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जब मार दिए गए थे मिल्खा सिंह के 8 भाई-बहन और मां-बाप, पाकिस्तान से भागकर भारत पहुंचे थे फ्लाइंग सिख

Updated Jun 19, 2021 | 09:16 IST

'फ्लाइंग सिख' (Flying Sikh) के नाम से मशहूर भारत के महान धावक मिल्खा सिंह (Milkha Singh) ने शुक्रवार देर रात चंडीगढ़ के पीजीआई में अंतिम सांस ली। पोस्ट कोविड हुई दिक्कतों के चलते वो अस्पताल में भर्ती हुए थे।

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विभाजन के समय भागकर भारत पहुंचे थे मिल्खा सिंह
मुख्य बातें
  • शुक्रवार रात को चंडीगढ़ के पीजीआई में मिल्खा सिंह ने ली अंतिम सांस
  • विभाजन की त्रासदी का शिकार रहा था मिल्खा का परिवार, पाकिस्तान में परिवार के 8 सदस्यों को मार दिया गया था
  • भारत के खेल इतिहास के सबसे सफल एथलीट रहे थे मिल्खा सिंह

नई दिल्ली: महान धावक मिल्खा सिंह  (Milkha Singh Death News) ने जैसे ही शुक्रवार रात अंतिम सांस ली तो पूरा देश गम में डूब गया। 91 साल के मिल्खा सिंह ने कुछ समय पहले ही कोरोना को मात थी लेकिन पोस्ट कोविड दिक्कतों की वजह से उन्हें फिर से चंडीगढ़़ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था।  बुधवार को उनका कोरोना टेस्ट नेगेटिव आया था लेकिन दिक्कतें बढ़ते गई और उन्हें बचाया नहीं जा सका। मिल्खा सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा।

त्रासदी का शिकार हो गया परिवार

मिल्खा सिंह का जन्म विभाजन से पहले 20 नवंबर, 1929 को पाकिस्तान  में हुआ था। तब उनका गांव गोविंदपुरा मुजफ्फरगढ़ जिले में पड़ता था। राजपूत परिवार में जन्म लेने वाले मिल्खा सिंह के परिवार में माता- पिता के अलावा कुल 12 भाई- बहन थे। लेकिन देश के विभाजन के समय उनके परिवार ने जो त्रासदी झेली वो बेहद खौफनाक थी। पूरा परिवार इस त्रासदी का शिकार हो गया और इस दौरान उनके आठ-भाई बहन और माता पिता को मौत के घाट उतार दिया गया था।

जब 394 सैनिकों को हरा दिया

विभाजन के दौरान किसी तरह मिल्खा सिंह परिवार के जिंदा बचे अन्य तीन लोगों के साथ भागकर भारत पहुंचे। भारत पहुंचने के बाद मिल्खा सिंह ने सेना में शामिल होने का फैसला किया और 1951 में वह सेना में शामिल हो गए। एक फैसले ने उनकी पूरी जिंदगी बदली थी। इसी फैसले की बदौलत मिल्खा धीरे-धीरे ऊंचाइयों की तरफ बढ़ते गए और अंत में भारत को मिला एक महान धावक। उन्होंने तब सुर्खियां बंटोरी जब एक रेस में उन्होंने 394 सैनिकों को हरा दिया। 1958 में मिल्खा सिंह ने कॉमनवेल्थ गेम्स पहला गोल्ड मेडल जीता जो आजादा भारत का पहला स्वर्ण पदक था। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

चलती ट्रेन के पीछे दौड़ लगाकर करते थे अभ्यास

  मिल्खा सिंह ने 1956 में मेलबर्न ओलंपिक, 1960 में रोम ओलंपिक और 1964 में टोक्यो ओलंपिक में भारत की अगुवाई की। 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर और चार गुना 400 मीटर रिले दौड़ में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक हासिल किया। करियर की शुरूआत में अभ्यास के लिए मिल्खा चलती ट्रेन के लिए पीछे दौड़ लगाते थे और इस दौरान वह कई बार चोटिल भी हुए थे।

मिल्खा के बेटे भी है प्रसिद्ध गोल्फर

 मिल्खा तब लोकप्रिय हुए जब उन्होंने 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में 45.6 सेकंड का समय निकालकर चौथा स्थान हासिल किया। 1959 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। मिल्खा सिंह के परिवार में तीन बेटियां डॉ मोना सिंह, अलीजा ग्रोवर, सोनिया सांवल्का और बेटा जीव मिल्खा सिंह हैं। गोल्फर जीव, जो 14 बार के अंतरराष्ट्रीय विजेता हैं, भी अपने पिता की तरह पद्म श्री पुरस्कार विजेता हैं।

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