नई दिल्ली। लद्दाख का पूर्वी इलाका पिछले तीन महीने से चर्चा के केंद्र में है। यूं तो यह इलाका पैंगोंग लेक की खूबसूरती की वजह से चर्चा में रहा करता था। लेकिन यहां की वादियों और चोटियों पर टैंक और बंदूकों के जरिए चहकदमी हो रही है। चीन की नापाक कोशिश को देश में 1962 यानि आज से 58 साल पहले देखा था कि किस तरह से तत्कालीन चीन सरकार ने पंचशील के सिद्धांतों को रौंद डाला था। एक तरह से चीन ने भारत की पीठ में छूरा भोंक दिया था। लेकिन कहते है कि कुछ ऐसी तारीखें भी इतिहास में दर्ज हो जाती हैं जिसके बारे में जानकारी सालों साल बाद मिलती है।
1962 के बाद गठित विकास बटालियन से डर गया चीन
2020 में वही जानकारी सामने आई जिसे लेकर चीन में घबराहट है। बात यहां पर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की करेंगे जिसे विकास बटालियन के नाम से भी जाना जाता है। ब्लैक टॉपर इस फोर्स के कमांडो ने कब्जा कर लिया जिसके बाद चीन परेशान है, इतना परेशान हुआ कि उसके रक्षा मंत्री ने भारतीय समकक्ष से मास्को में बातचीत की पेशकश जिसे भारत ने स्वीकार किया औक बातचीत भी हुई। लेकिन यहां पर हम उस शख्स और उस फोर्स के बारे में बताएंगे जो आज हर किसी की जुबां पर है।
एसएफएफ के गठन के पीछे थे बी एन मलिक
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के गठन से पहले 1962 की तरफ झांकना जरूरी हो जाता है। अक्टूबर 1962 में चीन की तरफ से जब हमला हुआ उसके बाद ही इस तरह की विचार आया कि एक ऐसी स्पेशल यूनिट होनी चाहिए जिसमें तिब्बती मूल के लड़ाके हों। भारत के लिए ऐसा करना असंभव इसलिए नहीं था क्योंकि चीनी दमन की वजह से ज्यादातर तिब्बती नागरिक भारत की तरफ कूच कर चुके थे और वो शरणार्थी के तौर पर रह रहे थे। उस वक्त इंटेलिजेंस ब्यूरो की कमान संभाल रहे बी एन मलिक ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने यह सुझाव रखा था। खास बात यह है कि इस स्पेशल फोर्स को लीड करने के लिए चुना गया ब्रिगेडियर सुजान सिंह को चुना गया जो रिटायर होने वाले थे। सुजान सिंह की वजह से इस फोर्स को 'इस्टेब्लिशमेंट-22' का नाम मिला।
सुजान सिंह को मेजर जनरल की रैंक पर प्रमोट किया गया। वह स्पेशल फोर्स के पहले कमांडर थे। अगर आज की बात करें तो SFF का कमांडर मेजर जनरल रैंक का ही अधिकारी होता है। उस वक्त आईबी चीफ बीएन मलिक ने न सिर्फ आइडिया दिया बल्कि उसे जमीन पर उतारने में अथक प्रयास भी किया। इसके लिए दलाई लामा के भाई से भी संपर्क साधा ताकि ज्यादा से ज्यादा तिब्बतियों को गुरिल्ला फौज में भर्ती किया जा सके।
एसएफएफ के गठन में अमेरिका की थी खास भूमिका
नवंबर 1962 में पीएम जवाहर लाल नेहरू की गुजारिश पर एक प्रतिनिधमंडल अमेरिका भेजा गया। इसमें गृह मंत्रालय, पेंटागन और सीआईए के लोग थे जो भारत की मदद करने वाले थे। सीआईए की टीम ने मलिक और अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर तिब्बतियों को शामिल करने की योजना पर काम करना शुरू किया। सीआईए और भारतीय एजेंसियों के बीच समन्वय के बाद SFF और एविएशन रिसर्च सेंटर का जन्म हुआ था। 1963 के बाद से सीआईए के इंस्ट्रक्टर्स लगातार यहां आते और तिब्बतियों को गुरिल्ला युद्ध समेत कई खुफिया मिशंस की ट्रेनिंग देते। उन्हें आगरा में पैराजम्पिंग की ट्रेनिंग मिली। सेना से इस यूनिट के गठन को छिपाए रखा गया। 1966 के बीच इसका नाम बदलकर स्पेशस फ्रंटियर फोर्स किया गया और उस वक्त तक इसकी कमान खुफिया एजेंसी आईबी के हाथ में थी।