नई दिल्ली : आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में 7 मई को एक फार्मा कंपनी के रासायनिक संयंत्र से हुए जहरीले गैसे के रिसाव ने 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी की याद दिला दी, जब 2-3 दिसंबर की सर्द रात हजारों लोगों के लिए कहर बनकर आई। यूनियन कार्बाइड कंपनी के रासायनिक संयंत्र से निकली जहरीली गैस क्षणभर में हवा में फैल गई और फिर लोगों की सांसों में जहर घुलने लगा, जो इन सबसे बेखबर कड़ाके की ठंड के बीच रजाइयों में दुबके सो रहे थे कि अगली सुबह वे शायद ही देख पाएंगे।
सैकड़ों प्रभावित
अब विशाखापट्टनम में हुए हादसे से एक बार फिर वही भयावह तस्वीर सामने आई है, जब फार्मी कंपनी एलजी पॉलिमर्स के रासायनिक संयंत्र में हुआ रिसाव आसपास के लोगों पर कहर बनकर आया। यहां जहरीले गैस के रिसाव से 11 लोगों की जान चली गई, जबकि 300 से अधिक लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इस घटना के कारण आसपास के लगभग साढ़े चार किलोमीटर के दायरे का इलाका प्रभावित हुआ, जिसका असर करीब 1000 लोगों पर हुआ। कई गांव खाली गराए गए और सैकड़ों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।
खौफनाक मंजर
विशाखापट्टनम से आईं तस्वीरें बयां करती हैं कि हादसा कितना भयावह था। गैस के संपर्क में आने के बाद लोग कटे पेड़ की तरह गश खाकर गिरने लगे तो सैकड़ों लोग घुटन से बचने के लिए दौड़ते भागते नजर आए। लोगों ने आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी और शरीर पर लाल चकत्ते पड़ने जैसी शिकायतें भी की हैं। एलजी पॉलिमर्स के संयंत्र से निकली गैस कितनी खतरनाक थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विशेषज्ञों के मुताबिक, इसके संपर्क में आने से पीड़ित शख्स की जान 10 मिनट के भीतर जा सकती है।
उठ रहे सवाल
आखिर क्या वजह है कि इस खतरे को जानते-समझते हुए भी इतना बड़ा हादसा हो गया? क्या सुरक्षा को लेकर जरूरी कदम समय रहते उठाए गए थे? क्या संयंत्र लगाने वाली कंपनियां नियमित जांच आदि का ध्यान रखती हैं और उन पर अमल किया जाता है? आखिर विशाखापट्टनम में कहां चूक हो गई? ये ऐसे सवाल हैं, जो जांच का विषय हैं और इसका खुलासा आने वाले समय में ही हो सकेगा? लेकिन जिस तरह भोपाल में 36 साल पहले हुई त्रासदी के बाद एक बार उसी तरह का मंजर सामने आया है, उसे देखते हुए यह सवाल भी उठता है कि क्या हमने हादसों से सबक नहीं लिया?
...ताकि बची रहे जान
ये तमाम सवाल उठते रहेंगे, जिसके केंद्र में लोगों की सुरक्षा है? यह समझना होगा कि जब कंपनियों को कहीं भी संयंत्र लगाने की अनुमति दी जाती है तो उसकी जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। भोपाल के गैस पीड़ित जिस तरह 36 साल बाद भी न्याय का इंतजार कर रहे हैं, हमें उस स्थिति से बचने की जरूरत है। यूनियन कार्बाइड कंपनी के रासायनिक संयंत्र से निकली जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट और एलजी पॉलिमर्स के संयंत्र से निकली गैस स्टाइरीन, दोनों ने लोगों की जिंदगियां छीनी और सैकड़ों, हजारों को प्रभावित किया। आज जरूरत इस बात की है कि त्रासदियों से सबक लेते हुए हम आगे की रणनीति पर काम करें, ताकि लोगों की जिंदगी सुरक्षित रह सके।
(डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।)