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Article 30: जानिए क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 30, क्यों है चर्चा में

Updated May 29, 2020 | 14:52 IST

Article 30: भारत मूल रुप से हिंदू बाहुल्य देश है बावजूद इसके यहां पर सभी धर्मों को एक समान अधिकार दिए गए हैं इतना ही नहीं अल्पसंख्यकों को कुछ विशिष्ट अधिकार भी दिए गए हैं जिनका बाहुल्य समाज समर्थन भी करता है। 

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अनुच्छेद 30 क्या है
मुख्य बातें
  • भारतीय संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 30 का वर्णन है
  • अनुच्छेद 30 में भारत के अल्पसंख्यक वर्ग और उनके अधिकारों के बारे में बताया गया है
  • भारतीय संविधान के मुताबिक भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है

भारतीय संविधान में भारत को एक धर्मनिर्पेक्ष राज्य बताया गया है जिसके तहत यहां पर सभी धर्मों और पंथों के लोगों को एक समान अधिकार दिए गए हैं। अलग-अलग जाति और धर्म के अल्पसंख्यक ही देश में संविधान के द्वारा प्रदत्त धर्मनिरपेक्ष मूल्यों क आधारशिला है। भारत मूल रुप से हिंदू बाहुल्य देश है बावजूद इसके यहां पर सभी धर्मों को एक समान अधिकार दिए गए हैं इतना ही नहीं अल्पसंख्यकों को कुछ विशिष्ट अधिकार भी दिए गए हैं जिनका बाहुल्य समाज समर्थन भी करता है। भारतीय संविधान के भाग तृतीय में अनुच्छेद 30 का वर्णन किया गया है जिसमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों के बारे में बताया गया है।   

क्या है आर्टिकल 30

अल्पसंख्यकों के पास स्थापित शैक्षिक संस्थानों का व्यक्तिगत नियंत्रण होता है और उस पर सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। अल्पसंख्यकों के इसी विशिष्ट अधिकार का संरक्षण करता है संविधान का अनुच्छेद 30 इसके मुताबिक धर्म और भाषा के आधार पर अल्पसंख्यकों को अपनी पसदं के मुताबिक शैक्षिक संस्थानों को स्थापित करने का अधिकार है। इसके अलावा इस अनुच्छेद के तहत देश की सरकार धर्म या भाषा को आधार मानकर किसी भी अल्पसंख्यक समूह द्वारा चलाए जा रहे शैक्षिक संस्थानों को वित्तीय मदद देने से इनकार नहीं कर सकती है या उनके साथ भेदभाव नहीं कर सकती है। अल्पसंख्यकों के शैक्षिक संस्थानों के गठन के साथ ही शिक्षा अधिनियम के अधिकार के अनुसार गरीबों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की छूट देता है। 

यह मुख्य तौर पर अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों को स्थापित करने और संचालन करने का विशेष अधिकार देता है। भाग 3 में नागरिकों को मलिक अधिकारों के बारे में बताया गया है। इसी में अनुच्छेद 30 का वर्णण है जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि के मुताबिक शैक्षमिक संस्थान को स्थापित करने व इसका संचालन करने का अधिकार दिया जाता है इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।

इसके अलावा यदि किसी अल्पसंख्यक समुदाय के द्वारा स्थापित और संचालित शिक्षण संस्थान का अधिग्रहण राज्य द्वारा जरूरी हो जाता है तो ऐसे में राज्य, अधिग्रहण के एवज में देने वाला मुआवजा ऐसे तय करेगी कि अल्पसंख्यकों को संविधान के द्वारा मिले अधिकार में कोई खास फर्क ना आए। जब संबंधित राज्य सरकार अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थान को सहायता देगी तब वह अल्पसंख्यक की जाति भाषा और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी। बता दें कि 27 जनवरी 2014 के भारत के राजपत्र के मुताबिक मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया गया है।  

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