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West Bengal Elections 2021: मु्स्लिम समाज पर सबकी टिकी नजर, नतीजों को बनाने- बिगाड़ने में अहम रोल

Updated Mar 04, 2021 | 19:51 IST

पश्चिम बंगाल चुनाव आठ चरणों में संपन्न होगा। 2016 के चुनाव पर नजर डालें तो मुस्लिम समाज को टीएमसी प्रभावित करने में कामयाब रही। लेकिन इस दफा तस्वीर कुछ और ही है।

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मुख्य बातें
  • बंगाल में करीब 35 फीसद मुस्लिम समाज से जुड़े मतदाता हैं
  • 2011, 2016 के चुनाव में टीएमसी के पक्ष में बड़े पैमाने पर हुआ था मतदान
  • 2021 में तस्वीर बदली, फुरफुरा शरीफ लेफ्ट के साथ जा चुका है।

कोलकाता। पश्चिम बंगाल के चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक एक बहुत बड़ा फैक्टर है। राज्य के मतदातओं में एक बड़ा तबका मुस्लिम वोटर्स का है जो करीब 100 से 110 सीटों पर नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। यही वजह है कि कोई भी पार्टी इस वोट बैंक को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। अगर 2011 और 2016 के नतीजों को देखें तो इस समाज का बड़ा हिस्सा टीएमसी के पक्ष में गया था। लेकिन इस दफा तस्वीर बदली हुई है। फुरफरा शरीफ जो कि टीएमसी के साथ था अब वो नया ठिकाना लेफ्ट के रूप में ढूंढ चुका है। 

फुरफुरा शरीफ की खास भूमिका ?
इस बार पश्चिम बंगाल में इस वोट बैंक को रिझाने वाले दावेदार बढ़ गए हैं। एक तरफ फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरज़ादा अब्बास सिद्दीकी की ‘इंडियन सेक्यूलर फ्रंट’ है तो दूसरी तरफ एंट्री ले ली है असदुद्दीन ओवैसी  की AIMIM ने। पिछले चुनाव में ममता बैनर्जी का साथ देने वाले अब्बास सिद्दीकी ने असदुद्दीन ओवैसी को नाउम्मीद कर कांग्रेस और लेफ्ट से हाथ मिला लिया है। 

क्या ओवैसी फैक्टर बिगाड़ेगा खेल
वहीं बिहार चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद ओवैसी की AIMIM अब बंगाल में अपनी सियासी जमीन तलाश रही है। चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद ओवैसी ने दावा किया था कि वो बीजेपी औऱ टीएमसी दोनों को हराने के इरादे से मैदान में उतरे हैं लेकिन अब उनकी पार्टी के बंगाल अध्यक्ष अलग ही राग अलाप रहे हैं।  अब गठबंधन की पेचीदगियां और ओवैसी की एंट्री से क्या समीकरण बदलेंगें ? या फिर मुस्लिम वोट बैंक के बंटवारे का सीधा फायदा बीजेपी को होगा ? जवाब नतीजों मे छुपा है जिसका खुलासा 2 मई को होगा।

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