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"PM मेटेरियल नीतीश" जद (यू) का नया दांव, क्या 2013 जैसा कदम उठाएंगे सुशासन बाबू

Updated Aug 31, 2021 | 20:33 IST

प्रधान मंत्री बनने की होड़ विपक्ष के साथ-साथ एनडीए में भी शुरू हो गई है। BJP के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के प्रमुख साथी जनता दल (यूनाइटेड) ने पीएम मेटेरियल का राग अलाप दिया है।

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बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार
मुख्य बातें
  • जातिगत जनणना, पेगासस जासूसी मामला और जनसंंख्या नीति पर नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग अपनी राय रखी है।
  • 2014 के लोक सभा चुनाव के पहले नीतीश कुमार ने भाजपा से 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया था।
  • ऐसे में एक बार फिर कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार 2024 के पहले कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं।

नई दिल्ली। भले ही अगले लोकसभा चुनाव होने में अभी तीन साल का वक्त बाकी है । लेकिन प्रधान मंत्री बनने की होड़ विपक्ष के साथ-साथ एनडीए में भी शुरू हो गई है। ताजा राग पीएम मेटेरियल का है। यह राग भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रमुख साथी जनता दल (यूनाइटेड) ने अलापा है। जद (यू) की रविवार को हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पारित करके कहा गया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार  में प्रधानमंत्री बनने की योग्यता और क्षमता है। 

यही नहीं जद (यू) के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए यह कह दिया कि " संख्या बल कोई समस्या नहीं होगी। उन्होंने कहा हम वर्तमान में प्रधानमंत्री पद पर दावा नहीं कर रहे हैं, हम एनडीए के साथ हैं और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को स्वीकार करते हैं। लेकिन भविष्य की बात करें तो किसी भी चीज को असंभव कहकर खारिज नहीं किया जा सकता है। । मामले को तूल पकड़ते देख जद (यू) नेता मामले को संभालने की कोशिश में भी लगे हैं। इसी कड़ी में जद (यू)के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने सोमवार को कहा, 'पीएम मटेरियल का मतलब है कि उनमें क्षमता है, देश का नेतृत्व कर सकते हैं। दावेदारी हम नहीं कर रहे क्‍योंकि हमें पता है हम छोटी पार्टी हैं लेकिन नीतीश कुमार में विजन है सोच है। हालांकि उनके करीबी और भाजपा नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी ने पीएम मेटेरियल के सवाल नो कमेंट्स कह कर किनारा कर लिया है।

क्या दूरी बना रहे हैं नीतीश

ऐसा नहीं है कि पीएम मेटेरियल का प्रस्ताव ही नीतीश कुमार और उनके पार्टी का सुर बदलने का पहला संकेत है। इसके पहले भी वह जातिगत जनणना, पेगासस मामले, उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नीति पर भाजपा से अलग सुर अपना चुके हैं। जातिगत जनगणना को लेकर न केवल उन्होंने प्रधान मंत्री को चिट्ठी लिखी बल्कि अपने विरोधी राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव सहित 11 दलों के साथ मिलकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन देने भी पहुंच गए। इसके पहले पेगासस जासूसी के मामले में भी नीतीश कुमार ने 2 अगस्त को मीडिया से  कहा था "पेगासस केस की निश्चित तौर पर जांच होनी चाहिए।  हम टेलीफोन टैपिंग के मामले को कई दिनों से सुन रहे हैं। ऐसे में जांच होनी चाहिए।" नीतीश कुमार का एक और बयान भाजपा को असहज कर गया था। जब उन्होंने 12 जुलाई को उत्तर प्रदेश की नई जनसंख्या नीति लाने के प्रस्ताव पर कहा कि कुछ लोग सोचते हैं कि कानून बनाने से सब कुछ हो जाएगा, सबकी अपनी सोच है। हम तो महिलाओं को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं और इसक असर प्रजनन दर पर दिखेगा। 

