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Congress Dalit Love: कांग्रेस का दलित प्रेम सिर्फ दिखावा है, दो विधायकों ने अशोक गहलोत सरकार पर साधा निशाना

Updated Oct 14, 2020 | 13:02 IST

कांग्रेस पार्टी दलित समाज के हितों की बात करती है। लेकिन राजस्थान के दो विधायकों ने अपनी ही सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि दो मंत्री दलित समाज का काम नहीं होने देवा चाहते हैं।

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जयपुर। कांग्रेस पार्टी अपने आपको दलित समाज का हितैषी बताती है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है, दरअसल अगर कांग्रेस के दावों पर यकीन करें तो इसे न मानने की कोई वजह नजर नहीं आती है। लेकिन राजस्थान के कुछ दलित विधायकों की बातों पर यकीन करें तो ऐसा लगेगा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर दोहरा मापदंड अपनाती है। अभी कुछ दिन पहले आंतरिक संकट से अशोक गहलोत किसी तरह उबरे और सचिन पायलट को भी अपनी तलवार म्यान में रखनी पड़ी। लेकिन जिस तरह से दो दलित विधायकों ने गहलोत सरकार के दो मंत्रियों पर आरोप लगाया कि वो दलित समाज से जुड़े लोगों के काम नहीं करते हैं उससे साफ पता चलता है कि कांग्रेस का मानदंड दोहरा है। 

बाबूलाल बैरवा का संगीन आरोप
कांग्रेस के एक विधायक बाबूलाल बैरवा ने कहा उन्होंने एक दफा ट्रांसफर के लिए पांच नर्सों की लिस्ट सौंपी जिसमें एक शर्मा थीं और चार दलित समाज से थे। लेकिन बड़ी बात यह थी कि शर्मा के नाम पर तो विचार हुआ। लेकिन कुछ नहीं हुआ। मंत्री जी से बार बार वो अपनी बात करते रहे। लेकिन किसी तरह की सुनवाई नहीं हुई। अब तो राजस्थान में नगरपालिका और गांव पंचायत का चुनाव होने वाला तो निश्चित तौर पर पड़ेगा। 

गहलोत सरकार के मंत्री पर आरोप
बाबूलाल बैरवा ने सीधे तौर पर रघु शर्मा का नाम लेते हुए कहा कि वो दलित समाज का काम नहीं करना चाहते हैं। जब यह सवाल पूछा गया कि अगर कोई मंत्री दलित समाज का काम नहीं करता है तो क्या सीएम को कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। जब यह पूछा गया कि क्या कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को दखल देना चाहिए तो इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी के खिलाफ हम इस मुद्दे को उठाते हैं तो कोई भी सवाल करेगा आखिर हम कैसे अपनी बात रखेंगे।

वेद प्रकाश सोलंकी ने भी साधा निशाना
कांग्रेस के ही एक विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने कहा कि उनके विधानसभा के रैगर समाज के लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया उन्हें देखकर आप नहीं कह सकते हैं वो पत्थरबाज होंगे। बड़ी बात यह है कि उस घटना में और कई लोग भी शामिल थे। लेकिन उन्हें बख्श दिया गया। इस मुद्दे पर उन्होंने सीएम से मिलने की कोशिश की। लेकिन समय नहीं मिला। पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उन्हें 6 घंटे धरने पर बैठना पड़ा। सवाल यही है कि अगर इसी तरह के हालात उनके सामने आएंगे तो इस तरह की सरकार के माएने क्या हैं।

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