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Sawal Public Ka: PFI पर NIA-ED की रेड, क्या वोट बैंक की राजनीति ने ऐसे आतंकी संगठनों को दी मजबूती?

Updated Sep 22, 2022 | 22:14 IST

Sawal Public Ka: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के खिलाफ  NIA और ED ने 15 राज्यों में छापेमारी की। आंतरिक आतंकवाद और टेरर फंडिंग के खिलाफ  सरकार ने बड़ी कार्रवाई की है। कई बड़े चेहरों को गिरफ्तार किया गया। सवाल पब्लिक का है कि क्या कम्युनल एजेंडा चलाकर भारत को कमजोर करने की साजिशों के खिलाफ मोदी सरकार का ये सबसे बड़ा प्रहार है? 

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मुख्य बातें
  • NIA-ED के इस एंटी टेरर ऑपरेशन में PFI के 106 संदिग्ध पकड़े गए हैं।
  • अकेले NIA ने 45 गिरफ्तारियां की हैं।
  • रेड्स 93 ठिकानों पर की गई।

Sawal Public Ka: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI के खिलाफ NIA और ED ने ऑल इंडिया रेड की है। ये बहुत बड़ा क्रैकडाउन है। NIA-ED का एक्शन दिल्ली से लेकर केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत 15 राज्यों में हुआ। NIA आतंकवाद के मामलों की जांच करने वाली देश की सबसे बड़ी एजेंसी है और उसके साथ ED की रेड का मतलब ये है कि ना सिर्फ Internal Terrorism बल्कि Terror Financing के खिलाफ सरकार ने जोरदार प्रहार कर दिया है। कल देर रात से NIA और ED ने ज्वाइंट रेड की। रेड्स 93 ठिकानों पर की गई। खुफिया इनपुट्स के आधार पर कई महीनों से रेड की तैयारी चल रही थी। ऐसी खबर है। 
 
इन रेड्स में PFI के कई बड़े चेहरों को गिरफ्तार किया गया। PFI का चेयरमैन ओमा सलाम भी गिरफ्तार हुआ है। गिरफ्तार होने वालों में दिल्ली PFI का अध्यक्ष मोहम्मद परवेज, मध्य प्रदेश PFI का प्रमुख अब्दुल करीम बेकरीवाला, राजस्थान PFI का अध्यक्ष आसिफ मिर्जा और असम का PFI अध्यक्ष अमीनुल हक शामिल हैं। रात भर चले NIA-ED के इस एंटी टेरर ऑपरेशन में PFI के 106 संदिग्ध पकड़े गए हैं। अकेले NIA ने 45 गिरफ्तारियां की हैं। सवाल पब्लिक का है कि क्या कम्युनल एजेंडा चलाकर भारत को कमजोर करने की साजिशों के खिलाफ मोदी सरकार का ये सबसे बड़ा प्रहार है? और क्या PFI के खिलाफ एक्शन हुआ, अब उसे सरकार बैन करेगी? यही है आज सवाल पब्लिक का।

PFI के खिलाफ देश की 2 प्रीमियर जांच एजेंसीज का ज्वाइंट ऑपरेशन ये समझाने के लिए काफी है कि PFI का खतरा कितना बड़ा बन गया है। 2020 के बाद से सांप्रदायिक हिंसा के कई मामलों में PFI के रोल का आरोप लगा है। जनवरी 2020 में CAA के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जिन प्रदर्शनों के दौरान हिंसा हुई उन्हें PFI मैनेज कर रही थी..ऐसे आरोप हैं । 

फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगे में PFI संदेह के घेरे में आया। आज गिरफ्तार हुआ परवेज अहमद दिल्ली दंगे के मामले में पहले भी गिरफ्तार हो चुका है। दिसंबर 2020 में हाथरस के रेप केस के बहाने गड़बड़ी फैलाने की कोशिशों का पता चला था। और उन कोशिशों को लेकर PFI पर उंगली उठी थी। इस साल जनवरी में हिजाब कंट्रोवर्सी शुरू हुई है। PFI के स्टूडेंट विंग CFI ने ही सबसे पहले हिजाब के बहाने ये संग्राम शुरू किया। अप्रैल में राजस्थान के करौली, दिल्ली के जहांगीपुरी और मध्य प्रदेश के खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा हुई। इन सभी हिंसा के मामलों के तार PFI से जुड़ते हैं।

PFI के खिलाफ आज हुई कार्रवाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद मॉनिटर कर रहे थे । खबर ये भी है कि आगे भी वो इस पूरे मामले को पर्सनली मॉनिटर करेंगे।  NIA और ED की रेड को लेकर अमित शाह ने NSA अजित डोवाल के अलावा केंद्रीय गृह सचिव, DG NIA के साथ हाई लेवल बैठक की। हम आपको बताते हैं कि PFI की गतिविधियों के खिलाफ NIA और ED समेत देश की कई अन्य पुलिस एजेंसियों ने पहले भी एक्शन लिए हैं । 

