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VIP culture in Haryana: हरियाणा में वीआईपी कल्चर रिटर्न, मंत्री अनिल विज ने ठहराया जायज

Updated Jul 30, 2020 | 10:14 IST

VIP culture returns in Haryana: हरियाणा में वीआईपी कल्चर एक बार फिर दस्तक देने को तैयार है। माननीय विधायक अब लाल बत्ती की जगह लाल फ्लैग लगाएंगे।

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हरियाणा विधानसभा मानसून सत्र से पहले विधायकों को मिलेगी रेड फ्लैग की सुविधा
मुख्य बातें
  • हरियाणा में विधायक अब अपनी सरकारी और निजी गाड़ी पर लगा सकेंगे रेड फ्लैग
  • तीन साल पहले वीआईपी कल्चर को खत्म करने के लिए लाल बत्तियां हटाई गई थीं।
  • जनप्रतिनिधियों की मांग के बाद हरियाणा सरकार का फैसला

नई दिल्ली। भारत में वीआईपी कल्चर को खत्म करने की दिशा में राजनीतिज्ञों की तरफ से जुबानी पहल ही की जाती है। अगर ऐसा न होता तो हरियाणा सरकार का एक फैसला शायद ऊपर लिखी लाइन से मेल नहीं खाता। मोदी सरकार ने फैसला किया था कि आम जनता और शासन के बीच लाल और नीली बत्तियां दूरी पैदा करती हैं और इसे ध्यान में रखकर लाल और नीली बत्तियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लेकिन हरियाणा के राजनेताओं का लाल बत्ती वाली गाड़ी का मोह कम नहीं हुआ। अब चूंकि आदेश का पालन करना है तो वो अपनी कार पर लाल बत्ती नहीं लगा सकते हैं। लेकिन उसका रास्ता निकाल लिया है। 

अनिल विज ने फैसले को बताया जायज

विधायकों की गाड़ी पर रेड फ्लैग के संबंध में हरियाणा सरकार में मंत्री अनिल विज ने कहा कि आखिर इसमें गलत बात क्या है। इसमे कुछ भी गलत नहीं है। अगर एमएलए की पहचान एमएलए के तौर पर होगी तो यह कहां से गलत है। 


एक बार फिर वीआईपी कल्चर की राह पर हरियाणा
तीन साल पहले अन्य राज्यों की तरह हरियाणा सरकार ने भी गाड़ियों के ऊपर लाल बत्ती लगाने पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब जनप्रतिनिधि लाल बत्ती की जगह रेड फ्लैग लगाएंगे। बड़ी बात यह है कि रेड फ्लैग का इस्तेमाल सरकारी गाड़ियों के साथ व्यक्तिगत गाड़ियों पर भी किया जा सकेगा। सभी 90 विधायकों की गाड़ियों पर लाल फ्लैग के साथ हरियाणा विधानसभा का लोगो और विधायक का नाम भी लिखा होगा। इन सभी विधायकों को विधानसभा के मानसून सत्र से पहले यह सुविधा प्रदान की जाएगी। 



यह है जानकारों की राय
अब सवाल यह है कि आखिर इन तीन साल में क्या हुआ कि जनप्रतिनिधियों को महसूस होने लगा कि बिना लाल झंडे के वो सड़कों पर नहीं चल सकते हैं। इस मामले में जानकार बताते हैं कि जब तक कोई नेता विधायक या सांसद नहीं बनता है तब तक वो जनसेवक है क्योंकि उसके विधाई अधिकार नहीं होते हैं। वो सीधे तौर पर फैसले का हिस्सा नहीं होते हैं। लेकिन विधायक बनते ही वो विधाई प्रक्रिया का हिस्सा बनते हैं, इसके साथ ही शासक और शासित के बीच भेद शुरू हो जाता है। दरअसल यह व्यवस्था अंग्रेजों के समय लाई गई थी ।

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