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कौन है मतुआ समुदाय, अमित शाह के दौरे से बंगाल में सियासी जमीन पुख्ता करने में जुटी BJP 

Updated Jan 29, 2021 | 07:16 IST

Matua community : मतुआ समुदाय के लोगों की जड़ें पूर्वी बंगाल में हैं। देश का विभाजन होने और बांग्लादेश के निर्माण के बाद इस समुदाय के लोग बंगाल में आ गए। इस समुदाय के लोग अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
अमित शाह के दौरे से बंगाल में सियासी जमीन पुख्ता करने में जुटी BJP।
मुख्य बातें
  • इस साल अप्रैल-मई महीने में राज्य में होंगे विधानसभा चुनाव
  • पश्चिम बंगाल में इस बार मुख्य मुकाबला भाजपा और टीएमसी के बीच
  • पिछले लोकसभा चुनाव में मतुआ समुदाय ने भाजपा का समर्थन किया

कोलकाता : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपने दो दिन के दौरे पर शुक्रवार को पश्चिम बंगाल पहुंच रहे हैं। शाह का यह दौर सियासी रूप से काफी अहम रहने वाला है। शनिवार को वह ठाकुरनगर में वह मतुआ समुदाय की एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे। इस समुदाय के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लंबे समय से अपनी पहुंच बना रही है। भाजपा ने पश्चिम बंगाल में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू कराने का वादा किया है। मतुआ समुदाय के लोग इस कानून के लागू होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं लेकिन इसमें देरी होने से समुदाय के बीच असंतोष भी उभर रहा है। शाह की इस रैली पर तृणमूल कांग्रेस करीबी नजर है। 

शनिवार को ठाकुरनगर में रैली करेंगे शाह
जानकारी के मुताबिक गृह मंत्री शुक्रवार को 11 बजे कोलकाता पहुंचेंगे। अगले दिन शनिवार को वह सीआरपीएफ के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे। इसके बाद वह नदिया जिले के मायापुर में इस्कॉन मंदिर का दौरा करेंगे। यहां से शाह नॉर्थ 24 परगना स्थित ठाकुरनगर के लिए रवाना होंगे जहां पर वह एक जनसभा को संबोधित करेंगे। यहां शनिवार शाम साढ़े तीन बजे रैली होनी है। शाह के इस दौरे को लेकर टीएमसी में खासी बेचैनी होने की बात कही जा रही है क्योंकि भाजपा नेता के दौरे के समय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी के नेता भगवा पार्टी में शामिल होते आए हैं। समझा जाता है कि शाह की इस यात्रा के दौरान टीएमसी के कई और नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं। 

कौन है मतुआ समुदाय
मतुआ समुदाय के लोगों की जड़ें पूर्वी बंगाल में हैं। देश का विभाजन होने और बांग्लादेश के निर्माण के बाद इस समुदाय के लोग बंगाल में आ गए। इस समुदाय के लोग अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं। इनका लोकसभा की कम से कम छह सीटों पर दबदबा है। इनकी आबादी के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं है लेकिन समुदाय के नेताओं का दावा है कि राज्य में इनकी आबादी करीब तीन करोड़ है। हालांकि एक मंत्री का कहना है कि राज्य में मतुआ समुदाय के मतदाताओं की संख्या 1.75 करोड़ है। बताया जाता है कि साल 2019 के लोकसभा चुनावों में इस समुदाय के लोगों ने भाजपा के पक्ष में वोट दिया।

लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिला समुदाय का समर्थन  
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में लोकसभा की 42 सीटों में से 18 पर जीत दर्ज की। समुदाय के समर्थन ने भाजपा को कम से कम 10 सीटें जीतने में मदद की। आम चुनाव में इस समुदाय के समर्थन से भाजपा को कूच बिहार, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी,  रायगंज, बलूरघाट, नॉर्थ मालदा, रानाघाट, बोनगांव, बर्दवान-दुर्गापुर और आसनसाल सीट पर जीत मिलाने में अहम भूमिका निभाई। लोकसभा की ये सभी सीटें इस इलाके की 70 फीसदी विधानसभा सीटों को कवर करती हैं। भाजपा की नजर इस ठोस एवं निर्णायक वोट बैंक पर है। भाजपा को उम्मीद है कि लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव में भी यदि मतुआ समुदाय का समर्थन यदि उसे हासिल हुआ तो वह अपने 'मिशन बंगाल' की रणनीति में सफल हो जाएगी।

कभी लेफ्ट और टीएमसी का किया समर्थन
इसके पहले मतुआ समुदाय के लोग लेफ्ट और फिर टीएमसी का समर्थन करते आए हैं। 2011 के विधानसभा चुनाव में यह समुदाय ममता बनर्जी के साथ था लेकिन सीएए का मसला अब इनके लिए अहम हो गया है। राज्य में सीएए को लागू कराने के भाजपा के वादे ने इन्हें भगवा पार्टी के करीब लाने में अहम भूमिका निभाई है। विधानसभा चुनाव से पहले शाह की शनिवार की रैली काफी अहम है। भाजपा नेता इस रैली के जरिए इस समुदाय के लोगों को समर्थन एक बार फिर हासिल करना चाहेंगे।

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