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बाबा रामदेव ने लॉन्च की कोरोना की नई दवा, बोले-सर्टिफाइड है यह, अब सवाल नहीं उठेंगे

Yog Guru Ramdev releases first evidence-based medicine for COVID19 by Patanjali
Updated Feb 19, 2021 | 15:41 IST

Patanjali new Corona medicine : रामदेव ने कहा कि पतंजलि की यह दवा डब्ल्यूएचओ की तरफ से प्रमाणित है और अब उनकी दवा पर किसी तरह के सवाल नहीं उठाए जाएंगा।

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Yog Guru Ramdev releases first evidence-based medicine for COVID19 by Patanjali Yog Guru Ramdev releases first evidence-based medicine for COVID19 by Patanjali
तस्वीर साभार:&nbspANI
बाबा रामदेव ने लॉन्च की कोरोना की नई दवा।

नई दिल्ली : योग गुरु बाबा रामदेव ने शुक्रवार को कोरोना की अपनी नई दवा लॉन्च की। इस मौके पर उनके साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी मौजूद थे। योग गुरु ने अपनी 'कोरोनिल टैबलेट' से जुड़े वैज्ञानिक शोध को भी मीडिया के सामने रखा। रामदेव ने कहा कि पतंजलि की यह दवा डब्ल्यूएचओ की तरफ से प्रमाणित है और अब उनकी दवा पर किसी तरह के सवाल नहीं उठाए जाएंगा। बता दें कि इससे पहले पतंजलि की कोरोना दवा पर विवाद हुआ था।  

आयुष मंत्रालय से प्रमाण पत्र मिला
हरिद्वार स्थित पतंजलि आयुर्वेद ने शुक्रवार को कहा कि कोरोनिल को अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) प्रमाणन योजना के तहत आयुष मंत्रालय से प्रमाण पत्र मिला है। कंपनी ने दावा किया कि यह कोविड-19 का मुकाबला करने वाली पहली साक्ष्य-आधारित दवा है। पतंजलि ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में यहां आयोजित एक कार्यक्रम में इस दवा की पेशकश की थी।

कोरोनिल को अब 158 देशों में निर्यात किया जा सकेगा
पतंजलि ने एक बयान में कहा, ‘कोरोनिल को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के आयुष खंड से फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट (सीओपीपी) का प्रमाण पत्र मिला है।’सीओपीपी के तहत कोरोनिल को अब 158 देशों में निर्यात किया जा सकता है। इस बारे में स्वामी रामदेव ने कहा कि कोरोनिल प्राकृतिक चिकित्सा के आधार पर सस्ते इलाज के रूप में मानवता की मदद करेगी।

कोरोनिल पर हुआ था विवाद  
आयुष मंत्रालय ने उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर कोरोनिल टैबलेट को ‘कोविड-19 में सहायक उपाय’के रूप में मान्यता दी है। पतंजलि ने आयुर्वेद आधारित कोरोनिल को पिछले साल 23 जून को पेश किया था, जब महामारी अपने चरम पर थी। हालांकि, इसे गंभीर आलोचना का सामना करना पड़ा क्योंकि इसके पक्ष में वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी थी। इसके बाद आयुष मंत्रालय ने इसे सिर्फ ‘प्रतिरक्षा-वर्धक’के रूप में मान्यता दी।
 

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