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अशोक गहलोत की कमान से निकले दो तीर ताकि बनी रहे सरकार, क्या सियासी लड़ाई में कमजोर पड़ गए सचिन पायलट

Updated Jul 19, 2020 | 18:20 IST

Ashok Gehlot news: राजस्थान में अशोक गहलोत के दावों से आप मान सकते हैं कि उनकी सरकार सुरक्षित है। लेकिन सवाल यह है कि फोन टैपिंग और पायलट समर्थक विधायकों को अयोग्य ठहराने की कोशिश के पीछे मंशा क्या है।

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अशोक गहलोत- सचिन पायलट
मुख्य बातें
  • अशोक गहलोत कैंप ने 102 विधायकों के समर्थन का किया है दावा
  • सचिन पायलट और दूसरे बागी विधायकों को नोटिस दिए जाने का मामला अदालत में
  • राजस्थान सरकार ने सरकार गिराने के खेल में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को लपेटा

जयपुर: राजस्थान की सियासी लड़ाई में इस समय तीन मुद्दे हैं। सीएम अशोक गहलोत को यह सिद्ध करना है कि उन्हें किसी तरह का खतरा नहीं है। सचिन पायलट के सामने चुनौती है कि वो अयोग्य नहीं ठहराये जा सकते यह मामला इस समय अदालत के अधीन है और तीसरा मामला फोन टैपिंग से जुड़ा हुआ है। गृहमंत्रालय ने पूछा है कि आखिर फोन टैप कराने के पीछे आधार क्या था। गृहमंत्रालय के इस सवाल पर राजस्थान कांग्रेस भड़की हुई है।

राजस्थान में फोन टैपिंग का मुद्दा गरमाया
मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास कहते हैं कि अब इस मामले में गृहमंत्रालय भी कूद चुका है क्योंकि उनके पोलिटिकल मास्टर्स को बताया गया है कि वो फंस सकते हैं क्योंकि राजस्थान एसओजी के पास ऑडियो क्लिप के संबंध में पुख्ता सबूत है। खाचरियावास अपनी बात के समर्थन में सीएम को ईमानदार बताते हैं। अशोक गहलोत का कहना है कि अगर टेप असत्य साबित हुआ तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे।

कांग्रेस ने अमित शाह पर साधा निशाना
जब ऑडियो टेप की बात उठने लगी तो गजेंद्र सिंह, गुलाब चंद्र कटारिया, सतीश पुनिया और राजेंद्र राठौर कहने लगे कि ऑडियो झूठा है। लेकिन क्या वो सीएम गहलोत की तरह बयान दे सकते हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह को आगे आकर कहना चाहिए कि अगर ऑडियो सही होगा तो गजेंद्र सिंह और उनके पैरोकार इस्तीफा दे देंगे। 

अयोग्यता की नोटिस अब राजस्थान हाईकोर्ट में 
फोन टैपिंग वाले मामले से पहले राजस्थान विधानसभा के स्पीकर ने सचिन पायलट खेमे को अयोग्यता मामले का नोटिस भेजा जिसकी सुनवाई राजस्थान हाईकोर्ट में हुई। इस केस में सचिन पायलट कैंप को 20 जुलाई तक राहत मिली हुई है। 21 जुलाई को दोबारा सुनवाई होनी है। पायलट कैंप की तरफ से जिरह करते हुए हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी ने कहा कि कोई भी पार्टी सदन के बाहर किसी बैठक में शामिल होने के लिए ह्विप नहीं जारी कर सकती है अगर कोई शख्स पार्टी में रहते हुए नीतियों की मुखालफत करता है तो वो उसका लोकतांत्रिक अधिकार है।

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