जनवरी 2021 तक NIA ने 100 से ज्यादा PFI के Activists के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इनमें केरल के प्रोफेसर टी जे जोसफ का हाथ काटने, ISIS के साथ संपर्क रखने और Arms Training जैसे मामले शामिल हैं। ED के एक्शन की बात करूं तो,  जून 2022 में ED ने PFI से जुड़े 33 बैंक खातों को अटैच किया। मई 2022 में ED ने 2 PFI Activists के खिलाफ 22 करोड़ रुपयों का टेरर फंड इकट्ठा करने का चार्जशीट दाखिल किया।

फरवरी 2021 में ED ने PFI के खिलाफ अपनी पहली चार्जशीट में कहा कि PFI हाथरस गैंग रेप केस के बाद सांप्रदायिक दंगे फैलाने की कोशिश कर रहे थे। दिसंबर 2020 में ED ने मनी लॉन्डरिंग के मामले में 9 राज्यों में 26 ठिकानों पर रेड की थी। PFI के ऊपर कई मामलों में बेहद गंभीर आरोप हैं लेकिन वो अब तक प्रतिबंधित संगठन नहीं है।  इसीलिए आज की NIA और ED की रेड को PFI पर शिकंजा कसने का संकेत माना जा रहा है। और इसके लिए ठोस सबूत जुटाने की ये सबसे बड़ी मुहिम है।

2018 में झारखंड की उस समय की BJP सरकार ने PFI को बैन किया था। ISIS जैसे संगठनों से संपर्क रखने के आधार पर बैन लगाया गया था। लेकिन हाई कोर्ट की स्क्रूटनी में बैन का फैसला टिक नहीं सका। जाने-अनजाने PFI का समर्थन करने वाले लोग झारखंड में PFI पर लगा बैन हटने को उसके पाक साफ होने के सर्टिफिकेट के तौर पर पेश करते रहे हैं। लेकिन जैसा हमने आपको बताया कि PFI आतंक के कई मामलों में जांच के घेरे में है। साथ ही ये भी जान लीजिए कि SIMI पर प्रतिबंध के बाद PFI का गठन हुआ। और, PFI के गठन में उन लोगों की भूमिका रही जो SIMI के साथ जुड़े थे।

PFI को फलने-फूलने का मौका मिल सका, इसके पीछे राजनीति से इनकार नहीं किया जा सकता।  जनवरी 2020 में छत्तीसगढ़ सरकार ने NIA एक्ट को असंवैधानिक बताकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। PFI ने छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले की तारीफ की। 2013 में कर्नाटक की उस समय की सिद्धारमैया सरकार ने 2008 से 2013 के बीच 1600 PFI सदस्यों के ऊपर से 176 केस वापस ले लिए। 2015 में भी कर्नाटक सरकार ने PFI के सदस्यों के ऊपर 40 केस वापस ले लिए। नवंबर 2020 में उस समय के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने सिद्धारमैया सरकार के फैसले पर विधानसभा में सवाल उठाया था।

PFI जैसे संगठनों की ताकत वोट बैंक वाली पॉलिटिक्स है। आज PFI के खिलाफ रेड पर मैं कांग्रेस के 2 नेताओं का बयान सुनवाना चाहती हूं। एक हैं तारिक अनवर और दूसरे हैं प्रताप सिंह खाचरियावास। सुनिए ये दोनों नेता कैसे PFI के खिलाफ रेड को राजनीति के घेरे में ला रहे हैं। जो PFI आतंकवाद और Communal Violence को लेकर कटघरे में है, क्या कांग्रेस नेताओं के बयान उसे कवर फायर नहीं दे रहे?

उधर, इन रेड्स पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह क्या कह रहे हैं। आज जब एक ओर PFI के खिलाफ कार्रवाई हुई है, वहीं RSS के प्रमुख मोहन भागवत से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई। दिल्ली में कस्तूरबा गांधी मार्ग वाली मस्जिद में RSS प्रमुख ने दौरा किया और वहां इमामों के चीफ डॉ उमर अहमद इलियासी से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद मोहन भागवत ने एक मदरसे में बच्चों से भी मुलाकात की।

कुछ दिनों पहले भी मोहन भागवत ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी समेत कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात की थी। इन मुलाकातों को RSS और मुस्लिम समाज के बीच अविश्वास को पाटने की बड़ी कोशिश माना जा रहा है। सुनिए आज RSS प्रमुख से मिलने के बाद डॉ उमर अहमद इलियासी ने क्या कहा।

सवाल पब्लिक का 

1. क्या NIA-ED की रेड PFI के खिलाफ बैन के पहले उठाया गया कदम है? 
2. वोट बैंक की राजनीति ने PFI जैसे आतंकी संगठनों को मजबूती दी?
3. क्या अब वो सही समय है कि जब देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त संगठनों पर फाइनल कॉल ली जाए ? 
4. क्या RSS प्रमुख की मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात ने PFI के कम्युनल एजेंडा की हवा निकाल दी है ?

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