- वायरस का टीका विकसित न होने पाने की स्थिति में हर्ड इम्यूनिटी की तरफ जाना पड़ता है
- इसमें देश की करीब 80 फीसदी आबादी को वायरस के संक्रमण में आने दिया जाता है
- हर्ड इम्यूनिटी में पहुंच जाने पर वायरस मनुष्य को संक्रमित नहीं कर पाता है
कोरोना वायरस के प्रकोप से पूरी दुनिया लड़ रही है। वायरस को नियंत्रित एवं उसे खत्म करने के लिए दुनिया भर के चिकित्सा वैज्ञानिक उसका टीका एवं वैक्सीन बनाने में जुटे हैं लेकिन अभी सफलता नहीं मिल पाई है। कई देशों में वैक्सीन के परीक्षण शुरू हुए हैं लेकिन इसे पूरी तरह तैयार होने में अभी और लंबा समय लग सकता है। जाहिर है कि इस महामारी पर विजय पाने के लिए दुनिया को सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन जैसे उपायों पर ही अभी निर्भर रहना होगा। इस बीच, कोविड-19 के असर को खत्म करने के लिए हर्ड इम्युनिटी की बात भी सामने आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि हर्ड एम्युनिटी से कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप को खत्म किया जा सकता है। आइए जानते हैं कि क्या है हर्ड इम्यूनिटी।
क्या है हर्ड इम्यूनिटी
जब किसी आबादी के करीब 80 प्रतिशत लोग किसी वायरस के खिलाफ इम्यून हो जाते हैं यानि उनकी प्रतरोधक क्षमता इतनी बढ़ जाती है कि कोई खास वायरस उनको संक्रमित नहीं कर पाता। लोगों के इस स्थिति में आ जाने को हर्ड इम्यूनिटी कहा जाता है। मान लीजिए कि 10 लोगों में से आठ लोग संक्रमित करने वाले वायरस के खिलाफ इम्युन हो जाते हैं यानि कि वायरस के हमले को उनका शरीर बेकार कर देता है तो उनके साथ रहने वाले दो और लोग भी इस वायरस से संक्रमित नहीं होगी। इसी तरह किसी देश की 80 प्रतिशत आबादी वायरस के खिलाफ अपना प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेती है तो यह वायरस का संक्रमण फैलना रुक जाता है।
कब आती है हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति
हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति लाने के लिए लोगों को वायरस के सामने एक्सपोज किया जाता है। यानि कि सोशल डिस्टेंसिंग को न मानते हुए लोग वायरस के संपर्क में आते हैं। वे उससे संक्रमित होते हैं। धीरे-धीरे उनका शरीर उस वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने लगता है और कुछ दिनों बाद उनका शरीर उस खास वायरस के खिलाफ इम्यून हो जाता है। यानि कि लोग उस वायरस के साथ जीना सीख जाते हैं। मनुष्य जब बाहरी बाहर निकलता है तो उसका तरह-तरह के वायरस से सामना होता रहता है, ये वायरस शरीर में दाखिल होते हैं लेकिन पहले से मौजूद हमारा इम्यून सिस्टम उससे लड़कर उसे खत्म कर देता है और जब हमारा इम्यून सिस्टम वायरस से लड़ नहीं पाता तो हम वायरस का शिकार होकर बीमार पड़ जाते हैं।
हर्ड इम्यूनिटी पर उठे हैं सवाल
कई लोग ऐसे भी हैं जो हर्ड इम्यूनिटी को सही नहीं मानते। दरअसल, इस अवस्था पर पहुंचने के लिए देश और दुनिया की बड़ी आबादी को वायरस से संक्रमित होना पड़ता है। वायरस के खिलाफ सबकी प्रतिरोधक क्षमता एक जैसी नहीं होती। बुजुर्गों और बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा नहीं होती। बीमार लोगों की इम्यूनिटी भी कमजोर होती है। ऐसे में जब एक बड़ी आबादी यदि किसी वायरस से संक्रमित होने के लिए छोड़ दिया जाएगा तो यह जानलेवा साबित हो सकती है। जिन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी जैसे कि युवा, उनका शरीर तो वायरस के खिलाफ अपना इम्यून विकसित कर लेगा लेकिन जो लोग कमजोर और बीमारी से ग्रस्त हैं उनकी जान जा सकती है। दूसरा इतनी बड़ी आबादी के वायरस के संपर्क में आने पर लोग बीमार पड़ेंगे। उन्हें इलाज की जरूरत की पड़ेगी। ऐसे में सभी को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती होती है।
आखिरी विकल्प है हर्ड इम्यूनिटी
हर्ड इम्यूनिटी को आखिरी विकल्प के तौर पर देखा जाता है। किसी नए वायरस से लड़ने और उसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने का सबसे कारगर उपाय उसका टीका विकसित करना होता है। वायरस के खिलाफ यदि टीका विकसित हो जाता है तो उस टीके या वेक्सीन को मनुष्य को देकर उसकी एंटीबॉडी बढ़ा दी जाती है। टीका या वैक्सीन लेने के बाद मनुष्य का शरीर उस वायरस से संक्रमित नहीं हो पाता और वह सुरक्षित रहता है। टीका विकसित नहीं हो पाने की स्थिति में वायरस को नियंत्रित करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय किए जाते हैं। यह उपाय अपनाने के बाद भी यदि संक्रमण फैलता है तो हर्ड इम्यूनिटी की तरफ जाने के लिए लोगों को बाध्य होना पड़ता है जिसके अपने खतरे हैं।