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Opinion India ka: उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को ओवैसी पसंद हैं? ओवैसी की मुस्लिम पॉलिटिक्स चलेगी?

Updated Sep 07, 2021 | 23:37 IST

Opinion India ka: ओपिनियन इंडिया का में बात हुई ओवैसी फैक्टर की। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की कितनी असरदार मौजूदगी देखने को मिलती है।

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'ओपिनियन इंडिया का' में बात हुई यूपी में बिछ रही चुनावी बिसात की। उत्तर प्रदेश में बिछी चुनावी बिसात में मायावती और असदुद्दीन ओवैसी दोनों ने अपने अपने दांव खेले। असद्दुीन ओवैसी ने चुनावी रणभेरी बजा दी। ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। उत्तर प्रदेश की करीब 20 फीसदी मुस्लिम आबादी के बीच ओवैसी अपनी पॉलिटिकल एंट्री से मुकाबले को दिलचस्प बनाना चाहते हैं। लेकिन, सवाल यही है कि क्या यूपी का मुसलमान ओवैसी को वोट करेगा? यूपी में बाहरी का तमगा झेल रहे असदुद्दीन ओवैसी को बड़े और प्रभावशाली मुस्लिम चेहरे की जरूरत तो थी ही तो अब उन्हें बाहुबली अतीक अहमद का साथ मिल गया है। अतीक की पत्नी ओवैसी की मौजूदगी में AIMIM में शामिल हो गई।

ओवैसी ने जो बिहार में किया और और जो बंगाल में नहीं कर पाए, उसी राजनीतिक मकसद की तलाश अब यूपी में हैं। ऐलान किया 100 सीटों पर लड़ेंगे और जीतने के लिए लड़ेंगे। ओवैसी का यूपी प्लान शीशे की तरफ साफ है। मुसलमान समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस के साथ क्यों जाए- वोट दे तो उस चेहरे को जो उनके हक की बात करता हो। कहने की जरूरत नहीं कि ओवैसी के चुनावी राडार पर सीधे अखिलेश यादव थे। मुसलमानों को रिझाते ओवैसी की दलील ये है कि अब तक मुस्लिम आबादी सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल होते रही लेकिन जब बात सत्ता की हिस्सेदारी की आई तो भूला दिए गए। 

ओवैसी की दो दलील पर गौर कीजिए...

पहली ये कि उत्तर प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी जब करीब 20 फीसदी है। तो मुस्लिम समुदाय का कोई कभी सीएम या डिप्टी सीएम क्यों नही बन सका। ओवैसी की इस सियासी दांव को और धार ओबीसी और मुसलमानों के गठजोड़ से भी मिल रही है। यानी ओवैसी का राजनीतिक खेल बिल्कुल साफ है, वो जहां ओबीसी और मुसलमानों का मजबूत गठजोड़ बनाने की कोशिश में हैं। वहीं समाजवादी पार्टी से उनका सवाल है जिसकी जितनी हिस्सेदारी उतनी उसकी भागीदारी क्यों नहीं दी गई। मजेदार ये है अपनी बात को पुख्ता करने के लिए वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण देते हैं।

उधर समाजवादी पार्टी ने असदुद्दीन ओवैसी को बीजेपी की बी टीम बताने में कोई कमी नहीं छोड़ी है- ओवैसी की ताकत बढ़ी तो इसका सीधा असर मुस्लिम वोट के बंटवारे की शक्ल में सामने होगा। जाहिर है इससे बीजेपी फायदे में रहेगी। ओवैसी ने तमाम राजनीतिक पंडितों को उस वक्त चौंका दिया जब 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीत ली लेकिन सवाल उठता है कि क्या ओवैसी के लिए यूपी की राजनीतिक बिसात पर खरा उतरना इतना आसान होगा...क्योंकि पश्चिम बंगाल चुनाव में उनका खाता तक नहीं खुला। मुस्लिम वोटरों ने उन्हें ममता के सामने नकार दिया। अब उनका मुकाबला यूपी में अखिलेश, मायावती और कांग्रेस से है। बड़ा सवाल यही है कि ओवैसी वोट कटवा की छवि से बाहर कैसे निकल पाएंगे।
 

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