- प्रियंका की सक्रियता के बावजूद यूपी में कांग्रेस का कमजोर संगठन पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती
- 2017 के विधान सभा चुनावों में पार्टी को सपा से गठबंधन के बावजूद केवल 7 सीटें मिली थीं।
- अगर चुनावों में कांग्रेस का वोट बढ़ता है तो ज्यादा संभावना है कि वह भाजपा के सवर्ण वोट में सेंध लगाएगी।
नई दिल्ली: 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा से पहले कांग्रेस के बारे में केवल एक ही तरह की खबरें आ रही थीं। पंजाब में सिद्धू-कैप्टन की लड़ाई में पार्टी का बुरा हाल हो चुका है, तो छत्तीसगढ़ में भी सीएम की कुर्सी को लेकर भूपेश बघेल और टीएस.सिंह देव आमने-सामने हैं। राजस्थान में भी अशोक गहलोत-सचिन पायलट तलवारें खींचे हुए हैं। तो ग्रुप-23 के नेता कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा और पी.चिदंबरम भी खुल कर नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं।
अब जरा लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद की घटाओं पर गौर करिए। प्रियंका गांधी पीडि़तों से मिलने रात में ही लखीमपुर खीरी की ओर निकल पड़ती हैं। रास्ते में सीतापुर में उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है। और बाद में गिरफ्तार भी कर ली जाती है। इस बीच पुलिस अधिकारियों से बहस और गेस्ट हाउस में झाड़ू लगाता उनका वीडियो वायरल हुआ। और अब यूपी सरकार ने उन्हें और राहुल गांधी को लखीमपुर जाने की इजाजत भी दे दी है। जाहिर है उत्तर प्रदेश में भले ही कांग्रेस जमीनी स्तर पर बेहद कमजोर हो चुकी है लेकिन लखीमपुर खीरी में पार्टी ने जो रवैया अपनाया है, उससे वह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की तुलना में कहीं ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रही है। और इसका अहसास विपक्ष को भी होने लगा है।
प्रियंका के ताने पर अखिलेश भड़के
असल में जब प्रियंका गांधी को हिरासत में लिया गया तो उन्होंने समाजवादी पार्टी और बसपा पर निशाना साधते हुए कहा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मैदान में संघर्ष करती नहीं दिखती हैं। जाहिर है इस बयान से समाजवादी पार्टी को मिर्ची लगनी थी। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने एक न्यूज चैनल से बात करते हुए कहा ' वो कमरे में बंद थीं, उनकोनहीं पता होगा । सबसे ज्यादा संघर्ष समाजवादियों ने किया है। सबसे ज्यादा लाठी समाजवादियों को पड़े हैं।' हालांकि यह बात तो साफ है कि लखीमपुर खीरी पहुंचने में अखिलेश, प्रियंका से पीछे रह गए। अखिलेश अब प्रियंका-राहुल के एक दिन बाद बुधवार को लखीमपुर खीरी जा पाएंगे।
कांग्रेस को कितना फायदा
सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं 'देखिए इससे कांग्रेस को बहुत फायदा नहीं मिलने वाला है। क्योंकि जमीनी स्तर पर उनका कोई संगठन अब नहीं बचा है। जब तक यह मुद्दा हाइलाइट है, जब तक प्रियंका सुर्खियों में रहेंगी। इसलिए मुझे नहीं लगता है कि कांग्रेस को कोई बहुद फायदा होने वाला है।' हालांकि यह भी हकीकत है कि 2017 में प्रदेश की प्रभारी बनाए जाने के बाद प्रियंका को सबसे ज्यादा समर्थन इस बार ही मिला है। भले ही अखिलेश यादव उन पर निशाना साध रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी से लेकर कश्मीर में महबूबा मुफ्ती तक ने प्रियंका का समर्थन किया है।
वोट बढ़े तो क्या होगा
लखीमपुर मामले में एक बात और साफ दिख रही है कि चाहे नाराज कपिल सिब्बल हो या फिर सचिन पायलट और भूपेश बघेल, सभी इस समय एकजुट दिखाई दे रहे हैं। जिसकी वजह से कांग्रेस लखीमपुर खीरी को राजनीतिक मुद्दा बनाने में सफल रही है। जिसकी वजह से वह, किसानों से सुलह के बाद भी योगी सरकार के लिए परेशानी बन गई है। ऐसे में चूंकि चुनाव बेहद नजदीक हैं, ऐसे में अगर पार्टी के वोट बढ़ते हैं, जो उसका कांग्रेस को फायदे से ज्यादा भाजपा को नुकसान हो सकता है। क्योंकि अगर कांग्रेस के वोट बढ़े तो निश्चित तौर सवर्ण वोट ही उसके पास ज्यादा आएंगे। और यह वोट भाजपा का मजबूत वोट बैंक है। साथ ही कांग्रेस छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं पर भी कुछ अंकुश लग सकता है। हालांकि यह सब तब संभव होगा जब प्रियंका गांधी इस माहौल को आगे भी बनाए रखती हैं। लेकिन यह बात भी साफ है कि कांग्रेस को 2017 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने पर भी केवल 7 सीटें मिली थी। और केवल 6.25 फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में जब वह अकेले चुनाव लड़ रही है तो उसे कितना फायदा मिलेगा यह तो वक्त ही बताएगा।