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Opinion India Ka: महंगाई की चौतरफा मार से जनता बेहाल, क्यों चुनाव में इसे मुख्य मुद्दा नहीं बना पा रहा विपक्ष?

Updated Oct 05, 2021 | 23:49 IST

तेल की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है पर विपक्ष अभी भी इसे चुनाव का मुख्या मुद्दा बना पाने में असफल है | भोपाल और इंदौर में मंगलवार को डीजल की कीमतें 100 रुपये प्रति लीटर को पार कर गईं।

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मुख्य बातें
  • एक दौर था जब महंगाई की वजह से सरकार को सत्ता से धोना पड़ा था हाथ
  • पिछले एक साल में बेतहाशा गति से बढ़ी है मंहगाई, लेकिन चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रही है महंगाई
  • पूर्व में सिर्फ प्याज के महंगे होने ने गिर चुकी हैं सरकार

नई दिल्ली: आम आदमी की कमर टूट गई और घर का बजट बिगड़ गया  कार छोड़कर अब तो पैदल ही चलना पड़ेगा। तेल की बढ़ी। कीमतों पर लोगों के दर्द सुनते-सुनते अब लगभग 1 साल बीत गए लेकिन बात बेमानी हो चली है क्योंकि ऐसा लगता है सरकारों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, चारों महानगर में पेट्रोल 100 के मनोवैज्ञानिक निशान के ऊपर है और डीजल 100 के करीब देश के दूसरे शहरों का हाल भी यही है।जनता पूछ रही है तेल से सरकारी खजाने की भरपाई कबतक होगी क्या तेल की कीमत बेरोकटोक बढ़ती ही जाएगी। ब्रेक लगेगा तो कब? 

विपक्ष का विरोध असर क्यों नहीं दिखाता ये अलग मुद्दा है पर सवाल सरकार की नीतियों पर भी है...क्योंकि पिछले  6 सालों में टैक्स से केंद्र की कमाई करीब 300% बढ़ी। सरकार दलील देती है- कोरोना काल में सरकारी की कमाई गिरी जिसकी वसूली तेल की कीमतों से की जा रही है। आम आदमी इस बात को अच्छी तरह से ये समझता भी है। पांच राज्यों के चुनाव सिर पर है- सवाल यही है कि क्या महंगाई और तेल की कीमत चुनावी मुद्दा बनेगी।

जब मुद्दा होती थी महंगाई और हिल जाती थी सरकार

महंगाई इन दिनों भले ही मुद्दा नहीं लगती, लेकिन, हमेशा ऐसा नहीं था। सच तो ये है  कि सिर्फ प्याज के महंगे होने ने सरकार गिराई है। 1980 में प्याज की बढ़ी कीमतें चुनावी मुद्दा बनी थीं। तब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी  और कांग्रेस विपक्ष में थी। इँदिरा गांधी चुनाव प्रचार में प्याज की माला पहनकर घूमती थीं। उस वक्त नारा भी  बना-जिस सरकार का कीमत पर जोर नहीं, उसे देश चलाने का अधिकार नहीं जनता पार्टी हार गई। इसी तरह 1998 में प्याज की बढ़ी कीमतें दिल्ली की बीजेपी सरकार के लिए सिरदर्द बनीं।  मदनलाल खुराना सीएम थे। प्याज की कीमतों पर विपक्ष ने घेरा तो साहिब सिंह वर्मा को कमान सौंपी गई। कीमतें फिर भी नहीं घटी। बीजेपी ने फिर सीएम बदला और सुषमा स्वराज को मौका दिया। सुषमा स्वराज ने कई कोशिशें कीं, लेकिन वो विफल रहीं। आखिरकार प्याज बड़ा चुनावी मुद्दा बना और  बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। 

जब महंगाई की वजह से हो गई थी सरकार की विदाई

1998 में दिवाली के वक्त महाराष्ट्र के वक्त महाराष्ट्र में प्याज की भारी किल्लत हुई तो कांग्रेसी नेता  छगन भुजबल ने तंज कसने के लिए महाराष्ट्र के तत्कालीन सीएम मनोहर जोशी को मिठाई के डिब्बे  में प्याज रखकर भेज दी। दबाव पड़ा तो मनोहर जोशी ने राशन कार्ड धारकों को 45 रुपए की प्याज 15 रुपए प्रति किलो उपलब्ध कराई। 1998 में ही राजस्थान विधानसभा चुनाव में प्याज मुद्दा बना।  भाजपा के सीएम भैरोसिंह शेखावत ने विधानसभा चुनाव हारने के बाद कहा-प्याज हमारे पीछे पड़ा था। एक मशहूर कोट है कि अगर आप किसी सर्विस के लिए कुछ पे नहीं कर रहे, दाम नहीं चुका रहे तो आप ही प्रोडक्ट हैं। और आपके जरिए प्रोफिट कमाना उनका काम है। तो ऐसे में सोशल मीडिया पर अलर्ट रहने की जरुरत आपको है कि आप उसे कंट्रोल करें ना कि वो आपको कंट्रोल करें। कहना आसान है, करना मुश्किल। 

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