- अमेरिकी कोरोना वैक्सीन फाइजर पर प्रतिष्ठित पत्रिका द लैन्सेंट की रिपोर्ट आई
- लैन्सेंट का कहना है कि कोरोना के डेल्टा वैरिएंट पर ज्यादा कारगर नहीं है फाइजर
- पत्रिका का कहना है कि फाइजर टीके के सिंगल डोज से और भी कम एंटीबॉडीज बनता है
भारत में फाइजर वैक्सीन आने का सबको बेसब्री से इंतजार है क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि फाइजर वैक्सीन कोरोना को रोकने में या कोरोना के प्रकोप को कम करने में सबसे ज्यादा कारगर वैक्सीन साबित हो सकती है। लेकिन भारत में फाइजर वैक्सीन के आने से पहले ही एक खुलासे ने सबको चौंका दिया है। इस खुलासे को अंजाम दिया है लंदन से प्रकाशित विश्व प्रसिद्ध जर्नल द लैन्सेट ने।
कोरोना वायरस के वैरिएंट?
वैरिएंट का मतलब है विभिन्न रूप या प्रकार से। यानी कोरोना वायरस का विभिन्न रूप या प्रकार है। अब तक कोरोना वायरस के 4 वैरिएंट पाए गए हैं। पहला, अल्फा पिछले साल सितम्बर में ब्रिटेन में, दूसरा, बीटा दक्षिण अफ्रीका में, तीसरा, गामा ब्राजील और जापान में और चौथा, डेल्टा वैरिएंट पिछले साल अक्टूबर में भारत में पाया गया। इसी डेल्टा वैरिएंट ने भारत में कोरोना की दूसरी लहर में तबाही मचा दिया। यानी डेल्टा वैरिएंट बहुत तेजी फैलता है और शरीर के एंटोबॉडीज को आसानी से चकमा देता है। माना जा रहा है कि चारों वैरिएंट में सबसे खतरनाक डेल्टा वैरिएंट ही है। अब डेल्टा वैरिएंट भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि भारत के बाहर भी फैल चुका है यानी ब्रिटेन, कनाडा।
द लैन्सेट रिपोर्ट फाइजर वैक्सीन के बारे में मुख्य रूप से दो बातें कहता है-
- पहला, फाइजर वैक्सीन कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ ज्यादा असरदार नहीं है क्योंकि ये वैक्सीन कम एंटीबॉडीज बनाती है।
- दूसरा , फाइजर वैक्सीन के सिंगल डोज से और भी कम एंटीबॉडीज बनता है।
ये जानना भी जरूरी है कि ब्रिटेन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट ने फाइजर वैक्सीन पर रिसर्च को अंजाम दिया है। इस पूरे रिसर्च में 250 स्वस्थ लोगों पर अध्ययन किया गया इसमें वो लोग शामिल थे जो या तो फाइजर-बायोएनटेक का सिंगल डोज ले चुके हैं या दोनों डोज ले चुके हैं।
एंटीबॉडीज की क्षमता जांची गई
साथ ही इस स्टडी में कोरोना वायरस के सभी वैरिएंट के तहत एंटीबॉडीज की क्षमता को जांचा गया है। कोरोना के ओरिजिनल वैरिएंट में फाइजर के सिंगल डोज से 79%, अल्फा में 50%, डेल्टा में 32% और बीटा में 25% लोगों में एंटीबॉडीज बनी और यही घटते हुए आंकड़ों ने सबको चौंका दिया है।
वैक्सीन के गैप को 12 वीक से घटाकर 8 वीक किया
इसी डेल्टा वैरिएंट की वजह से या डर से ब्रिटेन ने मई महीने के मध्य में ही वैक्सीन के गैप को 12 वीक से घटाकर 8 वीक कर दिया जिससे एंटीबॉडीज घटने न पाए। और भारत में हुआ ठीक इसका उल्टा। भारत में पहले कोवीशील्ड वैक्सीन का गैप था 6 से 8 वीक का और उसको बढ़ाके के कर दिया गया 12 से 16 वीक का जबकि ब्रिटेन में भी कोवीशील्ड वैक्सीन लोगों को दी जा रही है।
वैक्सीन का दूसरा डोज जल्दी देना चाहिए
भारत में तर्क दिया जा रहा है कि वैक्सीन गैप रखने से उतने दिनों तक एंटीबॉडीज बनी रहेगी। यानी सिंगल डोज से 12 से 16 वीक तक एंटीबॉडीज बनी रहेगी और दूसरे डोज से अगले 12 से 16 सप्ताह तक भी एंटीबॉडीज की कमी नहीं होगी। यही कारण है कि स्टडी से जुड़े रिसर्च फेलो एमा वॉल वैक्सीन गैप को लेकर कह रही हैं कि सेकंड डोज जल्दी देना चाहिए जिससे लोगों को अस्पताल जाने की स्थिति से रोका जा सके।
कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ
हां, लैंसेट का स्टडी फाइजर वैक्सीन पर किया गया है न कि अन्य सभी वैक्सीन पर। लेकिन लैंसेट स्टडी ने चिंता तो बढ़ा ही दिया है इसमें कोई दो राय नहीं है। निश्चित रूप से भारत सरकार लैंसेट स्टडी पर जरूर गहन विचार कर रही होगी और ब्रिटैन के वैक्सीन गैप घटाने के पीछे के तर्क पर भी विचार कर रही होगी। क्योंकि कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है बल्कि कोरोना की तीसरी लहर को लेकर अभी से सब डरे हुए हैं कि क्या होगा क्या नहीं होगा।
उम्मीद है सरकार सही फैसला लेगी
अंत में हम इतना ही कहेंगे कि भारत सरकार लैंसेट स्टडी पर गंभीरता से विचार करे और यदि वैक्सीन गैप घटाने से फायदा है तो गैप को घटाने का प्रयास करे। वैसे, अंतिम फैसला तो सरकार को ही लेना होगा और हम आशा करते हैं कि सरकार स्पष्ट और सटीक फैसला लेगी जिससे हम सब मिलकर कोरोना को हरा सकें।