- हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
- सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि हर दिन महिलाओं के योगदानों को अहमियत दी जाने की जरूरत है
- कानून में महिलाओं को कई अधिकार दिए गए हैं, जिनसे देश की कई महिलाएं अवगत नहीं होती हैं
नई दिल्ली: हमारे देश में महिलाओं को देवी कहा जाता है और उन्हें पूजने की बात की जाती है। महिलाओं का सम्मान होना चाहिए, इस पर एक सुर में सभी सहमति देते हैं। महिलाओं को आगे आना चाहिए, उन्हें वो सभी अधिकार मिलने चाहिए जो एक पुरुष के पास हैं, इससे कोई असहमत नहीं होता। लेकिन हर रोज हम ऐसी खबरों से घिरे रहते हैं, जहां किसी ना किसी महिला के साथ गलत हो रहा होता है। घर से लेकर वर्कप्लेस तक महिलाओं को संघर्ष करना पड़ता है, उन्हें अत्याचारों का सामना करना पड़ता है। कई जागरुक महिलाएं इसके खिलाफ आवाज उठाती हैं और सामने आकर लड़ती हैं, वहीं कई महिलाएं आज भी ये सोचकर रह जाती हैं कि औरतों को तो थोड़ा झेलना पड़ता ही है। लेकिन हमारे देश का कानून, संविधान और सरकार ऐसा नहीं मानती हैं। ऐसे कई अधिकार महिलाओं के लिए हैं, जो उन्हें सशक्त बनाने में सक्षम हैं। कई इस बारे में जानती हैं, कई नहीं जान पाती हैं। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम महिलाओं को ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण अधिकारों से अवगत कराना चाहते हैं।
कार्यस्थल पर उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाना महिलाओं का अधिकार
कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न अधिनियम हर महिला को कार्यस्थल पर किसी भी तरह के यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का अधिकार देता है। यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता है। यह बताता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है। यह अधिनियम हर उस महिला के लिए बना है जिसका किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ हो। कार्यस्थल कोई भी कार्यालय हो सकता है, चाहे वह निजी संस्थान हो या सरकारी। अगर आपके संस्थान में आंतरिक शिकायत समिति है तो 3 महीने के अंदर उसमें लिखित शिकायत की जा सकती है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं का अधिकार
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए है। शारीरिक दुर्व्यवहार, स्वास्थ्य को खतरा या लैगिंग दुर्व्यवहार अर्थात महिला की गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार करना, उपहास, गाली देना या आर्थिक दुर्व्यवहार अर्थात आर्थिक या वित्तीय संसाधनों, जिसकी वह हकदार है, से वंचित करना, मानसिक रूप से परेशान करना घरेलू हिंसा है। ऐसे मामलों में आरोपी को गैर-जमानती कारावास की सजा दी जाएगी जो तीन साल तक बढ़ सकती है और वो जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
यौन उत्पीड़न पीड़िताओं को अपनी पहचान गुमनाम रखने का अधिकार
जिस महिला के साथ यौन उत्पीड़न हुआ है वो जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष अकेले या महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में बयान दर्ज करा सकती है। कोर्ट भी इस बात को मानता है कि पीड़िता की पहचान किसी भी प्रकार से उजागर नहीं होनी चाहिए।
महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता पाने का अधिकार
कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत, बलात्कार पीड़िताओं को कानूनी सेवा प्राधिकरण से मुफ्त कानूनी सहायता पाने का अधिकार है। इसमें महिला के लिए वकील का इंतजाम किया जाता है।
महिलाओं को रात में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले एक महिला को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। भले ही अधिकारियों के साथ महिला कांस्टेबल हो फिर भी पुलिस रात में किसी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती है। यदि महिला ने गंभीर अपराध किया है, तो पुलिस को मजिस्ट्रेट से ये लिखित में चाहिए होगा कि रात के दौरान गिरफ्तारी क्यों जरूरी है।
मेल या डाक से शिकायत करने का अधिकार
दिल्ली पुलिस द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, महिलाओं को ईमेल या पंजीकृत डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करने का विशेषाधिकार है। यदि किसी कारण से महिला पुलिस स्टेशन में नहीं जा सकती है, तो वह ईमेल के माध्यम से या डाक के माध्यम से लिखित शिकायत भेज सकती है जो पुलिस कमिश्नर या उपायुक्त या के स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को भेजी जाती है। इसके बाद वो SHO को इस बारे में जानकारी देते हैं। फिर एसएचओ शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस कांस्टेबल को महिला के आवास पर भेजते हैं।
महिलाओं को ZERO एफआईआर का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट द्वारा रेप पीड़िता किसी भी पुलिस स्टेशन से अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है। अपराध कहीं भी हुआ हो, महिला जिस भी थाने में शिकायत दर्ज कराने जाती है, वहां पहले केस दर्ज करना होगा। बाद में एफआईआर को संबंधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि चाहे अपराध किसी भी इलाके में हुआ हो पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना नहीं कर सकती। पुलिस एफआईआर दर्ज करने के बाद किसी भी तरह से आनाकानी नहीं कर सकती।
महिलाओं को थाने पर न बुलाने का अधिकार
महिलाओं को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन नहीं बुलाया जा सकता है। यह कानून भारतीय महिलाओं को पूछताछ के लिए शारीरिक रूप से पुलिस स्टेशन में उपस्थित नहीं होने का अधिकार प्रदान करता है। पुलिस महिला कांस्टेबल और परिवार के सदस्यों या दोस्तों की मौजूदगी में महिला से उसके आवास पर पूछताछ कर सकती है।
पुलिस शिकायत दर्ज करने से मना नहीं कर सकती
कई कारण हैं कि एक महिला शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस के पास देरी से जाती है। वह अपनी प्रतिष्ठा, परिवार की गरिमा को मानती है और उसे अपराधी से जान का खतरा हो सकता है। पुलिस किसी भी तरह से उसकी शिकायत दर्ज करने से मना नहीं कह सकती है, भले ही उसमें बहुत देरी हो गई हो। महिलाओं का स्वाभिमान किसी और चीज से पहले आता है। उसे किसी भी चीज से वंचित नहीं किया जा सकता।
महिलाओं को समान वेतन का अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम के तहत, वेतन या मजदूरी की बात पर किसी के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। कामकाजी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में एक समान वेतन पाने का अधिकार है।