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Sedition Case: राजद्रोह की धारा, केंद्र ने Supreme Court से जवाब दाखिल करने के लिए मांगा और वक्त

Updated May 02, 2022 | 10:00 IST

Sedition Law: भारतीय दंड संहिता, 1860 में धारा 124 ए (देशद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का जवाब देने केमामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से और समय मांगा है |

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मुख्य बातें
  • राजद्रोह कानून की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में दी गई है चुनौती
  • केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए मांगा है और समय
  • मामले पर अंतिम सुनवाई पांच मई से शुरू करने वाली है सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: राजद्रोह की धारा पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से और वक्ता मांगा है। कोर्ट में धारा-124A की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। केंद्र ने कहा-ड्राफ्ट तैयार, लेकिन मंजूरी का इंतजार है। कोर्ट ने जुलाई 2021 में केंद्र को नोटिस जारी किया गया था और केंद्र सरकार को कल रात तक जवाब दाखिल करना था। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय दंड संहिता, 1860 में धारा 124 ए (देशद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 5 मई को बिना किसी स्थगन के अंतिम निपटान के लिए सूचीबद्ध किया था।

कपिल सिब्बल होंगे याचिकाकर्ता की तरफ से पेश

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सप्ताह के अंत तक केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने का आदेश दिया। चीफ जस्टिस एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक पीठ ने कहा कि वह मामले पर अंतिम सुनवाई पांच मई से शुरू करेगी। खबर के मुताबिक अदालत अब सुनवाई स्थगित करने की किसी अपील पर गौर नहीं करेगी। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मामले में याचिकाकर्ता की ओर से दलीलें पेश करेंगे।

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कोर्ट ने जताई थी चिंता

औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून के व्यापक दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रावधान को क्यों निरस्त नहीं कर रही है जिसका इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से महात्मा गांधी जैसे लोगों की आवाज को दबाने के लिए किया था। सुप्रीम कोर्ट के एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया तथा एक पूर्व मेजर जनरल एस जी वोम्बातकेरे की याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया था, जिन्होंने कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। न्यायालय ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता ‘‘कानून के दुरुपयोग’’ को लेकर है।

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