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राजस्थान : एक लाख 72 हजार साल पहले 'खोई' नदी मिली, वैज्ञानिकों की बड़ी कामयाबी

Updated Oct 22, 2020 | 15:10 IST

अन्ना यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर ओसेन मैनेजमेंट की प्रोफेसर हेमा अच्युतन ने कहा, 'थार भेल ही इस समय रेगिस्तान है लेकिन अब भी उन क्षेत्रों में जो अब बालू के टीलों के नीचे दब चुके हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
राजस्थान : एक लाख 72 हजार साल पहले 'खोई' नदी मिली। -प्रतीकात्मक तस्वीर
मुख्य बातें
  • अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं ने थार के मध्य रेगिस्तान में पाषाणकालीन नदी का पता लगाया
  • यह शोध 'क्वाटेरनरी साइंस रिव्यू' जर्नल के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित हुआ है
  • पाषाणयुगीन थार का यह क्षेत्र कभी इस नदी की वजह आबाद था

नई दिल्ली : राजस्थान में पहले बीकानेर के पास थार के मध्य रेगिस्तान में 1,72,000 साल पहले बहने वाली नदी का पता चला है। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम इस 'खोई' हुई नदी का पता लगाने में कामयाब हुई है। शोधकर्ताओं का मानना है कि पाषाण युग में रहने वाले लोगों के लिए यह जीवन दायिनी नदी रही होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक ऐसा क्षेत्र जो अब शुष्क है, वह कभी इस नदी की वजह से पाषाणयुगीन लोगों से आबाद था। यह क्षेत्र मनुष्यों के आवागमन का एक प्रमुख रास्ता भी था। 

'क्वाटेरनरी साइंस रिव्यू' जर्नल में प्रकाशित हुआ शोध
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक यह शोध 'क्वाटेरनरी साइंस रिव्यू' जर्नल के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित हुआ है। यह शोध थार मरूस्थल में नदियों के बारे में जो जानकारी है उसमें और इजाफा करता है। नदियों की मिट्टी के बारे में अध्ययन करते समय शोधकर्ताओं ने पाया कि यह नदी (अब तक जाने हुए समय से) लगभग 80 हजार वर्ष पहले से मौजूद थी। यह शोध इस नदी के अस्तित्व के बारे में अहम जानकारियां देता है।

जर्मनी, कोलकाता एवं चेन्नई के वैज्ञानिक
शोधकर्ताओं में जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर द साइंस ऑफ ह्यूमन हिस्ट्री (एमपीआई-एसएचएच), अन्ना यूनिवर्सिटी (चेन्नई) एवं कोलकाता के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, एजुकेशन एवं रिसर्च (आईआईएसईआर) के वैज्ञानिक शामिल हैं। 

एमपीआई-एसएचएच के जेम्स ब्लिनखोर्न ने टीओआई से बातचीत में कहा, 'नदी के बालू में मौजूद क्वार्ट्ज के दाने प्रकाश के संपर्क में कब आए थे, यह जानने के लिए हमने ल्यूमिनसेंस डेटिंग पद्धति का इस्तेमाल किया ताकि उन दानों के समय के बारे में जानकारी हासिल हो सके।'

अन्ना यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर ओसेन मैनेजमेंट की प्रोफेसर हेमा अच्युतन ने कहा, 'थार भेल ही इस समय रेगिस्तान है लेकिन अब भी उन क्षेत्रों में जो अब बालू के टीलों के नीचे दब चुके हैं, पाषाणयुगीन नाले हैं जहां कभी नदियां बहती रही होंगी।' उन्होंने आगे कहा, 'कुछ जगहों जैसे नाल में हमें नदियों द्वारा जमा किए गए कंकड़-बालू के कण मिले जिनसे हमें पहली बार इस तरह की नदी व्यवस्था के समयकाल को निर्धारित करने में मदद मिली।' 
 

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