 दबाव में हैं नीतीश कुमार

सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं "मुझे लगता है कि नीतीश कुमार भले ही भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं, लेकिन वह लगातार दबाव महसूस कर रहे हैं। इस बार भाजपा का सरकार पर दबाव कहीं ज्यादा है। इसकी दो वजहें हैं, एक तो भाजपा ने दो उप मुख्य मंत्री बैठा दिए हैं। साथ ही भाजपा के पुराने नेता और नीतीश कुमार से बेहतर ट्यूनिंग रखने वाले सुशील मोदी को उप मुख्य मंत्री पद से हटा दिया है। इसके अलावा इस बार जद (यू) की संख्या भी भाजपा से कम है। इसकी वजह से लगता है कि वह अपने आपको घिरा हुआ महसूस करते हैं। भाजपा ने यह भी साफ कर दिया है कि बिहार में भविष्य की राजनीति में वह बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहती है। शायद उन्हें यह भी लगता हो कि मौजूदा परिस्थिति में क्या वह पूरे 5 साल सरकार चला पाएंगे। "

इन परिस्थितियों में मुझे लगता है कि नीतीश कुमार जैसे कद के नेता जो बिहार जैसे राजनीतिक रुप से संवेदशील राज्य के 15 साल से ज्यादा समय से मु्ख्य मंत्री  हैं, और केंद्र में भी कई बार मंत्री रह चुके हैं। और उनकी उम्र भी 70 साल हो चुकी है। ऐसे में शायद वह चाहते हैं कि मजबूती और सम्मान के साथ विदाई ले। ऐसी स्थिति में मुझे लगता है कि वह यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि हो सकता है कि उन्हें मुख्य मंत्री का पद त्यागना पड़े लेकिन वह एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर कर सामने आ सकते हैं  या नहीं ? उनके लिए भाजपा को संख्या के आधार पर चुनौती देना मुश्किल जरूर है लेकिन दूसरे नेताओं की तुलना में उनके लिए विपक्ष का चेहरा बनना आसान कहीं ज्यादा आसान होगा। "

 2013 जैसा उठाएंगे कदम

2014 के लोक सभा चुनावों से ठीक पहले नीतीश कुमार ने भाजपा से अपनी 17 साल पुरानी दोस्ती तोड़ ली थी। जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो सांप्रदायिकता के सवाल पर नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था। उस समय उन्होंने तत्कालीन गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी से दूरी बनाने के संकेत कुछ दिन पहले से देने शुरु कर दिए थे। मसलन पटना की रैली में वह नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर नहीं गए थे। पोस्टर में भी मोदी से दूरी बना ली थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या 2024 के लोक सभा चुनावों से पहले एक बार फिर नीतीश उसी दिशा में बढ़ रहे हैं।

इस सवाल पर संजय कुमार कहते हैं "उस समय और आज में बहुत फर्क है। 2013 में नीतीश कुमार करीब 63-64 साल के थे। राजनीति में किसी नेता का वह सबसे बेहतरीन दौर  होता है। अब वह 70 साल के करीब है, जो सामान्य तौर पर ढलान का दौर होता है। और नीतीश जैसे कद्दावर नेता, जो एक लंबी पारी खेल चुके हैं। ऐसे में अगर वह जाते-जाते कोई धमाका करना चाहे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। " 

इन संभावनाओं पर जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता का कहना है "भविष्य के इन कयासों का कोई मतलब नहीं है। हकीकत यह है कि जद (यू) एनडीए का सहयोगी है और वह भाजपा के साथ सरकार में है। इसके अलावा हमने अपने प्रस्ताव में भी साफ कर दिया है कि 2024 में एनडीए के नेता प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ही होंगे।"हालांकि नीतीश कुमार जिस तरह से चौंकाने वाले फैसले लेते हैं। ऐसे में अगले दो साल में क्या होगा यह किसी को भी नहीं पता है। इसका इंतजार ही किया जा सकता है। 

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