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हरियाणा चुनाव नतीजे 2019 : जातिगत आधार पर नब्ज टटोलने में नाकामयाब रही भाजपा

Updated Oct 24, 2019 | 16:40 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Haryana Jat Politics : माना जाता है कि हरियाणा में जातिगत आधार पर जाटों की संख्या सबसे अधिक है। जबकि पंजाबी दूसरे नंबर पर आते हैं। बीजेपी जातिगत आधार पर प्रदेश की नब्ज पकड़ने में नाकामयाब रही।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम 2019 :
मुख्य बातें
  • जातिगत आधार पर हरियाणा में जाट वोटरों की संख्या सबसे अधिक
  • भाजपा के दिग्गज नेता भी नहीं बचा पाए अपनी सीट, कई मंत्री भी हारे
  • जाट समुदाय की नाराजगी के चलते कई सीटें हार गई भगवा पार्टी

प्रदीप नरुला

75 पार का नारा देने वाली बीजेपी हरियाणा में सत्ता से दूर रह गई। बीजेपी या तो अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई या फिर वोटर्स की नब्ज पहचाने में बीजेपी के रणनीतिकारों ने मात खाई। हालांकि यह पहले भी माना जा रहा था कि जाटलैंड में बीजेपी को इस बार भारी विरोध का सामना करना पड़ेगा। आखिरकार वही हुआ। ना केवल बीजेपी के दिग्गज वहां अपनी सीट बचा पाए बल्कि जितने भी नए उम्मीदवार उन्होंने जाटलैंड में उतारे वह सभी मुंह की खा गए। उधर, बाकि क्षेत्रों में चाहे अहिरवाल हो या फिर बांगड़ हो या फिर मेवात। हर जगह बीजेपी के नए खिलाड़ी कमल नहीं खिला सके। जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला।

माना जाता है कि हरियाणा में जातिगत आधार पर जाटों की संख्या सबसे अधिक है। जबकि पंजाबी दूसरे नंबर पर आते हैं। बीजेपी जातिगत आधार पर प्रदेश की नब्ज पकड़ने में नाकामयाब रही। एक ओर जाट उनसे नाराज थे, दूसरी ओर पंजाबी समुदाय को कम प्रतिनिधित्व देने के कारण नाराजगी उठानी पड़ी। जो मुख्य तौर पर हार का कारण बनी। दूसरा टिकट की बंदरबांट में कई सीटें ऐसी रहीं, जहां जानबूझ कर कमजोर प्रत्याशी खड़े करके बीजेपी ने मुंह की खाई। बीजेपी के ज्यादातर प्रत्यााशी त्रिकोणीय संघर्ष में फंस गए। बागियों ने बीजेपी के समीकरण बिगाड़ दिए और लगभग एक दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस को फायदा मिला। बीजेपी के प्रत्याशी उन्हीं बागियों के वोट काटने से हार गए।

बादशाहपुर, रेवाड़ी अहिरवाल की दो सीटें ऐसी रही, जो बीजेपी के कोर ग्रुप ने सिर्फ इसलिए गवां दी कि यहां पर गुटबाजी के चलते जितने वाली प्रत्याशी को टिकट नहीं मिला। इसके अलावा बीजेपी के दिग्गज कैबिनेट मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला, कविता जैन दिग्गज पार्टी को भ्रमित करते रहे। हालांकि हो सकता है कि बीजेपी जोड़तोड़ करके सरकार बना ले लेकिन प्रदेश में पार्टी के आकाओं की स्थिति क्या है? यह आलाकमान के समझ में आ गई होगी। 

बीजेपी का यह नियम बनाना कि सांसदों व केंद्रीय मंत्रियों के परिजनों को टिकट नहीं दिया जाएगा यह भी उन पर भारी पड़ा। क्योंकि न ही सांसदों ने और न ही कार्यकर्ताओं ने सही मन से बीजेपी के लिए काम किया। यहां तक कि कई विधानसभाओं में तो जीत की स्थिति वाले प्रत्याशियों को किनारे कर दिया गया। माना जा रहा है कि आलाकमान ने यह सब संगठन और सरकार के कहने से किया। देखने वाली बात यह होगी कि पहले तो बीजेपी सरकार बनाने की कवायद में लगेगी, उसके बाद संगठन और सरकार से किस- किस का पत्ता कटता है। 

(प्रदीप नरुला, नवभारत टाइम्स में असिस्टेंट एडिटर हैं। लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता।)
 

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