तैनात है, उसे बुरा लगता है। राजनीतिक दलों के अगर कुछ भी सवाल है तो उन्हें संसद में बात करना चाहिए। रक्षा समिति के जरिए सेना से सारी जानकारी ली जा सकती है। लेकिन जब बिना जांचे-परखे न्यूज फैलाते हैं,तो उसका फायदा चीन और पाकिस्तान और उन तत्वों को होता है, जो हमारे देश को बर्बाद करना चाहते हैं।