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क्या विपक्षी एकता को अंजाम तक ले जा पाएंगे नीतीश कुमार? लोकसभा चुनाव से पहले उभरेंगे कई सियासी पेंच  

Updated Sep 07, 2022 | 12:18 IST

जानकारों का मानना है कि नीतीश को यह बात भलीभांति पता चल चुका है आगामी विधानसभा चुनाव में उनके लिए बहुत कुछ बचा नहीं है। वह अपने बलबूते बिहार की सत्ता तक नहीं पहुंच सकते। उन्हें बैसाखी की जरूरत पड़ेगी। भाजपा उन्हें रास नहीं आ रही है। वह उम्र के ढलान पर हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
विपक्ष को एकजुट करने की राह पर हैं नीतीश कुमार।
मुख्य बातें
  • लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्षी पार्टियों को एकजुट करना चाहते हैं नीतीश कुमार
  • इस एकजुटता के लिए वह लगातार विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं
  • नीतीश कुमार हालांकि बार-बार यह कहते आए हैं कि पीएम बनने की उनकी कोई मंशा नहीं है

Oppositin Unity : राजनीति में दिखने और दिखाने का एक अर्थ होता है। जो बातें कही नहीं जाती उसे समझा जाता है और जो बातें समझी जाती हैं उसे कहा नहीं जाता। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली दौरे पर हैं। वह एक एक कर विपक्ष के नेताओं से मिल रहे हैं। वह राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, डी राजा सहित, शरद यादव सहित तमाम नेताओं से मिले हैं। नीतीश 2024 के लिए विपक्ष को एकजुट करने के मिशन पर है। हालांकि, विपक्ष की ओर से पीएम उम्मीदवार बनने के सवाल को वह बार-बार टाल जा रहे हैं। 

पीएम नहीं बनना चाहते नीतीश कुमार
नीतीश का यही कहना है कि भाजपा के खिलाफ वह विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं। भाजपा गठबंधन से अलग होने के बाद से वह यही बात दोहराते आ रहे हैं लेकिन उन्हें जानने वाले एवं राजनीति के जानकार उनकी मंशा समझ रहे हैं। नीतीश को करीब से समझने वाले विशेषज्ञों के लिए जद-यू प्रमुख एक केस स्टडी बन गए हैं। कुछ तो उन्हें भारतीय राजनीति के सबसे बड़े अवसरवादी राजनीतिज्ञ के रूप में भी देख रहे हैं। ऐसी राय रखने के पीछे उनके विगत के राजनीतिक निर्णयों का हवाला दिया जा रहा है। 

नीतीश के मन में है टीस
जानकारों का कहना है कि नीतीश मानते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान वह भाजपा की दोहरी रणनीति का शिकार हुए। एक तरफ भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनके साथ रहा तो राज्य स्तर पर भाजपा नेताओं ने चिराग पासवान के जरिए उनसे दगाबाजी की। जद-यू को लगता है कि चिराग की वजह से उसे कम सीटें मिलीं और इसके जरिए उनके पर कतरे गए। यह टीस नीतीश कुमार के मन में शुरू से रही। बाद में विधानसभा स्पीकर से तकरार एवं आरसीबी प्रकरण ने नीतीश को पाला बदलने का एक मौका दे दिया। 

जद-यू प्रमुख को लगता है कि वह विपक्ष को जोड़ सकते हैं
जानकारों का मानना है कि नीतीश को यह बात भलीभांति पता चल चुका है आगामी विधानसभा चुनाव में उनके लिए बहुत कुछ बचा नहीं है। वह अपने बलबूते बिहार की सत्ता तक नहीं पहुंच सकते। उन्हें बैसाखी की जरूरत पड़ेगी। भाजपा उन्हें रास नहीं आ रही है। वह उम्र के ढलान पर हैं। वह चाहकर भी अपने दम पर भाजपा को सबक नहीं सिखा पाएंगे। भाजपा को जवाब देने के लिए उन्हें विपक्ष के सहयोग की जरूरत पड़ेगी। 2024 का आम चुनाव नजदीक आ रहा है। विपक्ष में विखराव है। नीतीश को लगता है कि वह विपक्ष को जोड़ सकते हैं। एक सेतु की तरह वह यदि काम करते हैं तो विपक्ष एकजुट हो सकता है। वह अपने लिए एक राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका की तलाश कर रहे हैं। अभी विपक्षी नेताओं के साथ उनकी मुलाकात एक शुरुआत भर है। लोकसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आएगा, विपक्षी नेताओं के नए समीकरण एवं महत्वाकांक्षाएं देखने को मिलेंगी। 

अभी उभरेंगे कई सियासी समीकरण
बिहार में लोकसभा की 40 सीटे हैं। विपक्ष के साथ रहने पर बिहार में चुनाव लड़ने के लिए उन्हें मुश्किल से 15 से 20 सीटें मिल सकती हैं। जद-यू यदि 15 सीटें जीत भी जाती है तो इतनी सीटों के आधार पर नीतीश पीएम बनने की दावेदारी नहीं कर सकते। विपक्ष में ऐसे कई दल हैं जो इससे अधिक सीटें जीत सकते हैं। यह बात नीतीश कुमार को भी पता होगी। उनका मकसद फिलहाल विपक्ष को एकजुट करने की लग रही है। हालांकि, राजनीति में कुछ भी हो सकता है। 2024 के आम चुनाव को विपक्ष किस तरह से लेता है, यह देखने वाली बात होगी। यह एकजुटता केवल दिखाने भर की है या इसका धरातल पर भी कुछ असर होने जा रहा है, इसका पता बाद में चलेगा।     

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